छत्तीसगढ़ के रायगढ़ शहर इन दिनो सांय सांय नही बल्कि यंहा पर बरसो से रहने वाले गुरबती के मारे गरीबो की आँखों से गिरते हुए गर्म आंसू की बुंदो के चलते आंय बांए उबल उठी है और इस उबाल के पीछे कई कारण बताए जा रहे है। इस बीच लोग तो यह भी कह रहे है कि गरीबी के बिमारी से जूझ रहे गरीबो की इस दर्दनाक कहानी के पीछे किसी सफेदपोश मंत्री का हाथ है, जिसके रहमो करम और सत्ता के हुनक के दम पर सौंदर्यकरण और चौपाटी निर्माण निर्माण के आड लेकर प्रशासन ने गरीबों के आशियाने उजाड़ने की कार्रवाई शुरू कर दी है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, प्रथम चरण में आज 20 मकानों को ढहा दिया गया है और आने वाले दिनों में 100 से अधिक घरों को तोड़े जाने की तैयारी है। जरा सोचिए मानसून लगभग समूचे प्रदेश भर में दस्तक दे चुकी है, ऐसे में बारिश की मौसम के शुरूआती दिनो में ही सांय सांय अंदाज में गरीबी के बिमारी से त्रस्त गरीब औरमजलूम परिवार पर सुशासन रूपी सुदर्शन च्रक धारी विषय देव साय की डबल इंजन सरकार की ओर भयानक कार्यवाही किस ओर इशारा कर रही है।
इस बीच रायगढ़ जिला प्रशासन का कहना है कि प्रभावित लोगों को पहले ही 15 दिन पहले दो-दो नोटिस जारी किए गए थे, जबकि अंतिम नोटिस कल रात दिया गया। इस बिच सवाल यह है कि यदि पूर्व सूचना दी गई थी तो फिर आखिरी चेतावनी रात में क्यों दी गई ? और क्या उन गरीब परिवारों को पुनर्वास की कोई वैकल्पिक व्यवस्था दी गई? यदि बैगर पुनर्वास की वैकल्पिक व्यवस्था किये बैगर गरीबो की आशियानो को उजाडने की इस कार्यवाही को अंजाम दिया गया है, तो छतिसगढ सरकार नैतिकता के साथ यह बताने का कष्ट करे कि आखिरकार सरकार किस हैसियत के बुनियाद पर अपने आप को सरकार कहलाने का दावा करती है? जब सूबे मे मौजूद गरीब और मजलूम उनके शासनकाल में सांय सांय नहीं बल्कि आंय बाएं रो रहे है, तब ऐसे में सवाल तो पुछे ही जायेंगे?
बता दे कि यह कार्रवाई गंभीर सवाल खड़े करती है, क्या विकास का रास्ता हमेशा झुग्गियों को कुचल कर ही निकलेगा? प्रशासन को चाहिए कि वह संवेदनशीलता के साथ विकास करे, अन्यथा यह योजना सौंदर्यीकरण नहीं, संवेदनहीनता का प्रतीक बन जाएगी। वैसे भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हर गरीबों को पक्की छत प्रदान करने की गारंटी देते हुए दिखाई देते हैं। ऐसे में जाहिर सी बात है कि छत्तीसगढ़ प्रदेश सरकार को गरीबों की घरों में बुलडोजर चलवाने से पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी से राय शुमारी कर लेते तो शायद गरीबों के घरों में इस तरह से मानसुन के शुरूआती दिनों में ही बुलडोजर नहीं चलता।