-->
Flash News

TOP BHARAT NEWS TEAM एक 24X7 LIVE STREAM TV NETWORK है, जिसमें पत्रकारों की टीम 24 घंटे छत्तीसगढ़ समेत देश की बड़ी व महत्वपूर्ण खबरे पोस्ट करती है। हमारे टीम के द्वारा दी जाने वाली सभी खबरें या जानकारियां एक विशेष टीम के द्वारा गहन संसोधन (रिसर्च) के बाद ही पोस्ट की जाती है . .... । TOP BHARAT NEWS All RIGHT RESEVED

ग्राम पंचायत दढ़ारी में नहीं बनेगा आदीवासी सरपंच

दबंगों की दहशत में कुचला गया एक आदीवासी महिला का अधिकार,

क्या ग्राम पंचायत दढ़ारी के दबंगों ने आदीवासी महिला को सरपंच चुनाव में भाग लेने के लिए रोका ? आखिरकार संविधान और कानून को ताक में रखकर दबंग ग्रामीण क्या किसी भी व्यक्ति का संवैधानिक अधिकार को कैसे कुचल सकता है? आखिर क्यों दंबगई का अंत समाज के भीतर से खत्म होने का नाम क्यों नहीं ले रहा है? आदीवासी मुख्यमंत्री के राज में एक आदीवासी महिला का अधिकार इस तरह से चकनाचूर होना निश्चित तौर पर बहुत बड़ा गंभीर सवाल खड़ा करता है। 

मामले को लेकर ग्रामवासियों के मध्य चुप्पी आलम बरपा, घटनाक्रम से जुड़े हुए विषयों को लेकर कोई भी व्यक्ति कुछ भी कहना नहीं चाहते हैं,

बालोद जिले के संजारी बालोद विधानसभा क्षेत्र की राजनीतिक रणभूमि गुरूर विकासखण्ड क्षेत्र अंतर्गत ग्राम पंचायत दढ़ारी से नहीं चुना जायेगा अब आदीवासी सरपंच। ग्राम पंचायत दढारी में एक ही आदीवासी परिवार निवास करते हैं। बता दें कि पंचायत चुनाव के मद्देनजर आरक्षण कोटा में ग्राम पंचायत दढ़ारी से आदीवासी सरपंच बनना तय हुआ था किन्तु पंचायत चुनाव में प्रबल दावेदार आदीवासी महिला ने खुद को बताया अनपढ़ और गरीब और इसी बात को लेकर वह अपनी ओर से कोई इच्छा नहीं रखी है,लेकिन सूत्रों कि माने तो इस गरीब और मजलूम महिला को दंबग ग्रामीणों ने दबंगई दिखाते हुए पंचायत चुनाव में सहभागिता सुनिश्चित करने से रोक दिया गया है। दबंगों की दबंगई का आलम इतना भयानक है कि यदि कोई भी गांव के व्यक्ति इस आदीवासी महिला को सरपंच पद हेतू अपना समर्थन देता उन्हें तक गांव में 20 हजार रुपए तक दंड देना पड़ सकता था और गांव से बहिष्कृत भी हो सकता था। गणतंत्र दिवस के दिन संविधान को ताक में रखकर ग्राम पंचायत दढ़ारी के अंदर मौजूद दबंगों ने लिया एक आदीवासी महिला की संवैधानिक अधिकार को कुचलने का फैसला। मामले को लेकर गुरूर विकासखण्ड क्षेत्र में फैला सनसनी। बहरहाल इस मामले को लेकर तहसीलदार और निर्वाचन कार्य में लगे हुए सभी अधिकार सक्ते में आ गए हैं। अब ऐसे में देखना यह दिलचस्प होगा कि इस मामले में आदीवासी मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की तिनगोड़िया सरकार क्या रवैया अख्तियार करती है। वैसे बता दें कि बस्तर के दादी कवासी लखमा एक अक्षर पढ़ें लिखे नहीं है किन्तु वह छत्तिसगढ़ प्रदेश के केबिनेट मंत्री रह चुके हैं। ऐसे में एक गरीब आदिवासी महिला को अनपढ़ और जाहिल समझकर उनकी संवैधानिक अधिकार को कुचलना कंहा तक सही माना जा सकता है।

@vinod netam #

anutrickz

TOP BHARAT

@topbharat

TopBharat is one of the leading consumer News websites aimed at helping people understand and Know Latest News in a better way.

GET NOTIFIED OUR CONTENT