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कुरूद में बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जा रहा छेरछेरा पर्व

मुकेश कश्यप

कुरूद. सुबह से आज कुरूद नगर की हर गली हर चौराहे पर नन्हे- मुन्हें सहित युवा वर्ग में छेरछेरा पर्व की धूम है। बैंड बाजे की मनभावन उमंग के साथ बच्चे थिरकते हुए घरों में छेरछेरा मांगने जा रहे है। आमजनो द्वारा दान के इस महापर्व में बच्चों को धान,चांवल आदि का दान कर पर्व की परंपरा निभा कर खुशियां बिखेरी जा रही है। छोटे बच्चो में इस पर्व को लेकर विशेष उत्साह है। बच्चे पूरे उमंग और उत्साह के साथ इसमें शामिल हो रहे हैं।सभी के द्वारा आज इस पर्व को मनाते हुए ना केवल हमारी परंपरा को बल्कि दान के महत्व को दर्शाते हुए आपसी भाईचारे और प्रेम का संदेश दिया जा रहा हैं।

    विदित है कि छेरछेरा पर्व पौष पूर्णिमा के दिन छत्तीसगढ़ में बड़े ही धूमधाम और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इसे छेरछेरा पुन्नी या छेरछेरा तिहार भी कहते हैं।इसे दान लेने-देने का पर्व माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन दान करने से घरों में धन-धान्य की कोई कमी नहीं होती। इस दिन छत्तीसगढ़ में बच्चे और बड़े, सभी घर-घर जाकर अन्न का दान ग्रहण करते हैं और युवा डंडा नृत्य करते हैं।सभी कहते हैं छेरछेरा…’माई कोठी के धान ला हेर हेरा’। इस पर्व को मानते हुए बच्चों और बड़े बुजुर्गों की टोलियां एक अनोखे बोल, बोलकर दान मांगते हैं। दान लेते समय बच्चे ‘छेर छेरा माई कोठी के धान ला हेर हेरा’ कहते हैं और जब तक घर की महिलाएं अन्न दान नहीं देती, तब तक वे कहते रहेंगे ‘अरन बरन कोदो दरन, जब्भे देबे तब्भे टरन’. इसका मतलब ये होता है कि बच्चे कह रहे हैं, मां दान दो, जब तक दान नहीं दोगे, तब तक हम नहीं जाएंगे।छत्तीसगढ़ में छेरछेरा त्योहार तब मनाया जाता है, जब किसान अपने खेतों से फसल काट और उसकी मिसाई कर अन्न (नया चावल) को अपने घरों में भंडारण कर चुके होते हैं. यह पर्व दान देने का पर्व है।किसान अपने खेतों में सालभर मेहनत करने के बाद अपनी मेहनत की कमाई धान दान देकर छेरछेरा त्यौहार मनाते हैं।माना जाता है कि दान देना महापुण्य का कार्य होता है।किसान इसी मान्यता के साथ अपने मेहनत से उपजाई हुई धान का दान देकर महापुण्य की भागीदारी निभाने हेतु छेरछेरा त्यौहार मनाते हैं।इस दिन बच्चे अपने गांव के सभी घरों में जाकर छेरछेरा कहकर अन्न का दान मांगते हैं और सभी घरों में अपने कोठी, अर्थात् अन्न भंडार से निकालकर सभी को अन्नदान करते हैं।गांव के बच्चे टोली बनाकर घर-घर छेरछेरा मांगने जाते हैं। बच्चों के अलावा गांव की महिलाएं पुरूष बुजुर्ग सभी वर्ग के लोग टोली में छेरछेरा त्यौहार मनाने घर-घर जाकर छेरछेरा दान मांगते हैं।

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