अडानी से मिले गले और सुबे की अवाम मिलने को तरसे,मरे निर्दोष आदीवासी दिन-रात दिन बावजूद इसके मुखिया जी पर रोज फूल बरसे.. छत्तीसगढ़ में आदिवासी बीएड सहायक शिक्षक महिलाओं पर हुए बर्बर पुलिसिया कार्रवाई ने एक बार फिर प्रशासन की संवेदनहीनता को उजागर कर दिया, जबकि सूबे में आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाला व्यक्ति ही सूबे के अंदर मुखिया हैं। इस बीच कहा जाता रहा है कि सूबे में जब से आदीवासी मुख्यमंत्री का आगमन हुआ है तब से आदीवासियों को एक एक करके सांय सांय कांटा जा है। कभी नक्सलवाद की खात्मा के नाम पर तो कभी किसी और मामले को लेकर। ऐसे एक सवाल उठता है कि लोकतंत्र में अपनी मांगों को शांतिपूर्ण तरीके से रखने वाली महिलाओं के साथ इस तरह का अमानवीय व्यवहार क्या न्यायोचित है? क्या सूबे के अंदर मौजूद आधी आबादी के लिए भारतीय जनता पार्टी की डबल इंजन सरकार इतना संवेदनहिन हो चुकी है कि उन्हें सही और ग़लत में फर्क ही समझ में नहीं आ रही है? सबसे अधिक चिंताजनक यह है कि आंदोलनरत महिलाओं को पुरुष पुलिसकर्मियों द्वारा बलपूर्वक हटाया गया। यह न केवल संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है, जो हर नागरिक को गरिमा के साथ जीने का अधिकार देता है, बल्कि भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की भी अवहेलना करता है, जो स्पष्ट रूप से कहता है कि महिलाओं को केवल महिला पुलिसकर्मी ही छू सकती हैं। अतः सरकार को याद रखना चाहिए कि ये महिलाएं शिक्षक हैं। आगामी पीढ़ियों का निर्माण करने वाली। उनके अधिकारों की अनदेखी करना समाज और शिक्षा व्यवस्था के लिए घातक है। सत्ता को अपनी ताकत का दुरुपयोग करने की बजाय उनकी समस्याओं को सुनकर समाधान निकालना चाहिए।
रामजादो की सरकार में लंका काण्ड
आदीवासी समाज से ताल्लुक रखने वाले आदीवासी मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय को लेकर आदीवासियों के अंदर कौतूहल की स्थिति पनपी, सूबे के अंदर मौजूद ज्यादातर आदीवासियों की मानें तो आदीवासियों को गाजर मूली की तरह से कांटने वाला आदीवासी नहीं हो सकता है। किसी भी राष्ट्र के शासक की सबसे बड़ी भूमिका अपने राष्ट्र की तरक्की और विकास के लिए दिन-रात मेहनत करना है, ताकि उस राष्ट्र के अंदर मौजूद रहने वाले सभी नागरिकों की चेहरों पर खुशहाली नजर आ सके यदि उस राष्ट्र के शासक रात-दिन मेहनत और पसीना बहा कर भी अपने राष्ट्र के नागरिकों की चेहरा पर खुशहाली के बजाए सिर्फ मायूसी ही ला रहा है, तब ऐसे उस राष्ट्र के शासक को चूल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए, ताकि राष्ट्र के नागरिक उसके जगह किसी और को अपना शासक चुन सकें। गौरतलब हो कि छत्तीसगढ़ प्रदेश के अंदर भारतीय जनता पार्टी की डबल इंजन वाली विष्णुदेव साय सरकार का गठन हुआ है, तब से प्रदेश के अंदर मौजूद ज्यादातर आदीवासी समाज से ताल्लुक रखने वाले लोग सरकार की कई नितियों से आये दिन परेशान हलाकान दिखाई दे रहे हैं,जबकि मुख्यमंत्री स्वंय एक आदीवासी है। आदीवासी समाज से ताल्लुक रखने के नाते अपनी समाज की जरूरतों को ध्यान रखकर नितीगत फैसला लेना उनकी नैतिक जिम्मेदारी है। ऐसे में एक ओर जहां हसदेव अरण्य अभ्यारण के अंदर मौजूद रहने वाले जंगली जीव पूरे प्रदेश भर के अलग अलग हिस्सों में विचरण करने का मुद्दा हो अथवा हसदेव की जंगलों में बसेरा करने वाले आदीवासियों की जल जंगल जमीन को उनके मर्जी बैगर लूटें जाने का मसला हो। इन दोनों मसला के अलावा बस्तर संभाग के अंदर होने वाली लगातार नक्सली मुठभेड़ भी शामिल है जिसमें फौरी तौर पर सरकार पर आरोप लग रहा है कि आदीवासी मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की सरकार बस्तर में जल जंगल जमीन की रक्षा हेतू अपने आवाज बुलंद करने वाले निर्दोष आदीवासियों को तक नक्सली घोषित कर सांय सांय गोलियों से भून रही है। ऐसे में गौर करने वाली बात यह है कि भारतीय जनता पार्टी की डबल इंजन सरकार के मुखिया जो कि स्वंय एक आदीवासी है उनका वजूद समाज के भीतर किस तरह होना चाहिए।आलेख विनोद नेताम टाप भारत न्यूज नेटवर्क ...