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जंगल के अंदर मौजूद समंदर में मनाया मंगल, मां तांदुला के छाती पर नया साल के जश्न में शराब और डीजे की धुन पर महा अमंगल।

 

बालोद। "नये साल के खुशी में पगलाय बालोद जिला प्रशासन का तांदुला रिसार्ट के अंदर मंहगी शराब और डीजे की धुन पर डांस पार्टी का आयोजन। हालांकि यह आयोजन सरकारी था या गैर सरकारी था यह स्पष्ट नहीं है लेकिन जिस हिसाब से जिला प्रशासन ने इस कार्यक्रम में सहभागिता सुनिश्चित की है उसे देखकर लगता है कि प्रशासनिक जवाबदेही के बैगर इतना बड़ा कार्यक्रम आयोजित नहीं किया जा सकता है। गौरतलब हो कि दारू और मंहगी शराब के नशे में चूर नये साल के खुशी के मारे थिरके बालोद जिलेवासी, किन्तु पर्यावरणीय दृष्टिकोण के तहत यह आयोजन बेदह ही शर्मनाक माना जायेगा। अतः आयोजन के जिम्मेदार लोगों को यह बताना चाहिए कि आखिरकार चारों तरफ़ जंगलों से घिरे हुए तांदुला रिसार्ट में नये साल की पार्टी के नाम पर कथित तौर पर हुए नंगा नाच करने का अधिकार उन्हें किसने और किस आधार पर प्रदान किया। कथित रूप से इस आयोजन के जिम्मेदार अधिकार प्रदान करने वाले लोग इस आयोजन के बदले जो पर्यावरण का नुक़सान होने वाला है उसके विषय में क्या जानकारी रखते हैं? क्या उन्हें पता है कि तांदुला बांध से लगे हुए जंगलों पर बाईक ले कर जाने से भी वन विभाग बाईक को जप्त करने की सख्त आदेश जारी करता है? यानी कि जंगल की सन्नाटा में कोई दखल नहीं, बावजूद आधी रात डीजे की सांय सांय और आसमानी फटाखे की आंय बांय। दरअसल बालोद की पावन धरा पर अवतरित मां तांदुला की चारों ओर घने जंगल है और इस घने जंगल में अनेक प्रकार के जंगली जीव जंतु निवास करते हैं और इस बात की तस्दीक बालोद वन विभाग खुद स्वंय करता हैं। जंगली जीव जंतु के लिए स्वाभाविक रूप से मानव जाति खतरे की घंटी से कम नहीं है। ऐसे में जरा सोचिए 31 दिसंबर की आधी रात और 1 जनवरी 2025 में, माँ तांदुला बांध के अंदर बीच पानी से सैकड़ों आसमानी फटाखे फोड़े गए और बड़े बाक्स वाले कानफोड़ू डीजे बजाए गए। बकायदा इस कार्यक्रम को सफल बनाने हेतू जिले के सभी शांतिदूत जुटे हुए नज़र आए। जबकि जिले के अंदर मौजूद ज्यादातर लोग बाग शांति दूतों की अनुपस्थिति को देखकर नये साल में सहमे हुए नजर आए। यदि भूल से भी बालोद शहर में कोई बड़ा हासदा कल की बीती रात में हो जाता तो शायद भगवान ही मालिक था। ऐसे में इस कार्यक्रम के दौरान शांति दूतों की उपस्थिति के मायने लगाए जा सकते है वह भी मंहगी शराब के नशे में चूर...
विश्वनिय सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के मुताबिक तांदुला रिसार्ट बालोद में आयोजित की गई नये साल के इस विशेष पार्टी में पुलिसकर्मियों के साथ पत्रकारों के लिए भी विशेष मंहगी शराब की सुविधा आयोजकों की ओर से लींबू चांट ले अंदाज में किया गया था। निश्चित रूप से तांदुला रिसार्ट बालोद के अंदर हुई 31 दिसंबर की पार्टी का यह आयोजन पर्यटन के दृष्टिकोण के हिसाब से बहुत बढ़िया कार्यक्रम है और इसका विरोध नहीं किया जाना चाहिए,किंतु हमें यह भी ध्यान में रखकर चलना होगा कि पर्यटन बैगर पर्यावरण और वन्य जीव जंतु के अधूरा है और हम यदि इसका समय पर संरक्षण नहीं कर पाये तो हमारे आगे आने वाली पीढ़ी कुदरत की इस खूबसूरत नजारा को देख नहीं पायेगा और इस घटनाक्रम के जिम्मेदार हम सब होंगे। बता दें कि नये साल के दौरान हुए इस पार्टी में खास और विशेष लोगों की विशेष रूप से विषेशता बनी हुई बताई जा रही है और इन्हीं की विश्वसनीयता को बरकरार रखने हेतू पहली बार इस विशेष रूप से इस तरह के पार्टी का आयोजन किया गया है, लेकिन जिस तरह इस कार्यक्रम को पर्यावरण की सुरक्षा को ताक पर रखकर धनिया बोते हुए अंजाम दिया गया है उसकी चर्चा गली गली और खोर खोर में है। दरअसल जलाशय एक सार्वजनिक संसाधन होता है, जिसे जलवायु, जल आपूर्ति और जलीय जीवन के संरक्षण के लिए बनाया जाता है। जलाशय के आसपास या उसमें किसी प्रकार का निर्माण, जैसे कि रिजॉर्ट या किसी अन्य व्यावसायिक गतिविधि को शुरू करने के लिए कड़े नियम और अनुमति की प्रक्रिया होती है। जलाशय में किसी भी प्रकार के निर्माण की अनुमति जल संसाधन विभाग, वन विभाग, पर्यावरण विभाग और स्थानीय प्रशासन द्वारा निर्धारित की जाती है, जिनमें निम्नलिखित बिंदु शामिल हो सकते हैं।
जलाशय में रिजॉर्ट निर्माण के लिए अनुमति के नियम
जल संसाधन विभाग का अधिकार: जलाशय के आसपास या जलाशय के पानी के क्षेत्र में किसी प्रकार के निर्माण कार्य के लिए जल संसाधन विभाग से अनुमति प्राप्त करनी होती है। विभाग यह सुनिश्चित करता है कि निर्माण कार्य से जलाशय की जल आपूर्ति, जल गुणवत्ता और जलवायु पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़े। वन विभाग की अनुमति: यदि जलाशय के तीन ओर वन विभाग की भूमि है, तो वन विभाग की अनुमति* भी आवश्यक होगी। वन विभाग यह जांचता है कि निर्माण कार्य से वन क्षेत्र में कोई अवैध कटाई, प्रदूषण, या वन्य जीवन पर नकारात्मक प्रभाव तो नहीं पड़ेगा। वन संरक्षण अधिनियम, 1980 और भारतीय वन अधिनियम, 1927 के तहत वन भूमि पर किसी भी प्रकार का निर्माण कार्य बिना अनुमति के अवैध होता है।पर्यावरणीय स्वीकृति: पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन (ईआईए) रिपोर्ट तैयार करनी होती है, जिसमें यह विवरण दिया जाता है कि रिजॉर्ट का निर्माण पर्यावरण पर किस प्रकार का प्रभाव डालेगा। यह रिपोर्ट पर्यावरण मंत्रालय द्वारा अनुमोदित की जाती है। स्थानीय प्रशासन का अनुमोदन: रिजॉर्ट बनाने के लिए स्थानीय प्रशासन से भी जोनिंग और भूमि उपयोग की अनुमति प्राप्त करनी होती है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह क्षेत्र *वाणिज्यिक उपयोग* के लिए उपयुक्त है और इसमें कोई कानूनी अड़चन नहीं है।
पर्यावरणीय और जलीय जीवन पर दुष्प्रभाव
जलाशय के पास रिजॉर्ट बनाने से पर्यावरण और जलीय जीवन पर कई तरह के दुष्प्रभाव हो सकते हैं, जिनमें प्रमुख निम्नलिखित हैं। जल प्रदूषण: रिजॉर्ट में जलाशय का पानी अक्सर गंदा हो सकता है, खासकर यदि वहाँ जल उपचार की उचित व्यवस्था न हो। यह जलाशय के पानी को प्रदूषित कर सकता है, जिससे जलीय जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, जैसे कि मछलियों और अन्य जलजीवों का नाश। वन्यजीवों पर प्रभाव: यदि रिजॉर्ट के निर्माण में वन भूमि का उपयोग किया जाता है, तो इससे वन्यजीवों की हैबिटेट में विघटन हो सकता है। वन्यजीवों का शिकार बढ़ सकता है, और कुछ प्रजातियां खतरे में पड़ सकती हैं। पानी की गुणवत्ता पर असर: रिजॉर्ट के निर्माण से जलाशय की जल गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है। रिसॉर्ट के संचालन से निकलने वाले गंदे पानी, रासायनिक कचरे और अन्य प्रदूषकों का जलाशय में मिश्रण हो सकता है, जिससे जलाशय का पानी गंदा हो सकता है। जैव विविधता में कमी: जलाशय में रिजॉर्ट के निर्माण से जैव विविधता पर भी प्रतिकूल असर हो सकता है। जलाशय में रहने वाले जलजीवों की प्रजातियाँ प्रभावित हो सकती हैं, और यदि पर्यावरणीय संतुलन बिगड़ता है तो जल जीवन में कमी हो सकती है।
एन जी टी (राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण) के नियम और पर्यावरणीय सुरक्षा को ताक में रखकर तांदुला जलाशय में परोसी गई ब्रांडेड दारू 
एनजीटी ने पर्यावरण संरक्षण को सुनिश्चित करने के लिए कई नियम लागू किए हैं, विशेष रूप से जलाशयों, जलजीवों और वन्यजीवों की सुरक्षा से संबंधित। एनजीटी के तहत निम्नलिखित प्रमुख नियम लागू होते हैं:। एनजीटी अधिनियम, 2010: एनजीटी का उद्देश्य पर्यावरणीय न्याय और प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा करना है। इस अधिनियम के तहत, जलाशय या वन क्षेत्र में किसी भी प्रकार का निर्माण कार्य करने से पहले पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन (ईआईए) करना अनिवार्य है। एनजीटी की अनुमति के बिना किसी प्रकार के निर्माण कार्य की अनुमति नहीं दी जा सकती। जलजीवों की सुरक्षा: एनजीटी के अनुसार, यदि निर्माण कार्य से जलजीवों के अस्तित्व पर खतरा हो, तो निर्माण कार्य को रोका जा सकता है। जलाशय में पानी की गुणवत्ता को बनाए रखना आवश्यक है, और इसके लिए एनजीटी जलाशय के आसपास कोई भी निर्माण कार्य शुरू करने से पहले पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों की निगरानी करता है।

वन संरक्षण: यदि रिजॉर्ट का निर्माण वन क्षेत्र में किया जाता है, तो यह वन संरक्षण अधिनियम, 1980 और राष्ट्रीय वन नीति के तहत आता है। एनजीटी यह सुनिश्चित करता है कि वन भूमि का उपयोग पर्यावरणीय दृष्टिकोण से सही तरीके से हो, और किसी भी प्रकार का अवैध वनक्षरण न हो।जलाशय के पास रिजॉर्ट खोलने के लिए जल संसाधन विभाग, वन विभाग और पर्यावरण मंत्रालय से अनुमति प्राप्त करना आवश्यक है। एनजीटी द्वारा निर्धारित पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन (ईआईए) और जलजीवों के संरक्षण के नियमों का पालन करना जरूरी है। वन और जलाशय के पर्यावरणीय सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि कोई भी निर्माण कार्य प्राकृतिक संसाधनों को नुकसान न पहुँचाए और जलीय जीवन की सुरक्षा पर प्रभाव न डाले। एनजीटी (राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण): एनजीटी ने भी प्राकृतिक संसाधनों और वन्यजीवों के संरक्षण के लिए कई आदेश दिए हैं, जिसमें लाइट और ध्वनि प्रदूषण पर नियंत्रण लगाने के लिए सख्त कदम उठाए गए हैं। किसी भी सार्वजनिक कार्यक्रम या उत्सव में तेज आवाज़ या अत्यधिक रौशनी से होने वाले नुकसान को एनजीटी ने गंभीरता से लिया है। तेज आवाज़ और तेज रौशनी का प्रभाव न केवल मानव स्वास्थ्य बल्कि पर्यावरण और वन्य तथा जलीय जीवों पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालता है। ध्वनि प्रदूषण और लाइट प्रदूषण दोनों के कारण मानसिक तनाव, स्वास्थ्य समस्याएं और प्राकृतिक जीवन पर भारी असर पड़ता है। इसे नियंत्रित करने के लिए कानूनी और प्राकृतिक संरक्षण उपायों की आवश्यकता है, ताकि इन प्रदूषणों का नियंत्रण किया जा सके और सभी के लिए सुरक्षित और शांतिपूर्ण वातावरण सुनिश्चित किया जा सके।

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