रायपुर: अमेरिका में शिक्षा को महत्व दिया जाता है, चीन में हुनर को प्राथमिकता दी जाती है, जबकि भारत में जाति, धर्म और पाखंड को अधिक महत्व दिया जाता है। यह हमारे समाज की उन कमियों को उजागर करता है, जो प्रतिभा और शिक्षा के बजाय सामाजिक विभाजन और अंधविश्वास को बढ़ावा देती हैं।
यदि समाज में इन सीमाओं को नहीं तोड़ा गया, तो हम वैश्विक प्रतिस्पर्धा में पिछड़ सकते हैं। हमें यह समझना चाहिए कि किसी भी देश की प्रगति उसकी शिक्षा और हुनर पर आधारित होती है। जातिगत भेदभाव और धर्म के नाम पर बंटवारा हमारे विकास में बाधा है। भारत को अपनी प्राथमिकताएं बदलकर शिक्षा और कौशल को महत्व देना चाहिए एवं जाती धर्म सम्प्रदाय के आड़ में अपनी दुकानदारी चलाने वाले लोगों की दुकानदारी बंद करना चाहिए क्योंकि इस दुकानदारी के बदौलत ऐसे लोग तो समृद्धि और खुशहाल बन जाते हैं किन्तु किसी गरीब का भला यदा-कदा ही सुनने को मिलता है और यदि मिलता है तो रसूखदार लोगों का जैसे कि महशूर सट्टा किंग सौरभ चंन्द्राकर को बिते दिनों मिलते हुए दिखाई दिया है। उक्त मामले को लेकर सौरभ चंद्राकर और कथावाचकों पर कार्रवाई की मांग उठ रही है। सवाल यह है कि धार्मिक आयोजनों के माध्यम से कथित तौर पर सट्टा से जुड़े अवैध धन का उपयोग कैसे हो रहा है,और प्रशासन इसे रोकने में निष्क्रिय क्यों है? क्या कथावाचकों की जांच होगी, जो इन कथाओं के आयोजन में कथित रूप से 2 नंबर के पैसे ले रहे हैं?
धर्म और अध्यात्म के मंच का उपयोग यदि अवैध गतिविधियों को छुपाने लिए हो रहा है, तो यह समाज के लिए गंभीर मुद्दा है। क्या कानून ऐसे कथावाचकों पर शिकंजा कस पाएगा, या धार्मिक छवि के चलते यह मामला दबा दिया जाएगा? प्रशासन की भूमिका और कार्रवाई पर अब सवाल खड़े हो रहे हैं।