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गुरूर जनपद पंचायत क्षेत्र अंतर्गत कई ग्राम पंचायतों के सरपंचों पर फर्जी बिल बाऊचर लगा कर सरकारी रूपये को चपत करने की चर्चा हुई तेज

किसी भी ग्राम पंचायत के अंदर ग्रामवासियों के द्वारा चुने गए सरपंच न सिर्फ ग्राम पंचायत का मुखिया होता है बल्कि वह समस्त गांव का माई बाप भी माना जाता रहा है। वंही दुसरी ओर राजनीतिक पंडितों ने नेता उसे माना है जो पहले अपने घर को आग में फूंक कर जरूरतमंदों की घरों में चूल्हा जलाने का काम करता है। बहरहाल कलजुग के इस अमृतकाल रूपी युग के अंदर छत्तीसगढ़ राज्य के मौजूदा मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय एक समय के दौरान सरपंच की भूमिका अदा कर चुके हैं। ऐसे में आज विष्णुदेव साय सूबे के मुख्यमंत्री हैं तब ग्राम पंचायतों के अंदर सरकारी योजनाओं में बंदरबांट, घपलेबाजी और कमीशनखोरी क्या अच्छी बात है? आखिरकार पूरे गांव का माई बाप होने का तमगा हासिल करने वाले सरपंच अब भ्रष्टाचार में क्यों डूबकी लगाने के लिए उतारू नजर आते हैं?

बालोद: सांसद निधि से प्राप्त हुई टिना शेड निर्माण कार्य की पांच लाख राशि को ग्राम पंचायत बोहारा सरपंच के द्वारा हजम करने की खबर प्रकाशित होते ही गुरूर जनपद क्षेत्र में मौजूद कई हजमखोर सरपंचों की हालत हुई पतली। ऐसे में कुछ दिन बाद एक बार फिर अंचल के ग्राम पंचायतों में सरपंच चुनाव संपन्न होना तय है। ज्ञात हो कि अंचल के अंदर मौजूद कई ग्राम पंचायतों में चुने गए सरपंचों द्वारा फर्जी बिल बाऊचर के जरिए भ्रष्टाचार का खुलेआम बंदरबांट वाला खेल खेला गया है। इस दौरान अंचल में स्थित ज्यादातर ग्राम पंचायतों में लाखों रूपए वारा न्यारा होने की जानकारी प्राप्त हुई है। हालांकि इस तरह से सरकारी पैसा का इस्तेमाल इस बंदरबांट नामक खेल को खेलने के लिए सरकार ने ग्राम पंचायतों के अंदर आम जनता की मेहनत से कमाई गई पैसों को ट्रांसफर नहीं किया है। अपितु इन पैसों का इस्तेमाल आम आदमी की भलाई और विकास कार्यों में खर्चा किया जा सके इसलिए सरकार के द्वारा पैसा ट्रांसफर किया है, लेकिन इस खेल के तहत एक छोटे से ग्राम पंचायत बोहारा के सरपंच द्वारा जब बकायदा नया कार खरीदी कर लिया जाता है,तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकारी योजनाओं को ग्राम पंचायत तक लेकर आने का दावा करने वाले सफेदपोश समाज के ठेकेदार क्या क्या नहीं खरीद सकते होंगे? वंही भ्रष्टाचार के मामले में सोचने वाली बात यह है कि यदि भ्रष्टाचार के बलबूते ही सरकार विकास की नींव को मजबूत करना चाह रही है, तब क्या ऐसे में विकास की अवधारणा को मजबूत माना जा सकता है। आखिरकार अभेद सरकारी सिस्टम होने के बावजूद जमीनी धरातल पर भ्रष्टाचार का दिमक भंयकर तरीके से कैसे बढ़ रहा है? क्या सरकारी मशीनरी भ्रष्टाचार को लेकर फेल हो चुकी है और यदि फेल हो चुकी है तो यह किसकी जवाबदेही है? सरकार जवाबदेह लोगों पर भी कार्यवाही करने की नियत क्यों इजाद नहीं कर सकती है। चूंकि ग्राम पंचायतों के अंदर ट्रांसफर की गई एक एक रूपया का हिसाब सरकार रखने का दावा आम जनता के समक्ष प्रस्तुत करती है और इस दावा को पूरा करने के लिए सरकार तमाम सरकारी मशीनरी का उपयोग करती है। बावजूद इसके जमीनी धरातल पर निल बट्टा सन्नाटा पसरा हुआ दिखाई देना सरकार की नियत और सरकारी मशीनरी की कार्यशैली पर बहुत बड़ा सवाल खड़ा करती है। ग्राम पंचायतों के अंदर निर्माण कार्यों में ठेकेदारों और नेताओं से लेकर इंजीनियर, आडिटर, सरपंच, पंचायत सचिव सब मिलकर कर रहे हैं इमानदारी के नाम पर बेड़ा गर्त। कमीशनखोरी घोटालेबाजी और बंदरबांट की मुहिम को सुचारू रूप से संचालित करने हेतू उच्च पैमाने पर किया जाता है पंचायती राज अधिनियम एक्ट को दरकिनार। ऐसे में समाज के बुद्धिजीवियों से उम्मीद किया जा रहा है कि भ्रष्टाचार को मिटाने हेतू अब उन्हें ही आवाज बुलंद करना होगा।



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