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आदीवासियों की जमीन पर दिनों-दिन आदीवासी ही हो रहे हैं बेगैरत का शिकार, जवाब दो विष्णुदेव साय की सरकार

 

"रायपुर शहर के संस्थापक राजा रायसिंह जगत गोंड़ की मुर्ति छत्तीसगढ़ राज्य के राजधानी रायपुर के अंदर शायद एक भी जगह उपलब्ध नहीं किन्तु आदीवासी मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के रहते हुए छत्तीसगढ़ राज्य की सरजमीं पर गैर छतिसगढ़ीहा महान आत्माओं की मूर्तियों जगह जगह भरमार हो चली है। भला हो कुदरत और कानून का कि वक्त रहते हुए आशाराम बापू और गुरमति राम रहीम समाज के ठिकाने लग गये वरना राजधानी रायपुर में उनके भी बड़ी बड़ी मूर्तियां लगी हुई लोगों को दिखाई देता। ऐसे में गौर करने वाली बात यह है कि आखिरकार हम अपनी संस्कृति और सभ्यता को लेकर कितना जागरूक हैं। कहा जाता है कि यदि किसी राष्ट्र की सबसे बड़ी संपत्ति आंकी जाये तो वह उसकी सभ्यता और संस्कृति ही होती है। लिहाजा सभ्यता और संस्कृति की रखवाली बहुत आश्यक है"

सरकारी फाइलों के मुताबिक आज से कुछ बरस पहले छत्तीसगढ़ राज्य की इस सरजमीं को आदीवासियों की कर्मभूमि व जन्मभूमि के तौर पर जाना जाता था किन्तु समय के साथ साथ आदीवासियों की इस सरजमीं से आदीवासियों की संख्या दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है। अलबत्ता बाहरी लोगों की और गैर आदिवासियों की संख्या दिनों-दिन तेज गति से बढ़ रही है। वंही लगातार हो रही सरकारी और समाजिक अनदेखी के चलते आदीवासी परिवार लगातार हासिये पर पहुंच रहे हैं और इसके परिणाम के चलते इस धरती के मूल निवासी अपनी पुरखों की जमीन तक को कौड़ियों के दाम में बेंच खाने को मजबूर हो चले हैं। निश्चित रूप से बहू संख्यक वर्ग में बिखराव को लेकर जब चुने हुए बहु संख्यक वर्ग से ताल्लुक रखने वाले एक नुमाइंदा खुलेआम बहु संख्यक वर्ग से बंटेंगे तो कटेंगे की बात सार्वजनिक रूप से कह सकता है तो दिन प्रतिदिन कम हो रही आदीवासियों की संख्या पर आदीवासियों को क्या बोलने का अधिकार नहीं है? आखिरकार सरकार आदीवासियों को उनकी संवैधानिक अधिकारों के मुताबिक जीवन जीने का अधिकार बखूबी तरीके से क्यों नहीं देना चाहती है? क्यों आदीवासियों की जल जंगल जमीन को दिन रात लूटा और छीना जा रहा है। आखिरकार संरक्षित प्रजाति के लिए बनाई गई संरक्षण का क्या नियत है और क्यों सरकार आदीवासियों की दुर्दशा पर मगरमच्छ वाली आंसू ही बहाते हुए दिखाई देती है। बहरहाल छत्तीसगढ़ राज्य के सरजमीं पर सत्ता सरकार का सपना संजोए रखने वाले हर राजनीतिक दलों को गंभीरता से इन तमाम सवालों को लेकर विचार करना चाहिए क्योंकि यदि हम अपनी संस्कृति की रखवाली करने वाले लोगों को संरक्षण देने में असफल साबित हुये तो हमारा भी अंत एक न एक दिन जरूर होगा किन्तु किस तरह और किस तरह से होगा यह भविष्य के गर्भ में पल रहा है। गौरतलब हो कि राज्य में इन दिनों लगातार जंगलों को कांटने, जमीन को नापने, नदियों को झानने और गुरब्त्तो को मारने का सिलसिला तेज गति से चरम सीमा पार करते हुए दिखाई दे रहा है। इस बीच छत्तीसगढ़ राज्य के अंदर आदीवासी मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की सरकार है। विष्णुदेव साय सरकार के विषय में ज्यादातर विरोधी तर्क देते हैं कि यह मोदानी की सरकार है और यह सरकार सिर्फ मोदानी के लिए काम कर रही है। हसदेव अरण्य की सरजमीं पर मौजूद जंगल से लेकर बस्तर संभाग के जमीन में छुपे हुए खनिज संपदा को भारतीय जनता पार्टी के डबल इंजन वाली विष्णुदेव साय की सरकार मोदानी और उनके मित्रों को बेंच रही है, जबकि आदीवासियों की बातों को अनसुना कर दरकिनार किया जा रहा है। अब चिंतन करने वाली बात यह है कि मोडानी छत्तीसगढ़ राज्य के अंदर कौन है? सूबे के ज्यादातर बड़े बुजुर्ग कहा करते थे कि छत्तीसगढ़ राज्य का फैसला दिल्ली के बजाय छत्तीसगढ़ राज्य में होना चाहिए ताकि स्थानीय जरूरतों की पूर्ति सही तरीके से उपलब्ध हो सके, लेकिन विडंबना यह है कि डबल इंजन सरकार के अंदर ज्यादातर फैसला दिल्ली से लिये जाने की चर्चा गुंजेमान है। 

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