छत्तीसगढ़ राज्य की सरजमीं अपनी पौराणिक विरासत और रिती रिवाजों के लिए पूरे दुनिया भर में मशहूर है। इस बीच यंहा की मोठ बोली का इसमें महत्वपूर्ण योगदान है। हालांकि विगत कई वर्षों से छत्तीसगढ़ राज्य की सरजमीं पर पौराणिक रिती रिवाज आधुनिकीकरण की हत्थे तेज गति से चढ़ रहा है। बावजूद इसके पौराणिक विरासत को बचाएं रखने के लिए कुछ लोगों का संघर्ष जारी है। गौरतलब हो कि छत्तीसगढ़ राज्य के समूचे भू भाग में स्थित पावन सरजमीं पर भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी अब आम बात सी बन चुकी है। इस बीच जगह जगह स्थित नरवा की छाती को चीर कर रेत उत्खनन कर बौराने की कथा जग जाहिर है। वंही घुरवा के जरिए आम जनता से कैसे गोबर बिनवाया गया था यह बताने की आवश्यकता नहीं है। बताया जाता है कि इस गोबरधन लीला के जरिए कुछ लोगों ने खूब पैसा कमाया तो वंही कुछ लोगों को कागज में छपे नाम के अलावा एक फुट्टे आने तक भी नशीब नहीं हुआ है। हालांकि इस बीच छत्तीसगढ़ प्रदेश के अंदर घुरवा का नाम खूब चला है। अब जब नरवा घुरवा बखुबी तरीके से तरक्की कर रहे हैं तब बेशर्म कैसे पीछे रहता, लिहाजा बेशर्म के दिन भी इन दिनों खूब बौर रहे हैं। जगह जगह रेत खदानों पर बेशर्म की खुब डिमांड है। रेत खदान से आई डिमांड के चलते बेशर्म की सम्मान सूची बढ़ सा गया है। जिसके चलते हाल के दिनो मे अब लोगबाग पैसे से इस बेशर्म के पौधे को खरीदने के लिए मजबूर हो चले हैं। ऐसे में छत्तीसगढ़ राज्य के अंदर पुराने जमाने से काम आने वाली भरवा का भी मन बदल गया है। भरवा की मानें तो ऐसे वैसों को दिया उनकी भी तो लिफ्ट करा दे। दरअसल छत्तीसगढ़ राज्य के ग्रामीण इलाकों में यह भरवा का पौधा काफी पुराने जमाने से काम पर लिया जाता रहा है, लेकिन आधुनिकीकरण के इस दौर में इस पौधे का उपयोग कम हो गया है। परिणामस्वरूप भरवा प्रजाति का बड़ा घांस खेत खलिहानों और मैदानों के अंदर से तेज गति से खत्म होने के कगार पर पहुंच गया है।