मुकेश कश्यप
कुरूद. मुस्कुराती पलकों में खुशियों और उम्मीदों के दीपक जलाएं लोगों के लिए दीपावली पर्व परिवार की खुशहाली की आस लेकर आया है।इन्ही भावनाओं के साथ छत्तीसगढ़ की परंपरा का निर्वहन करते हुए नगर के गौरा चौरा में धनतेरस और उसके एक दिन पूर्व से पारंपरिक गड़वा बाजा की मधुर धुन में गौरी-गौरा जगाने की परंपरा शुरू हो गई है।
मंगलवार और बुधवार रात्रि को सरोजनी चौक में स्थित गौरा चौरा में पर्व समिति और स्थानीय लोगों द्वारा जगमगाते दिए और फूटते फटाखे की गूंज के बीच परंपरा का निर्वहन करते हुए गौरी-गौरा जगाने की रस्म अदा की गई।
विदित है कि पर्व मनाने की शुरुआत धनतेरस से होती है। इस दिन गौरा चौरा में शाम ढलने के बाद गौरा समिति से जुड़े लोग बाजे-गाजे के साथ पहुंचते हैं। फिर पूजा कर गीत गाकर गौरा-गौरी जगाने की रस्म पूरी होती है। दीपावली के दिन सुबह तालाब से मिट्टी लाकर गौरा-गौरा बनाकर उसे रंगा जाता है। वहीं रात को बाजे-गाजे के साथ गौरा-गौरी की बारात निकाली जाती है। इसके उपरांत गौरा-गौरी की मूर्ति को विधिविधान से स्थापित कर पूजन किया जाता है और विधिविधान अनुसार अगले दिन इसका विसर्जन किया जाता है।
हमारे प्रदेश में पारंपरिक लक्ष्मी पूजा गोवर्धन पूजा के दिन गौ माता की पूजा करके मनाई जाती है। वहीं गोवर्धन पूजा की रस्म के साथ अगले दिन भाईदूज पर मातर उत्सव के साथ पांच दिवसीय इस पर्व का धूमधाम से समापन होता है।