काफी लंबे अरसे से बदहाली की बदहजमी से जूझती हुई गंगरेल बांध के डूब प्रभावित क्षेत्र के 52 गांव, जबकि साय सरकार अपनी हाजमा दुरुस्त करने हेतू गंगरेल बांध में 5 और 6 अक्टूबर 2024 को आयोजित कर रही है जल जगार महाउत्सव। उक्त कार्यक्रम के दौरान लाखों रूपए पानी में बहा दिए जायेंगे वंही डूब प्रभावित 52 गांव के अंदर आज भी अमृतकाल के इस दौर में मूलभूत सुविधा को लेकर सन्नाटा का आलम पसरा हुआ है।
तुम्हारी फाइलों में,
गांव का मौसम गुलाबी है
मगर ये आंकड़े झूठे हैं,
ये दावा किताबी है।
धमतरी: राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भारत के अंदर मौजूद ग्रामीण व्यवस्था को लेकर कहा है कि भारत की आत्मा गांव में बसता है यदि भारत को देखना और समझना है तो भारत के गांव में जाकर ग्रामीण जन जीवन को देखना चाहिये। निश्चित रूप से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी का यह विचार पूर्ण रूप से अटूट सत्य के साथ सही है। चूंकि देश के आधा आबादी गांव में निवासरत है,लेकिन विडंबना इस बात को लेकर है कि देश के कर्णधार मानें जाने वाले हमारे जनप्रतिनिधि और जन सेवक इस बात से कितना तव्वजो रखते हैं। गौरतलब हो कि देश के अंदर गांव में निवास करने वाले ज्यादातर नागरिकों के द्वारा यह सवाल पूछा जाता है कि क्या जन सेवक रूपी सफेदपोश चोला पहनकर सरकारी योजनाओं में कमीशनखोरी का लार टपकाने वाले हमारे नेता गांव में विकास की गंगा को बहाने हेतू निस्वार्थ भाव से काम कर रहे हैं? क्या कमीशनखोरी का जाल ग्राम पंचायत से लेकर मंत्रालय तक नहीं फैला हुआ है? क्या कोई सरकारी बाबू गांव में होने वाले निर्माण कार्यों के अंदर बैगर निवछावरखोरी करें रह सकता है? वैसे देखा जाए तो भारत आज विश्व के चंद अमीर देशों की सुची में विराजमान हैं। बावजूद इसके राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी के द्वारा भारत के गांव को लेकर जो अवधारणा प्रस्तुत की गई है,उस अवधारणा के मुताबिक हमारे कर्णधार सफेदपोश वर्दी धारी जनसेवक लगातार फेल होने की दिशा में अग्रसर दिखाई दे रहा है।
ईश्वर ने जब सृष्टि को रचा तब किसी भी चीज को रंग से खाली न रखा छोड़ दिया बस पानी को बेरंग बेस्वाद। ईश्वर की इस ज्यादती पर बहुत रोई पानी। पानी घुल रहा था अपनी उदासियों में और उदासियां घुल रही थी सृष्टि में कंहा पता था पानी को कि वो हर रंग में घुल कर सबकी तृष्णा बुझायेगी। निसंदेह जल ही जीवन है लेकिन जल की उपयोगिता और इसकी भूमिका को क्या सही मायने में इंसान समझ पा रहे है या समझ पायेंगे? गौरतलब तबल हो कि छत्तीसगढ़ राज्य के सबसे बड़े बांध के तौर पर विख्यात गंगरेल बांध को बने हुए 45 साल से अधिक हो गया है। बांध निर्माण में 52 गांव के लोगों ने अपनी पुरखों की जमीन दी। डूब में आने वाले गांव वाले लोगों को आनन फानन में बैगर मूलभूत सुविधा प्रदान किये बैगर बसा दिया गया। मूलभूत सुविधा में बिजली पानी सड़क स्वास्थ्य स्कूल और अनेक चीज शामिल हैं। इस बीच सरकार गंगरेल बांध में मौजूद पानी के जरिए कई लोगों की प्यास और भूख मिटाने का दावा करती है, लेकिन जिन्होंने अपनी पुरखों की जमीन और अपने बच्चों के सपनों को दुसरो के लिए बलिदान दिया उनका क्या? गांव शहर या फिर देश?
गंगरेल बांध के डूबान में आये हुए ज्यादातर गांव गंगरेल,चंवर,चापगांव,तुमाखुर्द,बारगरी,कोड़ेगांव,मोंगरागहन,सिंघोला, मुड़पार,कोरलमा, कोकड़ी,तुमाबुजुर्ग,कोलियारी,तिर्रा, चिखली,कोहका,माटेगहन,पटौद,हरफर,भैंस मुड़ी,तासी,तेल गुड़ा,बरबांधा,सिलतरा,बरपदर,मोंगरी, विश्रामपुरी,उरपुटी,कलारबाहरा,किशनपुरी जैसे 52 गांव है। इन गांवो में रहने वाले गंगरेल बांध डूब प्रभावित लोगों को उनके बलिदान का जिस तरह से सरकार ने बदहाली का इनाम सौंपा है निश्चित रूप से इस वाकया को सही नहीं ठहराया जा सकता है। अब सोचने वाली बात यह है कि आखिरकार सरकार हर आदमी को मूलभूत सुविधा पहुंचाने का जो दावा जमीनी धरातल पर करती है वह कंहा तक सही है।
निलेश दिवान साहू जिला अध्यक्ष हमर राज पार्टी जिला धमतरी - सद्गुरु कबीर साहब जी ने कहा है कि साई इतना दीजिये जामे कुटुम्ब समाय। मै भी भूखा ना रहूं साधु न भूखा जाए, लेकिन जिस तरह से शासन और प्रशासन से जुड़े हुए तमाम लोग गंगरेल बांध बनने के इतने सालों बाद भी आजतक डूब प्रभावित 52 गांव के लोगों को भूखा रखने का काम करते हुए उन्हें धोखा देने का काम किया है। उसे देखकर लगता है कि सत्ता सरकार में रहने वाले लोगों की इंसानियत मर चुकी है। सरकार में रहने वाले लोग यदि चाहते तो डूब प्रभावित क्षेत्र के बच्चों को बढ़िया स्कूल सड़क बिजली पानी की सुविधा बहाल कर सकते थे लेकिन जांगर चोर नियत के चलते दुर्भाग्य है के साथ कहना पड़ रहा है कि गंगरेल बांध के लिए अपनी पुरखों की जमीन को देने वाले लोग आज मूलभूत सुविधाओं से कोसो दूर है 'जबकि इन्हीं 52 गांव से जुड़े हुए लोगों की कुर्बानी और बलिदान के चलते आज छत्तीसगढ़ प्रदेश खुशहाली और समृद्धि का जश्न मना रहा है। भिलाई इस्पात संयंत्र से लेकर आम जन जीवन का खाना और दाना की व्यवस्था इन 52 गांव वाले लोगों के बलिदानों के चलते संभव हो पाता है। ऐसे में सरकार को इनके ओर ध्यान देना चाहिए।