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बस्तर में हो रही नक्सलवाद के नाम पर निर्दोष आदीवासियों के साथ अत्याचार का मामला विधानसभा मानसून सत्र में गुंजा।


रायपुर : एक बार फिर बस्तर की भूमि पर अत्याचार और दमन की गाथा इस भूमि पर रहने वाले गरीब और मजलूम आदिवासियों के साथ जो बरसों से गढ़ी जा रही है 'उसे लेकर छतिसगढ़ विधानसभा की मानसून सत्र में बवाल देखने को मिला है। विधानसभा मानसून सत्र के तीसरे दिन बीजापुर विधायक विक्रम मंडावी और कवासी लखमा सहित तमाम कांग्रेसी नेताओं ने भारतीय जनता पार्टी की डबल इंजन सरकार की नक्सलवाद खात्मा पर की जा रही सरकारी आंकड़ों की खोली पोल। विक्रम मंडावी ने कहा कि आदिवासियों को जबरन नक्सली बताकर मारा जा रहा है। वंही कवासी लखमा ने बताया कि बीते दिनों हुई मुठभेड़ को स्थानीय आदिवासी फर्जी मानकर चल रहे हैं। जिस जगह में मुढ़भेड़ हुई है 'उस जगह में आज भी स्थानीय आदिवासियों के द्वारा फर्जी मुठभेड़ के खिलाफ आंदोलन किया जा रहा है। हालांकि गृहमंत्री विजय शर्मा हाल के दिनों में हुई पेड़िया मुढ़भेड़ को लेकर सदन को आश्वस्त नहीं कर पाये कि यह फर्जी मुठभेड़ नहीं था,लेकिन इस मामले में जवाब देते हुए गृहमंत्री विजय शर्मा ने कहा कि इस मुढ़भेड़ में मारे गए आदीवासी पर दर्ज मुकदमे कांग्रेस शासनकाल की है। यह सवा आना सत्य है कि फर्जी नक्सली मुठभेड़ के नाम पर आदिवासियों को गाजर मूली की तरह से कांटा जा रहा है चाहे वह किसी भी राजनीतिक दल की सरकार रही हो वंही दूसरी ओर सदियों से बस्तर की इस रक्त रंजित हो चुकी भूमि को अपने पुरखों की सरजमीं मानकर चल रहे आदिवासियों की जमीनों को कौड़ियों के दाम बढ़े बड़े कार्पोरेट घरानों और नेताओं के हाथों में बैगर आदिवासियों की मंजरी लिए बिना ही बेंचा जा रहा है। नक्सलवाद से पीड़ित बस्तर के ज्यादातर आदिवासी आज डर और भय के मंजर से दूर जान-माल की रक्षा और सुरक्षा के मद्देनजर बस्तर छोड़कर तेलंगाना आंध्रप्रदेश जैसे राज्यों में पलायन कर रहे हैं। बस्तर में रहने वाले ज्यादातर आदीवासीयो को नक्सलियों की गोली और अवैंसाधानिक जन अदालतों से डर है तो वंही दुसरी ओर सरकार के द्वारा चलाई जा रही फर्जी नक्सलवाद अभियान से भी उतना ही डरे हुए है। ऐसे में बस्तर के बांसिदे आज अपने ही देश में तिल तिल कर मरने के लिए मजबूर हो चुके हैं। सोचने वाली बात यह है कि जब पूरे पांच साल तक प्रदेश में सरकार चलाने वाली कांग्रेस पार्टी अपने तमाम नेता जो कुछ साल पहले नक्सली हमला में शहीद हुए थे उन्हें न्याय दिलाने में असफल साबित हुई तब ऐसे में क्या गरीब और मजलूम आदिवासियों को न्याय मिल पाना संभव हो सकता है। गौरतलब हो कि छतिसगढ़ प्रदेश सरकार बस्तर में नक्सलवाद की खात्मा और शांति स्थापित करने की इच्छा रखते हुए काम करने की बात कह रही है। अब देखना यह दिलचस्प होगा कि सरकार के इस सोंच का प्रभाव नक्सलवाद से पीड़ित आदिवासियों पर किस तरह से पड़ता है।

anutrickz

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