रोटी मंहगी, बिजली मंहगी, सड़क मंहगी,दवा पानी मंहगी, आखिरकार गरीबों के जान की किमत कितनी मंहगी? @ विनोद नेताम कलम से क्रांति जारी है ....
रायपुर : छत्तीसगढ़ राज्य के अंदर डबल इंजन की त्रिदेव रुपी सरकार बनने के बाद बिजली की दरों में वृद्धि कर दी गई है। इससे पहले कांग्रेस पार्टी की किसान हितैषी सरकार के तौर पर मशहूर रह चुके भूपेश बघेल की सरकार ने हाफ बिजली बिल योजना को प्रदेश की सरजमीं पर पूरे पांच साल तक लागू कर रखा था। जिसका लाभ प्रदेश के अंदर मौजूद सभी बिजली उपभोक्ताओं को भरपूर तरीके से मिला हुआ है। हालांकि इस योजना के चलते विद्युत वितरण कंपनी छत्तीसगढ़ को काफी नुकसान उठाना पड़ा है और इसकी भरपाई करना बहुत जरूरी बताया जा रहा था। जाहिर सी बात है 'फोकट में बैठकर कुंए का पानी भी नहीं पुरता है। ऐसे में लोगों को फोकट की आदतों से बाज कर मेहनत की कमाई को खाने की आदत डालना चाहिए ताकि कभी भी किसी तरह की पेरेशानीयो का समाना किसी को न करना पड़े। अब जो खाया है उसे निकालना भी तो पड़ेगा। ऐसे में छत्तीसगढ़ प्रदेश के अंदर सत्ता परिवर्तन के बाद त्रिदेव सरकार की ओर से बिजली बिलों की दरों में वृद्धि यह पहला सबसे बड़ा फैसला बताया जा रहा है, जिसका भार सीधे तौर पर मध्यम वर्गीय परिवारों के ऊपर पड़ने वाला है। जैसे कि हमारे श्रुधि पाठकों को यह भंलिभांति पता है कि छत्तीसगढ़ राज्य की मूल पहचान यानि कि आत्मनिर्भरता महज खेती और किसानी से जुड़ा हुआ है। यहां पर निवास करने वाले ज्यादातर बांसिंन्दो की दैनिक दिनचर्या खेती और खेती से जुड़े हुए ज्यादातर कार्य है। अपने मेहनत और काबिलियत के दम पर यहां के बांसिदे पत्थर का सीना कर अपने लिए दो वक्त का रोटी निकालने का हुनर पुरे ईमानदारी से जानते हैं और इसीलिए शायद छत्तीसगढ़ राज्य की पावन भूमि को समस्त संसार धान की कटोरा के रूप में पहचानते हैं। प्रदेश की ज्यादातर हिस्सों में खनिज संपदा का भंडार है। छत्तीसगढ़ राज्य पूरे एशिया महाद्वीप में सबसे ज्यादा बिजली उत्पादन करने की औकात रखने वाला राज्य है। यहां की बिजली को देश के कई राज्यों में बेचा जाता है तो वंही दूसरे राज्यों में स्थित बिजली संयंत्रों को यंहा से ही कच्चा कोयला की सप्लाई किया जाता है। कुल मिलाकर देखा जाए तो बिजली के मामले में छत्तीसगढ़ राज्य आत्मनिर्भर हैं, लेकिन सवाल यह उठता है कि यह आत्मनिर्भरता आखिरकार किसके बुनियाद पर हासिल हुआ है। जल जंगल जमीन की बात कहने वाले गरीब मजदूर आदीवासी किसान कंहा है। जिनकी जमीन से निकाली गई कोयला से बनी हुई बिजली को बेचकर बाजार में मुनाफा कमाया जा रहा है। क्या इस मुनाफे में उनका सिर्फ इतना ही अधिकार है कि वह चुपचाप सरकार के द्वारा सुनिश्चित की गई बिजली की दरों को अपनी जेब से भरे। बहरहाल मामले को लेकर सियासी गलियारों में तरह तरह की चर्चा बना हुआ दिखाई दे रहा है। अब आगे यह देखना दिलचस्प होगा कि मामले को लेकर आगे चलकर क्या सियासी सरगर्मी बढ़ती है।