@ विनोद नेताम #
बालोद : आज के वर्तमान युग में पूरे दुनिया भर में सबसे ज्यादा मांग यदि किसी गौण खनिज संपदा की है तो वह रेत है। रेत उत्खनन इस वक्त पूरे संसार भर में सबसे अधिक तेज गति से किया जा रहा है। निर्माण उद्योग को अपनी परियोजनाओं के लिए भारी मात्रा में रेत की आवश्यकता होती है। ऐसे में जाहिर सी बात है कि इस धंधे में अधिक पैसा है,जिसके चलते देश के अधिकांश राज्य जिसमें छत्तीसगढ़ राज्य भी शामिल हैं। वहां पर रेत खनन को लेकर कड़े प्रतिबन्धात्मक कानूनी ढांचे उपलब्ध होने के बावजूद, जिस तरह से नियमों को ताक में रख कर दिन रात उद्योगों को अधिकांश रेत नदियों की छाती को चीरकर क्षमता से अधिक खोदकर उपलब्ध करवाई जा रही है। वह निश्चित रूप से यह पर्यावरण के बिहाप पर यदि देखा जाए तो चिंता करने वाली बात है। प्रदेश के अंदर मौजूद लगभग हर नदी जहां पर रेत की मात्रा उपलब्ध है वहां पर 'रेत माफिया' लाभदायक रेत के लिए नदी की गहराई को बड़े बड़े मशीनों से शुद्ध करते हुए दिखाई देते हैं! जानकारो की मानें तो रेत उत्खनन का कार्य जिससे रुपये का अवैध वार्षिक कारोबार होता है,1000 करोड़! अपनी अवैधता के बावजूद, रेत खनन विभिन्न सामाजिक और आर्थिक दुविधाओं के कारण बना हुआ है।
(नियमानुसार मशीन से रेत की खुदाई प्रतिबंधित है,लेकिन सवाल यह भी उठता है कि जो नियम पूरा नहीं किया जा सकता है आखिरकार उस नियम को बनाया ही क्यों गया है!)सबसे पहले, यह राज्य सरकार और पंचायतों को राजस्व लाकर देता है,जो भ्रष्टाचार और संघर्ष की मार्ग को प्रशस्त करता है। इस प्रकार, स्थानीय राजनेताओं, ठेकेदारों और नौकरशाहों के बीच संबंध समुदाय-आधारित प्रतिरोध को रोकने में सक्षम एक शक्ति गठजोड़ बनाने के लिए उभरते हैं। इस सांठगांठ के खिलाड़ियों को मीडिया द्वारा कुख्यात रूप से 'रेत माफिया' कहा जाता है। हालांकि पूरे भारत में सरकार और सुप्रीम कोर्ट के साथ पर्यावरण मंत्रालय और एन जी टी ने अवैध तरीके से रेत उत्खनन कार्यो पर प्रतिबंध लगा रखा हुआ है। इस प्रतिबंध और अन्य कारणों के अनेक पर्यावरणीय कारण हैं। जैसे कि रेत जलभृत के रूप में और नदी के तल पर प्राकृतिक कालीन के रूप में कार्य करती है। इस परत के अलग होने से नीचे की ओर कटाव होता है, जिससे चैनल के तल और आवास के प्रकार में परिवर्तन होता है, साथ ही नदियाँ और मुहाने गहरे हो जाते हैं और नदी के मुहाने का विस्तार होता है। जैसे-जैसे नदी प्रणाली कम होती जाती है, स्थानीय भूजल प्रभावित होता है, जिससे पानी की कमी होती है, जिससे कृषि और स्थानीय आजीविका पर असर पड़ता है। कानूनी उपायों के संदर्भ में, भूजल की कमी को नदी रेत खनन के साथ पेटेंट समस्या के रूप में नोट किया गया है। कानूनी कार्रवाई में कम विचार किया जाता है, लेकिन केंद्रीय रूप से प्रासंगिक, विशेषज्ञ पर्याप्त निवास स्थान और पारिस्थितिक समस्याओं पर भी ध्यान देते हैं, जिसमें "धारा आरक्षित निवास स्थान का प्रत्यक्ष नुकसान, धारा के जमाव से जुड़ी प्रजातियों की गड़बड़ी, प्रकाश प्रवेश में कमी, प्राथमिक उत्पादन में कमी, और भोजन के अवसरों में कमी" शामिल है।
(छत्तीसगढ़ राज्य की खनिज संपदा को बेंच खाने हेतू लगी हुई हाईवा की फौज ।)
बिते दिनों कांकेर जिले में रेत के अवैध उत्खनन के विरूद्ध सख्ती से कार्यवाही करने हेतू कलेक्टर के निर्देश, लेकिन बालोद जिला मुख्यालय से महज कुछ दूर पर अवैध तरीके से रेत उत्खनन धड़ल्ले के साथ जारी है,जबकि जिला मुख्यालय का मुखिया कलेक्टर ही होता है।
( तांदुला नदि की छाती को चिरता हुआ पोकलेन मशीन।)बता दें कि कांकेर कलेक्टर अभिजीत सिंह ने बिते दिनों समय-सीमा की साप्ताहिक बैठक लेकर विभिन्न विभागों में लंबित प्रकरणों एवं आवेदनों की समीक्षा की। इस दौरान उन्होंने जिले में रेत के अवैध उत्खनन की लगातार मिल शिकायतों को संज्ञान में लेते हुए इसमें संलिप्त लोगों के विरूद्ध सख्ती से कार्यवाही करने के निर्देश सभी एसडीएम एवं खनिज अधिकारी को दिए। कलेक्टर ने कहा कि जिले में रेत उत्खनन एवं अवैध वसूली के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। रेत परिवहन वाहनों के सभी वैध दस्तावेजों और अनुमति से संबंधित कागजातों का बारीकी से परीक्षण करें और किसी प्रकार की अनियमितता पाए जाने पर संबंधित लोगों के विरूद्ध तत्काल नियमानुसार कार्यवाही करें। साथ ही रेत भंडारण स्थलों का सतत् निरीक्षण कर उपलब्ध रेत का रिकॉर्ड के साथ मिलान कर उसका भौतिक सत्यापन करें। उन्होंने आगामी 10 जून के उपरांत रेत खनन का कार्य प्रतिबंधित करने के भी निर्देश खनिज अधिकारी को दिए थे जिसके बाद जिले में चल रही रेत खदानों पर अधिकारीयों द्वारा ताबड़तोड़ कार्यवाही को अंजाम दिया गया है। ( कांकेर जिला में हुई कार्रवाई का नजारा। )
वंही कांकेर जिला के पड़ोसी जिला बालोद ज़हां पर जिला मुख्यालय कार्यलय बालोद से महज कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित हिरापुर गांव के तांदुला नदि से खुलेआम रेत उत्खनन किया जा रहा है। मामले को लेकर सोसल मीडिया के अंदर काफी नाराजगी जताई जा रही है। जाहिर सी बात है, जब पड़ौसी जिला में रेत उत्खनन को लेकर प्रशासनिक कार्यवाही की जा रही है,तब बालोद जिले में कार्यवाही के नाम पर अधिकारीयों को क्या सच में सांप सुंघ गया है?
(धरी गई बालोद हाईवा परिवहन संघ की गाड़ियां ।)
आखिरकार अधिकारियों को क्या रेत उत्खनन से जुड़े हुए नियमों की जानकारी नहीं है। जिसके चलते नियमों को ताक पर रख कर खुलेआम नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही है। या फिर रेत उत्खनन करवाने के पीछे बड़े नेता और उद्योगपतियों के दबाव में कार्यवाही नहीं किया जा रहा है। बहरहाल मामले को लेकर जिला के अंदर लोगों में कड़ी प्रतिक्रिया है और मामले को लेकर लोगों के बिच प्रशासनिक अमला को लेकर कई सीधे सवाल हैं। अब देखना यह दिलचस्प होगा कि बालोद जिला मुख्यालय के अंदर मौजूद प्रशासनिक अधिकारियों की निंद मामले को लेकर कब खुलती हैं।