-->
Flash News

TOP BHARAT NEWS TEAM एक 24X7 LIVE STREAM TV NETWORK है, जिसमें पत्रकारों की टीम 24 घंटे छत्तीसगढ़ समेत देश की बड़ी व महत्वपूर्ण खबरे पोस्ट करती है। हमारे टीम के द्वारा दी जाने वाली सभी खबरें या जानकारियां एक विशेष टीम के द्वारा गहन संसोधन (रिसर्च) के बाद ही पोस्ट की जाती है . .... । TOP BHARAT NEWS All RIGHT RESEVED

समाजिक न्याय की कतार में सबसे निचली पायदान पर मौजूद आदीवासी समाज बिखराव की ओर,आखिरकार कुछ तो वजह होगी? इस बिखराव की ..... विनोद नेताम प्रदेश सचिव अखिल भारतीय पत्रकार सुरक्षा समिति छत्तीसगढ़ !

फाइल फोटो है।
फाइल फोटो 
रायपुर : दुनिया भर में मौजूद रहने वाले मूल निवासी परिवारों की संरक्षण और संवर्धन हेतू वैश्विक स्तर पर बड़ी बड़ी बाते हम सबने सुना और देखा है! इस बीच संसार भर में मौजूद रहने वाले लगभग सभी बुद्धि जीवी वर्ग धरती पर जीवन व्यतीत करने वाले मूल निवासी परिवारों को संरक्षण और सुरक्षा के साथ समाजिक स्तर पर समानता प्रदान करने की वकालत करते हुए आमतौर पर दिखाई देते है, लेकिन जमीनी धरातल पर मौजूद सच्चाई कुछ अलग ही कहानी बंया करती है! जैसे कि हम सभी को यह भंलिभांति पता है कि पैसा बेशक खुदा नहीं, लेकिन मौला कसम खुदा से कम भी नहीं है
( दिलिप सिंह जुदेव के मुखारविंद से निकली हुई निष्पक्ष सच्चाई) यह सवा आना सत्य है कि धरती के सबसे अमीर जगहों पर बसने वाले मूल निवासी बांसिदे इस धरती पर सबसे गरीब इंसानी जाति की क्षेणी में गीना व देखा जाता है और जैसा कि माना जाता है कि धरती पर सबसे कमजोर का शिकार सबसे पहले करना आसान होता है। ऐसे में संसार भर के उन तमाम बुद्धि जीवियों के द्वारा वैश्विक स्तर पर दी जाने वाली बड़े बड़े दलिलो पर खुलेआम थूं है, क्योंकि दुनिया भर में ज्यादातर मूल निवासी बासिंदे किसी न किसी बहाने से ही सही लेकिन गाजर मूली के समान कांटे जा रहे है! भले सरकार दुनिया के किसी भी कोने की हो लगभग यह स्थिति दुनिया के हर कोने पर एक समान है। कई वैश्विक स्तर की संस्थाओं ने अपनी रिपोर्ट में इस बात को लेकर कई बार सवाल खड़े किए है और दुनिया को कुदरत के नियमों से खिलवाड़ करने हेतू लताड़ लगाई है! हालांकि कई जगहों पर मानवीय मर्यादा की साख को दुनिया में स्थापित करने हेतू कुछ देश मूल निवासी बांसिदो को संरक्षण और सुरक्षा प्रदान करने हेतू अपनी सकल घरेलू उत्पाद का एक बड़ा हिस्सा खर्च कर रही है। बावजूद इसके विंडबना इस बात को लेकर है कि दुनिया भर में मौजूद रहने वाले मूल निवासी परिवार सुरक्षित नहीं है। वैसे देखा जाए तो भारत की सरजमीं मूल निवासी परिवारों की जन्मभूमि है! प्राचीन काल में आर्य दुसरे देश से भारत में आकर बस गए तब से आर्य भारत की पहचान बन चुकी है! इस बीच भारत की असल पहचान यहां के मूल निवासी परिवार कमजोरी,लाचारी,ग़रीबी और अशिक्षा से परेशान आज भी दैनिक दिनचर्या की संसाधनों के लिए एक एक फुटी कौड़ी को तरस रही है,जबकि देश के ज्यादातर हिस्सों में जितने भी बहुमुल्य खनिज संपदा निकाले जा रहे हैं उनमें से ज्यादातर जमीन इन्हीं मूल निवासी परिवारों में से जुड़े हुए लोग की है। अब लाख टके की सच्चाई यह है कि यदि मूल निवासी परिवारों के लिए संरक्षण और सुरक्षा जैसी कोई कानूनी और समाजिक बंधन न होती तो शायद मूल निवासी परिवार कब के खत्म हो चुके होते, लेकिन भारत सरकार मूल निवासी परिवारों को संरक्षित करने हेतू देश में कड़े कानून लागू कर रखी हुई है। हालांकि जो कर्म इन्हें दिन के उजियारे में खत्म करने हेतू नहीं किया जा सकता है,वह कर्म रात के अंधेरे में और गोपनीय नितीगत तरीके से चुपचाप अंजाम दिए जाने की बात आम हो गई है। जंगल में रहने वाले मूल निवासी बांसिदो को समाज के नाम पर, क्षेत्र के नाम पर तो कभी सच और झूठ के नाम पर बरगलाया जा रहा है और इन्हें एक एक करके अलग अलग हिस्सों, समुहो,और गुटो में किसी न किसी जहर का सहारा लेकर बांटा जा रहा है ताकि इनका खात्मा स्वत: हो जाए या फिर वे इतना मजबूर हो जाए कि विरोध का स्वर सात पुश्तों तक उनकी नस्ले बुलंद‌ न कर पाए। गृह मंत्रालय के रिपोर्ट की मानें तो पूरे भारत में सबसे ज्यादा आपराधिक मामला अनुसुचित जन जाति,व अनुसुचित जाती के लोगों के नाम पर दर्ज है,जबकि देश के ज्यादातर जज उच्च श्रेणी वर्ग हैं आते हैं! आजादी के 76 सालों बाद भी देश के अंदर रहने वाले ज्यादातर मूल निवासी परिवारों की स्थिति लगभग आज भी एक जैसी है। वंही सत्ता पर काबिज रहने वाले नेताओं की फौजों की सुविधाओं में कोई कमी नहीं है! हैरत की बात यह है कि ज्यादातर मूल निवासी परिवारों को बिते कई अरसो से अमीरों के द्वारा बीच में लड़ाया जा रहा है और एक दूसरे को लड़वा कर उनकी संख्या को नियंत्रित करने का प्रयास किया जा रहा है ताकि उनके जमीनों को कारपोरेट घरानों में पानी के मोल बेचा जा सके। मूल निवासी बांसिदो की अलग अलग समुदाय,जाति समाज में बंटे हुए होने के चलते कारपोरेट घरानों के लिए यह बड़ा आसान काम है, लेकिन किसी भी आसन काम को शिक्षा संगठन और समाजिक एकता पल भर में खत्म कर सकता है। जरूरत है नेक सोच की इसलिए सभी मूल निवासी परिवारों को बैठ कर चिंतन शिविर आयोजित करना चाहिए और विशाल समाजिक एकता पर बहस करना चाहिए बांकी स्वयं विचार करें @ विनोद टाप भारत न्यूज नेटवर्क।

anutrickz

TOP BHARAT

@topbharat

TopBharat is one of the leading consumer News websites aimed at helping people understand and Know Latest News in a better way.

GET NOTIFIED OUR CONTENT