मुकेश कश्यप
रायपुरा:- शनिवार को पंचमी के खास अवसर पर छत्तीसगढ़ कहार भोई समाज की कुलदेवी जगतजननी माँ कन्हाई परमेश्वरी मंदिर रायपुरा में माता रानी का विधिवत शुभ मुहूर्त मेंसोलह श्रृंगार किया गया।
मिली जानकारी अनुसार समाज जनों की उपस्थिति में माता रानी का विधिवत सोलह श्रृंगार किया , सभी ने श्रृंगार सामग्री चढ़ाकर माता के प्रति अपनी आस्था प्रकट की।इस दौरान माता रानी की भव्य पूजा आराधना करके प्रसादी का भोग लगाकर जगत जननी के सम्मुख समाज और जनकल्याण की अर्जी लगाई गई।इस बार भी माता के भुवन में मनोकामना ज्योति प्रज्वलित की गई है।भक्त गण जस सेवा गीतों के साथ भक्ति रस में डुबकी लगा रहे है।
इस बार भी माता सेवा में मंदिर प्रभारी पोषण भोई ,आशीष घेवरिया ,सोमा भोई ,गोविंद गौतम ,भुवन लाल अवसरिया महासभा अध्यक्ष,श्रीमति पदमा कहार महासभा उपाध्यक्ष ,पुष्कर कहार महासभा सचिव ,गणेश गोहिल महासभा कोषाध्यक्ष ,काजल कहार ,कुंदन औसर पूर्व महासभा अध्यक्ष,धनंजय गौतम ,कमलेश कहार ,मनोहर भोई ,विक्रम कहार, ओमप्रकाश, मनीष अवसरिया, नंद किशोर गौतम, यशवंत यमराज, तुलसी गौतम, सुरेश सोनवानी, मिथलेश बोयर, संतोष कहार,रूपेश भार्गव, लक्ष्मी कहार, श्रवण भोई, दिनेश कहार, मुकेश अवसरिया, अमित अवसरिया, केतन भोई,अजय कश्यप, मुकेश कश्यप एवं समस्त मंदिर सदस्यों की सहभागिता प्राप्त हो रही है।
मान्यता है कि नवरात्रि में मां दुर्गा को 16 श्रृंगार चढ़ाया जाता है। इससे जुड़ी ऐसी मान्यता है कि इससे घर में सुख और समृद्धि आती है। अखंड सौभाग्य का वरदान भी मिलता है। यही वजह है कि भारतीय संस्कृति में सोलह श्रृंगार को जीवन का अहम और अभिन्ना अंग माना गया है। नवरात्रि में मां को सोलह श्रृंगार का चढ़ावा चढ़ाने के अलावा महिलाओं को भी इस दौरान सोलह श्रृंगार जरूर करना चाहिए। ऋग्वेद में भी सौभाग्य के लिए सोलह श्रृंगारों का महत्व बताया गया है। सोलह श्रृंगार में मौजूद हर एक श्रृंगार का अलग अर्थ है। बिन्दी को भगवान शंकर के तीसरे नेत्र से जोड़कर देखा जाता है। वहीं सिंदूर सौभाग्य और सुहाग की निशानी होती है। महावर और मेहंदी को प्रेम से जोड़कर देखा जाता है। काजल बुरी नजर से बचाता है। मां का सोलह श्रृंगार करने से घर और जीवन में सौभाग्य आता है। जीवन में खुशियां ही खुशियां आती है। और जीवनसाथी का स्वास्थ्य अच्छा बना रहता है।
नवरात्रि का पांचवा दिन माता स्कंदमाता के पूजन से जुड़ा है। नवरात्रि का पांचवां दिन स्कंदमाता की उपासना का दिन होता है। मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी हैं। मां अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं। भगवान स्कंद कुमार कार्तिकेय नाम से भी जाने जाते हैं। ये प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने थे। पुराणों में इन्हें कुमार और शक्ति कहकर इनकी महिमा का वर्णन किया गया है। इन्हीं भगवान स्कंद की माता होने के कारण मां दुर्गाजी के इस स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है।