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भरोसे की हवा आखिरकार कैसे निकल गई।अब कका जिंदा है रे किस आधार पर गायेंगे लोग।

@Vinod Netam
राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी, आखिरकार भूपेश बघेल की भरोसे को ही छत्तीसगढ़ में जीत का फंडा क्यों मान कर चले?
आखिरकार जमीनी स्तर को बेहतर बनाने हेतू मेहनत करने वाले जमीन से जुड़े हुए नेताओं की पैरों तले जमीन कैसे खिसक गई? 
मोहब्बत की बाजार को बनियागिरी की दुकानदारी से दिन-रात रौशन करते हुए जनता की कमाई को सफेद पोशाक के आड़ में नुकसान पहुंचाने वाले कांग्रेसी नेताओं को छत्तीसगढ़ राज्य की जनता ने बेनकाब करते हुए आखिरकार घर में दिसंबर के महिने में क्यों बिठा दिया? वैसे इन दिनों छत्तीसगढ़ राज्य की धनहा मिट्टी में धान की फसल कटाई के बाद ओनहारी में मिलाकर धनिया बोनें का चलन रिवाज है। 
विधानसभा चुनाव का रिजल्ट आ गया है रिजल्ट आने से पहले कांग्रेस पार्टी के बड़े नेता धान कटाई में व्यस्त नजर आए थे लेकिन अब धनिया बोनें की शुरुआत भाजपा सरकार छत्तीसगढ़ राज्य की उपजाऊ भूमि पर करने वाली है।रायपुर : राजनीतिक पंडितों की मानें तो चुनाव सियासी सरजमीं पर सत्ता के खातिर शतरंज की तरह खेले जाने वाला एक दिलचस्प खेल है, लेकिन इस खेल में खिलाड़ी कब क्या कर गुजरेंगे और कब क्या हासिल कर लेंगे यह खिलाड़ी और उसके खेलने की तरीके पर ही डिपेंड करता है। 
बहरहाल इस खेल में पुरस्कार की मायने क्या होता है
यह बताने की आवश्यकता नहीं है,चूंकि इस खेल का असली दर्शक और मदारी आखिर में जनता को ही माना जाता है, लिहाजा इस में खेल मजे शतरंज के बिसात यानी खेल दिखाने वाले बंदर और भालूओं की होती है। पिछले पांच वर्ष से छत्तीसगढ़ राज्य की सियासी धरातल पर एक गाना खूब सुना गया है। 
इस गीत के बोल हैं कका जिंदा हे रे,काहे के चिंता भैय्या कका जिंदा हे रे....। 
कांग्रेस पार्टी के ज्यादातर नेता इस गीत पर श्मशान घाट तक में झूमते हुए छत्तीसगढ़ राज्य की सियासी सरजमीं पर देखे गए हैं यह कहें तो गलत नहीं होगा,जबकि बड़े बुजुर्ग कह गए हैं अति सर्वत्र वर्जिते।
निश्चित रूप से भूपेश बघेल की सरकार ने छत्तीसगढ़ राज्य की सत्ता में काबिज होने के बाद गांव,गरीब किसान और मजदूरों के लिए बेहतरीन योजनाएं संचालित करने में कोई कसर नहीं छोड़ा, लेकिन ज्यादा कुछ करने के चक्कर में ऐसा भी बहुत कुछ हुआ है।जिसके चलते आज शमशान घाट में ही यह गाना दोबारा सुना जायेगा यह स्थिति वर्तमान समय में बनती हुई नजर आ रही है। 
इसके मुख्य कारण स्पष्ट है। 
भूपेश कैबिनेट के 9 मंत्रीयो की बेदर्दी के साथ हार, जमीनी स्तर पर जबकि सुधार लाने हेतू कांग्रेस पार्टी हाईकमान ने बार बार सलाह दी थी। 
टी एस सिंहदेव जो कि रिजल्ट आने से पहले ही मुख्यमंत्री बनने की इच्छा जाहिर कर रहे थे उन्हें भी जनता ने दिखाया बाहर का रास्ता। 
इस सियासी हार को देखकर यह कहा जा रहा है कि राहुल गांधी को मोहब्बत की बाजार में दुकानदारी खोलने से पहले ग्राहकों की मुड़ और उनकी आवश्यकताओं को समझना चाहिए ताकि जिस भरोसे की बात उनकी सरकार छत्तीसगढ़ के गली गली में घुम घुम कर ठिंढोरा पिटते हुए दावा करते हुए कह रही थी वह सच निकले। 
डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव 158 वोट से हारे,
मंत्री शिव कुमार डहरिया 16500 हारे,
मंत्री रविंद्र चौबे 6966 वोट से हारे,
मंत्री अमरजीत भगत 9000 वोट से हारे,
मंत्री गुरु रुद्र कुमार 19598 वोट से हारे,
मंत्री मोहन मरकाम 18572 वोट से हारे 
मंत्री ताम्रध्वज साहू 16000 वोट से हारे,
मंत्री जयसिंह अग्रवाल 25725 वोट से हारे,
मंत्री मोहमद अकबर 41376 वोट से हारे

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