महिनों से जारी चुनावो की दिशा तय हो चुकी है, और सरकारों की भी। कल बिते शाम से ही तमाम विश्लेषण आ रहे हैं।
वोट शेयर, संगठन, वायदे, संगठन, सन्देश, भितरघात, राजनीतिक समीकरण जीत के कारण बताये जा रहे हैं। साथ ही एक अकेला सब भारी की बात कही जा रही है। और इसके साथ में यह भी कि नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान फेल हो गयी।
●●जिस विचार का मै पोशाक हूं जो मेरी सोंच का फ्रेम वर्क है उसमें नफरत हो ना स्पष्ट है।
चुनावी जीत हार, होती रहेगी और कांग्रेस के सच्चे सिपाही तो मोहब्बत के लिए लड़ते ही रहेंगे। उसका झन्डा उठाये, आगे बढ़ेंगे, सीने पर कुछ गोलियां और सही..
तो हम हिन्दू मुसलमान की राजनीति का विरुद्ध रहेंगे। विभाजन की राजनीति और टू नेशन की थ्योरी के खिलाफ रहेंगे। बुलडोजरवाद और संस्थानों को खरीदने, दबाने के खिलाफ रहेंगे।
हम सत्ता एक आदमी के हाथ मे केंद्रित से इनकार करते हैं, नफरत के चैंपियन को अपना मसीहा मानने से इनकार करते हैं।
●●ये परिणाम बहुतेरे कारकों का समुच्चय हो सकते हैं। कौन से इलाके में कौन सा मुद्दा चला, कहाँ किस जाति, किस वादे ने वोट दिलाये आप बेशक बताइये।
कांग्रेस ने, उसके नेताओ और सन्गठन नें, क्या चुनावी गलती की, वह भी पूरे आल्हाद से बताइये।
मगर आल्हाद गुजरने के बाद, कल सुबह जब गिरती हुई अर्थव्यवस्था पर बात होगी। जब बेरोजगारी, नौकरियों की बात होगी।
जब गिरती वैश्विक साख की बात होगी, आपको फिर निगाहें चुरानी होंगी। फिर एक नया झूठ चलाना होगा।
जो अगले दिन बर्स्ट होगा। यह दुष्चक्र फिर कुछ साल चलेगा। फिर हर दिन एक नया मुद्दा, नई स्मोक स्क्रीन छोड़नी होगी।
अंततः जिम्मेदारी डालने के लिए आपको फिर नेहरू की जरूरत होगी। बार बार और ज्यादा शिद्दत से जरूरत होगी।
●●तो जिन्हें आप न छोड़ पाएंगे, भला हम कैसे छोड़ दें।
किसी परिवार, समाज और देश को चलाने की, उसे सम्मान, प्रेम और बराबरी से ट्रीट करने जो आदर्श विधि है,
जो गांधी की विधि है
जो नेहरू की विधि थी, और आज राहुल की विधि है, हम उसके आग्रही हैं।
भारतीय जनता पार्टी, उसका शीर्ष नेतृत्व और उनके कोर समर्थक, मूल भारतीय आदर्शों से परे है, पूरी बेशर्मी और गर्व के साथ परे है...
●●लेकिन शर्मनाक नारे, नीतियां, चुनावी परिणाम से सुपूजित नही बनती।
आज आपके डूबते, भयभीत अन्तस् को संजीवनी मिली है। पर आपका सँघर्ष खत्म नही हुआ। प्रशासन के शास्त्रीय सिद्धांत और राजधर्म के ऐतिहासिक मानक बदल नही सकते। सीटों का अंकगणित भूपेश, गहलोत, कमलनाथ और राहुल को चुनाव हरवा सकता है,पर देश गांधी को छोड़, सावरकर के साथ खड़ा नही हो सकता।
●●नक्शा उठाकर देख लीजिए, आपके जश्न के बीच, आज आधा भारत गोडसेवाद से मुक्त हो चुका है।
बाकी आधा भी जगाया जाएगा, जोड़ा जाएगा। दिस नेशन वाज गांधियन...
विल स्टे गांधियन!!