अबे ओ पनौती
एक बड़े सिद्ध पुरूष थे।
वे परमात्मा का साक्षात्कार कर चुके थे। भूत, भविष्य, वर्तमान सबका ज्ञान था। सिर्फ जरूरत भर बोलते थे। ख्याति दूर दूर तक फैली हुई थी। मन की शंका का समाधान करने लोग दूर दूर से आते थे।
सिद्ध पुरुष से अपने बारे में जिग्याशा लिए एक दिन ये भी पहुचे और उनके चरणों मे बैठ गए, हाथ जोड़ा और कहा- प्रभु, मैं कौन हूँ? मेरे अंदर कौन है, मेरे बाहर कौन है?
मेरी वास्तविक पहचान क्या है, इस चराचर जगत के बीच मैं आखिर कौन हूँ गुरुदेव?
गुरु ने कहा- वास्तविक पहचान वही है, वत्स, जो तुम्हे पता है। जो तुम खुद को महसूस करते हो। जो तुम्हारा हृदय स्वीकारता है.. जिसे सुनकर तुम प्रतिक्रिया देते हो, पलटकर देखते हो।
मैं समझा नही गुरुदेव..!!
अब गुरु ने उत्तर न दिया, आंखे मूंद मौन हो गए। उन्होंने फिर से सवाल किया। गुरु का उत्तर नही आया। कुछ देर रुक फिर पूछा , लेकिन उत्तर न आया।
काफी देर तक उत्तर न आने पर ये निराश हुए। अंततः उठ गए और वापस जाने लगे। दरवाजे के पास पहुँचे ही थे कि पीछे से गुरु की आवाज गूंजी..
"अबे ओ #पनौती.. !!!! "
वे तेजी से घूमें। सिद्ध ज्ञानी मुस्कुरा रहे थे। मीठी वाणी में कहा- यही
भारतीय राजनीति के अंदर इन दिनों खतरनाक और जहरीले बयानों का दौर काफी व्यापक स्तर पर देखा व सुना जा रहा है। हालांकि जब जब चुनाव नजदीक आता है,तब तब इस तरह के खतरनाक और जहरीले बयान नेताओं के मुखारविंद से बाहर निकलते हुए तीर के माफिक छोड़े जाने का रिवाज 2004 में हुए लोकसभा चुनाव चली आ रही है।
जर्सी गाय, मिलावटी बछड़ा जैसे अनेक खतरनाक से खतरनाक बयान लोगों ने नेताओं के मुखारविंद से सुना रखा है। अब जब बात पनौती शब्द को को लेकर आई है,तब एक बार फिर सियासी सरजमीं पर बवाल मचते हुए देखा जा रहा है।
लेकिन दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक व्यवस्था वाली राष्ट्र में जनता के द्वारा चुने हुए जनप्रतिनिधियों के मुखारविंद से निकलने वाले खतरनाक और जहरीले बयान क्या भारतीय राजनीति को दुनिया भर में सबसे बड़े लोकतांत्रिक मर्यादाओं का देश होने पर गौरवान्वित हमें महसूस कराती है, यह सोचने वाली बात है।
क्या दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले देश की राजनीति में इस तरह से छीड़ी हुई छीछालेदर भारतीय लोकतंत्र की गरीमा में शोभा प्रदान करने लायक है।
आखिरकार इस तरह से छिछालेदर मचाने वाले हर भारतीय राजनेताओं को क्या इस तरह की आचरण पर गंभीरता से विचार नहीं करना चाहिए। आखिरकार भारतीय राजनीति जनसेवा और समर्पण की जगह लाभ और निजी स्वार्थ का धंधा कब से हो गया है?, क्यों हो गया है?
और किसने होने दिया है? जिसके चलते इस तरह से छिछालेदर भारतीय राजनीतिक के पृष्ठभूमि पर देखने को मिल राहा है और जब यह खुलेआम हो रहा है, तब हमें भारतीय राजनीति के अंदर मच रही छीछालेदर को लेकर क्या हम सब भारतीय दुनिया भर में मुंह दिखाने के काबिल है, बतौर संसार के सबसे बड़े लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले राष्ट्र के तौर पर स्वंय विचार करें....