क्या सच में बेरोज़गारी भत्ता के नाम पर बेरोजगार युवाओं को कांदा धरा रही छत्तीसगढ़ सरकार
रायपुर : किसी भी राजनीतिक दल की सरकार को दोबारा सत्ता में वापसी करने हेतू सियासी सरजमीं पर काफी कुछ मसक्कत करना पड़ता है। यंहा तक हमेशा जनता को सर पर बिठा कर चलना पड़ता है "तब कहीं जाकर जनता को सरकार पर यकीन और भरोसा होता है। हालांकि आज के वर्तमान दौर में जनता को सर पर बिठा कर चलने वाली या फिर घुमने वाली सरकार लोगों को सियासी सरजमीं पर कभी दिखाई नहीं देती है। बावजूद इसके सियासी सरजमीं से ताल्लुकात रखने वाले राजनीतिक पंडित किसी भी राजनीतिक दल के लिए दोबारा सत्ता में काबिज होने के लिए यही फार्मूला आजमाने की समझाइश देते हुए देखे जाते हैं। गौरतलब हो कि इन दिनों देश के सियासी गलियारों में मौजूद ज्यादातर राजनीतिक दल चुनाव में जीत हासिल करने हेतू जनता को लुभाने वाले वायदे या योजना आम जनता को समर्पित करते हुए देखे जा रहे हैं,ताकि इसका फायदा उन्हें चुनाव में प्राप्त हो सकें। सामने चुनाव हो तो दो दांत वाले लगभग सभी राजनेता यही करते हुए दिखाई देते हैं। बिते दिनों गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान देश की सियासी गलियारों में रबड़ी कल्चर को लेकर एक लंबी बहस छिड़ी हुई थी,लेकिन गुजरात विधानसभा चुनाव जैसे ही खत्म हुआ यह मुद्दा सियासी गलियारों की सन्नाटेदार गलियों में जा छूपी और गुम हो गई। वैसे देश के अंदर मौजूद लगभग सभी राजनीतिक दल रवड़ी कल्चर पर भरोसा करते हैं, इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए, क्योंकि देश के ज्यादातर राजनेता जमीनी हालात से कुर्सी मिलने के बाद किनारा कर लेते है और कुर्सी पाने के चक्कर में जनता की हर बात में जी हुजूरी करते हुए देखे जाते हैं। चाहे वह किसी भी राजनीतिक दल से ताल्लुकात रखने वाले राजनेता हो या कोई भी राजनीतिक पार्टी हो,अब सवाल यह है कि बगैर रवड़ी कल्चर लागू करें ना तो नेताओं का पेट भरता है और ना ही जनता का, फिर फोकट में रेवड़ी कल्चर, रेवड़ी कल्चर की आवाज क्यों.? क्या राजनीतिक दल दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में लाली पाप के सहारे ही चुनाव मैदान में कूदना जानते हैं? यदि नहीं तो फिर सभी राजनीतिक दल चुनाव से पहले हमारी सरकार आयेगी तो हम ये करेंगे वो करेंगे यह कहते हुए क्यों ठिंठोरा पिटते है। यूनाइटेड नेशन में बदलाव की बात को मजबूती से रखने वाली भारत क्या देश के अंदर चुनावी हालतों में बदलाव करने के लिए कोई कदम आगे रख पायेगी ?
▪️चुनावी दृष्टिकोण के बिहाब पर यदि देखें तो यह वर्ष और आगे आने वाला साल चुनावो भरा साल रहने वाला है। इस वर्ष जंहा देश के कई बड़े राज्यों में विधानसभा चुनाव सम्पन्न होने जा रहा है,तो वंही आगे आने वाले साल में लोकसभा चुनाव होना तय है। ऐसे में राजनीतिक सरगर्मियां स्वाभाविक रूप से इस वर्ष से आपको बढ़ी हुई नजर आ सकती है। इस दौरान लोगों को बड़ी बड़ी लच्छेदार भाषण, बड़ी बड़ी योजनाएं और नेताओं की एक दूसरे पर उछालने वाली बड़ी -छोटी किचड़ सब देखने को मिल सकती है। बिलकुल ठीक उसी तरह जिस तरह से इन दिनों कर्नाटक विधानसभा चुनाव के दौरान देखें जा रहे हैं। कुछ दिन बाद छत्तीसगढ़ राज्य में भी यह नजारा देखने को मिलेगा चूंकि आगे आने वाले दिनों में यंहा पर भी विधानसभा चुनाव सम्पन्न होना है। ऐसे में आगामी विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर कांग्रेस पार्टी की मौजूदा सरकार ने अपनी पिछले चुनावी वायदे पर अमल करते हुए पूरे छत्तीसगढ़ राज्य में मौजूद पढ़ें लिखे युवा बेरोजगार नवजवानों को हर महिना अब 2500 रूपया मुफ्त में बेरोजगारी भत्ता सरकारी कोष से देने की शुरुआती तैयारी पूरी कर ली है। यानी कि विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के लिए कांग्रेस पार्टी की ओर से राज्य के युवा बेरोजगारों के लिए एक बार फिर रवड़ी। हालांकि इस रवड़ी को परोसने की बात कांग्रेस पार्टी ने पिछले विधानसभा चुनाव के पहले कही थी। तब से रेवड़ी पाने के चक्कर में राज्य के कई युवा बेरोजगार छत्तीसगढ़ राज्य सरकार द्वारा आबकारी नीति के तहत आबंटित किए जाने वाली शराब को पी पी कर मन को दिलाशा दे रहे थे। जिसके चलते कई युवा बेरोजगारों की जेब में आर्थिक तंगी बढ़ने लग गई थी। आलम यह पसरा हुआ था कि इन युवाओं के पास ना तो नहाने के लिए साबुन खरीदने के लिए पैसे बचे हुए थे और ना ही कांग्रेसी सरकार की मुंह को डेटाल से धोने के लिए डेटाल खरीदने के लिए पैसे बचे हुए थे। हालांकि राज्य सरकार ने युवा बेरोजगारों के जेबों की हालत को भांपा और जगह जगह अवैध सट्टा कारोबार संचालित करने वाले लोगों इन युवा बेरोजगारों की सेवा में बिठा दिया, ताकि राज्य के पढ़ें लिखे युवा बेरोजगार अवैध सट्टा कारोबार के जरिए अपनी फट्टी जेबों की हालत को दुरुस्त कर सकें और चुनावी रवड़ी का आराम से इंतजार कर सकें। अब जब राज्य में विधानसभा चुनाव नजदीक आ गया है "तब सरकार ने पिछले विधानसभा चुनाव में कहीं हुई रवड़ी को परोसना शुरू कर दिया है,लेकिन इस रवड़ी के इंतजार में अपनी जेबों की हालत को देखकर रोने वाले ज्यादातर युवा बेरोजगारों को यह रवड़ी नशिब हुआ है कि नहीं यह चिंतन की बात है। बहरहाल कुछ युवा बेरोजगार इस रवड़ी को लपकने से दूर रह गए हैं शायद इसलिए उनके द्वारा सोसल मीडिया में विडियो जारी कर अपनी वेदना को जाहिर कर रहे हैं। वेदना को जाहिर करते हुए युवा बेरोजगार साफ शब्दों में कांदा पकड़ने की बात कह रहे हैं। अब हैरानी की बात यह है कि कांदा को पकड़ने के बाद राज्य के युवा बेरोजगार क्या सटिक लाइट रास्ता पकड़ पायेंगे बांकी स्वंय विचार करें...! विनोद नेताम।