रायपुर : साढ़े 22 वर्ष से ज्यादा समय छत्तीसगढ़ राज्य को वजूद में आये हो गया है। इस बिच राज्य में क्षेत्रवाद जैसे मुद्दा कभी धरातल से उभर कर लोगों को दिखाई नहीं दिया है,लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि स्थानीय और बाहरी जैसी कोई मुद्दा ही नहीं है। कुछ वर्षों के दौरान से स्थानीय मुद्दा क्षेत्रवाद छत्तीसगढ़िहा वाद चरम पर है। कारण स्पष्ट है कि वर्तमान समय के दौरान राज्य में जितने भी शहर और कस्बा इस वक्त मौजूद है। वंहा पर जितने भी सड़क किनारे बड़े बिल्डिंग मौजूद हैं,उनमें से ज्यादातर बिल्डिंगे बाहर से आकर छत्तीसगढ़ राज्य में बसने वाले लोगों की है। इनमें से ज्यादातर लोग शहर में व्यापार करने वाले या फिर नौकरी करने वाले लोग हो सकते हैं।
छत्तीसगढ़ राज्य में जैन, अग्रवाल समाज के उम्मीदवारो का बढ़ता हुआ क्रेज, हासिए पर स्थानीय समाज के नेता।
हैरानी की बात यह है कि सड़क किनारे पर स्थानीय लोगों की घर या दुकान बहुत कम जगह देखने को मिल रही है। साथ ही राजनीति जैसे अहम कार्य में भी स्थानीय लोगों की भूमिका लगातार कम हो रही है। हद तो तब हो जाती है जब राज्य के अनेक विधानसभा क्षेत्र और संसदीय क्षेत्रों में अन्य राज्य से आकर बसने वाले नेताओं को भाजपा और कांग्रेस तव्वजो दे रहे हैं, जबकि उसी राजनीतिक दल में रहकर जीवन खपाने वाले स्थानीय नेताओं को सिर्फ दरी बिछाने के लिए छोड़ कर रख दिया जाता है। गैर स्थानीय लोगों की भूमिका हर क्षेत्र में बढ़ रही है। राज्य में जल्द ही विधानसभा चुनाव सम्पन्न होना है। ऐसे में भाजपा और कांग्रेस पार्टी अपनी अपनी राजनीतिक नफा-नुकसान का आंकलन करने हेतू सर्वे रिपोर्ट तैयार करा रही हैं। साथ ही केंद्र की खुफिया एजेंसी भी प्रदेश की राजनीतिक हालात पर नियमित रिपोर्ट केंद्र को भेजती है। बताते हैं कि एक एजेंसी ने हाल ही में जमीनी स्थिति का आकलन कर रिपोर्ट भाजपा के शीर्ष नेतृत्व तक भेजी है। रिपोर्ट में अनारक्षित सीटों पर बिजनेस कम्युनिटी अग्रवाल और जैन के दबदबे का जिक्र किया गया है यह कहा गया है कि अग्रवाल और जैन समाज के दावेदारों को नजरअंदाज करना पार्टी के लिए मुश्किलें पैदा कर सकता है। यह अलग बात है कि दोनों समाज की कुल आबादी एक फ़ीसदी से कम है, लेकिन आर्थिक रूप से बेहद सक्षम है। विधानसभा की करीब 35 सीटों पर अग्रवाल जैन नेताओं की दावेदारी है। कहा जा रहा है कि अग्रवाल जैन दावेदार सरगुजा से लेकर बस्तर तक की सीटों पर दावेदारी रखते हैं। कुछ यही स्थिति कांग्रेस पार्टी के अंदर भी देखने को मिल सकती है। जंहा पर स्थानीय युवा पीढ़ी की नेताओं के उन्हें तव्वजो नहीं मिलने से नाराज़ होने की खबर है। राजनीतिक पंडितों की मानें तो इस बार छत्तीसगढ़ राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव के दौरान स्थानीय और बाहरी मुद्दा फिर छाये रहने की उम्मीद है। पूरे छत्तीसगढ़ राज्य के अंदर बिते कुछ वर्षों के दौरान छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना ने छत्तीसगढ़िया वाद की मशाल जुलूस को घर घर पहुंचाने हेतू जो भूमिका निभाई है। उसे देखकर कोई भी व्यक्ति यह कह सकता है कि आगामी विधानसभा चुनाव में क्षेत्रवाद अहम मुद्दा साबित होगा।