आउटसोर्सिंग मामले को लेकर खामोशी की चादर ओढ़कर अंदर से फूंक मारने में जुटे प्रदेश में रहने वाले विभिषण।
▪️▪️प्रदेश में बंद पड़ी सरकारी नौकरियों पर भर्ती की प्रक्रिया शुरू होते ही आउटसोर्सिंग होने की संभावना तेज ▪️▪️रायपुर : भारत सरकार सभी राज्यों को प्रति वर्ष तय सरकारी मापदंडों के अनुसार बजट का एक बड़ा हिस्सा हर साल आंबटित करती है। भारत सरकार के द्वारा आंबाटित इस बजट का उपयोग सभी राज्य सरकार ना सिर्फ अपनी जनता के लिए मूलभूत सुविधाएं हेतू योजनाबद्ध तरीके से काम करते हुए बजट का लाभ पहुंचाने का प्रयास करती है,बल्कि इसके अलावा राज्यों की अपना खुद का राजकिय कोष भी होता है। इस राजकिय कोष का इस्तेमाल तक राज्य अपने नागरिकों की तमाम सुविधाओं के लिए खर्च करती हैं। इतना सब कुछ करने के बाद यदि लोग अपने राज्य में सरकारी सुविधाओं एवं योजनाओं का लाभ उठाने के बजाए दुसरे राज्य में पलायन कर वंहा पर रहने वाले नागरिकों की हको पर डांका डाले। तब राज्य सरकारों को क्या करना चाहिए यह बताने की आवश्यकता नहीं है। आज के वर्तमान समय में नौकरी और रोजगार समस्त मानव जाति के लिए एक ऐसा टानिक है जिसे लेते ही मनुष्य की तमाम अंक फड़फना शुरू कर देता है,क्योंकि काम नहीं तो रोटी नहीं और रोटी नहीं तो कुछ भी संभव नहीं बांकी समझा जा सकता है।
आउटसोर्सिंग और छत्तीसगढ़ीहा वाद के बलबूते सत्ताधारी की चाबी हथियाने वाले भूपेश बघेल की सरकार, क्या आज भी आउटसोर्सिंग जैसे गंभीर मुद्दा पर सजग है।"छत्तीसगढ़ जैसे गरीब और पिछड़े हुए राज्य में सरकारी नौकरी सभी लोगों के लिए एक सपना की तरह है। इसी के साथ बेरोजगारी एक बड़ी महामारी जैसी। भले सरकार बेरोजगारी की आंकड़े पर हजारों झूठ बेरोजगारों के दिमाग में भर लें,लेकिन सच यही है कि आज भी राज्य के अंदर मौजूद पढ़ें लिखे युवा खेत में नांगर जोत रहे हैं और बहार से आकर कुछ साल पहले बसने वाला बनिया के बद दिमाकी बेटा कलेक्टर साहब के आदेश पर लोगों की हाजरी भर रहा है। राज्य के इस भूमि पर मौजूद सभी छत्तीसगढ़ीहा समाज के अंदर सरकारी नौकरी में पदस्थ नवजवानों के लिए एक से बढ़कर एक शादी के लिए रिश्तो की भरमार देखें जाते है,लेकिन जो नवजवान गरीब है और बदनसीबी से वह बेरोजगार हैं "तो उनके लिए शादी योग्य रिश्ता तलाशना बहुत ही मुश्किल कार्य माना जाता है, चाहे वह कार्य मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ही क्यों ना करें।
कहने का मतलब यह है कि राज्य में सरकारी नौकरी की अहमियत कुछ अलग है और टिफिन में बोरे बासी पकड़ कर दिन भर खेत में नांगर जोतने वाले लोगों की अहमियत अलग है। इन दिनों राज्य में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सरकारी नौकरीयों में भर्ती का दौर शुरू होने सूचना है। बिते दिनों आरक्षण विवाद पर कोर्ट की फैसला आने के बाद सरकारी नौकरीयों पर भर्ती का रास्ता साफ हो गया है। वंही विधानसभा चुनाव से पहले सरकार भी मौका का फायदा उठाते हुए पूरे राज्य भर में विभिन्न विभागों में रिक्त पड़े हुए पदों में भर्ती हेतू धड़ाधड़ स्वीकृति प्रदान करने में जुटी हुई है। इस बिच सरकारी नौकरी के नाम पर बेरोजगारों को सरकारी नौकरी के नाम पर लूटने वाले दलालों की एक्टिव होने सूचना मिल रही है। वैसे भी जब जब सरकारी नौकरियों में भर्ती का दौर शुरू होना होता है "तब तब इस कहावत को चरितार्थ करने वाले लोग सबसे पहले देखें जाते हैं। गांव बसा नहीं और लूटने वाले लूटेरे पहुंच गए। इसमें नेता, अधिकारी, छोटे बड़े सभी प्रकार के चम्मचे,एवं कलमधारी पत्रकार देखने को मिलते रहते है। जिनके द्वारा बेरोजगारी के महामारी से जुझने वाले नवजवानों को सरकारी नौकरी के नाम पर लूटने की शिकायत पाई जाती है। आमतौर पर ज्यादातर सरकारी नौकरियों में विगत कई वर्षों से पैसों का लेन-देन होने की बात आम जनमानस के बिच चर्चा का विषय बना हुआ है। ऐसे में राज्य सरकार को गहन तरीके से विचार करते हुए सरकारी नौकरी से गैर छत्तीसगढ़ीहा लोगों को बाहर रखना चाहिए ताकी आम छत्तीसगढ़ीहा बेरोजगारों का सपना पूरा हो सकें साथ ही सरकारी नौकरीयों के नाम पर बेरोजगार युवाओं के सपनों को दफन करने वाले नौकरी के दलालों पर भी नजर रखने की आवश्यकता है।@विनोद नेताम