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कानून और संविधान को दरकिनार करते हुए जिला के ग्रामीण सुना रहे हैं तुगलकी फरमान, जिम्मेदार अधिकारी बने गांधी जी के तीन बंदर ।

 

"मामला संज्ञान में आने के बावजूद तहसीलदार गुरूर सुध लेने के मुड़ में नहीं"

बालोद/गुरूर:- राज्य सरकार जिला प्रशासन के जरिए जिलावासियों की समस्याओं का समाधान और निराकरण करने हेतू, कहने को तो समय समय पर बड़े-बड़े जनसमस्या निवारण शिविर का आयोजन,या फिर जनता से जुड़े हुए कार्यों को लेकर तरह तरह के सरकारी आयोजन और कार्यक्रम जमीनी स्तर आयोजित किया जाता रहता है। इसके पीछे सरकार की मंशा यह रहती है कि जमीनी स्तर पर जनता अपनी कार्यों को लेकर इधर उधर भटके नहीं, यदि जनता अपने कार्यों को लेकर भटकने लगे तो सरकार की जनता के बीच भारी फजिहत होगी और इससे सरकार की बदनामी होगी। वैसे भी साल के आखिर तक विधानसभा चुनाव सम्पन्न होना है। ऐसे में कोई भी पार्टी की सरकार सत्ता में काबिज होगी वह बिल्कुल छोटी सी भी बदनामी चाहे वह किसी भी स्तर की हो उसे स्वीकार नहीं कर सकती है। शायद इसीलिए सरकार के मंशा अनुरूप जिला प्रशासन बालोद जनता से जुड़े हुए कार्यों को लेकर आए दिन जन समस्या शिविर या अन्य कुछ ना कुछ और शिविर या कार्यक्रम आयोजन करती रहती है। जिला प्रशासन अपने द्वारा किए गए प्रयासों को जिलावासियों तक पहुंचाने हेतू अखबारों के जरिए खबरें भी प्रकाशित करवाते है। जिसमें जिलावासियो की समस्याओं का कैसे और किनके द्वारा समाधान या निराकरण किया गया। यह सब ज्रिक किया गया होता है। जिला प्रशासन के द्वारा उठाई जा रही कदमों की चर्चा अखबारों के फ्रंट पेज पर बखान  के रूप में लोगों को पढ़ने आमतौर रोजना मिल ही जाता है। निश्चित तौर पर किसी भी अच्छे कार्य पर खबर बनना अच्छी बात है,लेकिन ऐसे कई कार्य धरातल पर मौजूद बिखरे पड़े हुए हैं। जिनके ओर जिला प्रशासन के जिम्मेदार अधिकारी देखना तो दूर इनके बिखरे हुए कार्यों से जुड़े हुए पन्नों की ओर भटकना तक नहीं पसंद नहीं करते है। ज्ञात हो कि जिले में मौजूद आम जनता के मध्य ऐसे कई मुद्दे वर्तमान में लंबित पड़े हैं। जिनका हल और निराकरण आज तलक तक संभव नहीं हो सका है, जबकि तय नियमानुसार प्रकरण का हल निकल जाना चाहिए था। उदाहरण के तौर पर जिला के ग्रामीण अंचल क्षेत्रों में तुगलकी फरमान का दौर आज भी निरंतर जारी है। आये दिन जिला के ग्रामीण समितियां गांव में बैठक आयोजित कर छोटी छोटी बातों में लोगों का हुक्का पानी बंद व समाजिक बहिष्कार कर रहे हैं। समाजिक बहिष्कार से संबंधित कई मामले सामने आते रहते हैं। ज्यादातर मामलों में पुलिस की कार्यवाही होती है, वंही कई मामलों में पुलिस कार्यवाही ही नहीं करती है। हालांकि देश में कानून और संविधान का राज है। अतः किसी भी व्यक्ति को सार्वजनिक रूप से सामाजिक बहिष्कार करना या प्रताड़ित करना, निश्चित रूप से कानून के साथ खिलवाड़ माना जाता है। बावजूद इसके जिला के ग्रामीण अंचल क्षेत्रों में आज भी यह सब एक ग्रामीण और समाजिक प्रक्रिया के दायरे में जायज माना जाता रहा है। विडंबना यह है कि भारत की ग्रामीण व्यवस्था के अंदर आज भी यह रूढ़िवादी परंपरा चलन के तौर पर कंही ना कंही रूढ़िवादी विचारों को जिंदा रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा हैं। हालांकि समाज के अंदर रूठीवादी परंपरा को खत्म कर भारत के संविधान और कानून के अनुरूप समाज में शांति सद्भाव और एकता स्थापित करने हेतू सरकार ने कई कानून बना रखे हैं। सरकार के द्वारा बनाई गई इस कानून की रक्षा करने की जिम्मेदारी पुलिस प्रशासन को सरकार ने सौंप रखी है। गौरतलब हो कि सरकार के द्वारा दिए गए आदेशों का पालन करते हुए पुलिस प्रशासन इस दिशा में सदैव प्रयासरत रहती है। पुलिस प्रशासन सदैव इस बात के लिए समाज में मुस्तैद खड़ा रहता है कि समाज में कोई भी अप्रिय घटना या दुर्घटना ना घटित हो सकें। समाज में पूर्ण रूप से शांति व्यवस्था कायम रखना यह पुलिस प्रशासन की नैतिक जिम्मेदारी है,जिसके बावजूद जिला के ग्रामीण अंचल क्षेत्रों में नियम विरुद्ध फैसला ग्रामीण समितियों के द्वारा किया जा राहा है। जिसके चलते जिला के कई ग्रामीण लंबे समय से पिड़ित और परेशान हैं। पिड़ित ग्रामीण मामले को लेकर कानून के शरण में भी बकायदा पहुंच रहे हैं, लेकिन कानून और न्याय के दरवाजे में पहुंचने के बावजूद नागरिकों को उनका अधिकार नहीं मिल पा रहा है। दरअसल जिला के गुरूर विकासखंड क्षेत्र व तहसील क्षेत्र अंतर्गत ग्राम पंचायत पिकरीपार में विगत कई वर्षों से पितांबर देवांगन के पुरे परिवार का हुक्का पानी बंद रखने का ग्रामीणो ने ले रखा है। ग्रामीणों के द्वारा लिए गए इस नैतिकता पूर्ण गला घोंट देने वाला निर्णय से देवांगन परिवार वर्षों से दहशत में जी रहे हैं। मामले को लेकर पितांम्बर देवांगन ने जिला प्रशासन और गुरूर तहसीलदार मनोज भारद्वाज के समक्ष प्रस्तुत होकर उक्त मामले में शिकायत दर्ज करवाई थी, लेकिन तहसीलदार साहब पितांबर देवांगन के परिवार को महज आश्वासन देकर अपनी जिम्मेदारी को आजतक निभा रहे हैं। गुरूर तहसीलदार मनोज भारद्वाज के द्वारा पितांम्बर देवांगन के मामले में जो कदम उठाये है उसके लिए देवांगन परिवार में यह आलम पसरा हुआ है कि पहले तो परिवार हुक्का पानी बंद होने से परेशान थे, लेकिन अब मामले को लेकर शिकायत दर्ज कराने पर पहले की अपेक्षा अब ज्यादा परेशानियों का सामना कर रहे हैं। अब ऐसे में चिंतन करने वाली बात है कि अधिकारी जनसमस्या निवारण शिविर में सिर्फ छोटे छोटे कार्यों पर बड़े बड़े तुर्रा छोड़ रहे है या फिर जमीनी स्तर पर गंभीर समस्या पसरी हुई है उस पर भी काम कर रहे हैं।

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