@विनोद नेताम
दुनिया के मशहूर गालीखोर ने राष्ट्रीय स्तर पर जाहिर किया है कि गाली राष्ट्रीय भोजन है। इसे खाने से उर्जा बनी रहती है, आदमी थकता नही। दिन में व्यक्ति 18 से बीस घंटा काम करता है, इसलिए कुछ बरस पहले किसी इंटरव्यू मे वजीरेआजम तक ने बताया था कि रोज वह भी एक दो पाव गाली खा लेते है।
वजीरेआजम की अब ताजे बयान के मुताबिक उनका गाली का दैनिक कंन्जम्पशन बढकर तीन चार किलो जा पहुंचा है। सोंचिए है ना हैरान करने वाली बात?
वजीरेआजम के देखा देखी पूरा देश गाली खा रहा है। अतः गाली, पौष्टिक भोजन बन गया है। एक समय राशन मे पौष्टिक चने, अण्डे और पका भोजन दिया जाता था। अब गाली दी जाती है। है ना अजीब बात ?
नौकरी मांगने पर, न्याय मांगने पर, शिक्षा मांगने पर, दाम मांगने पर, सम्मान मांगने पर ... गाली दी जाती है। हालांकि कुछ जगह गाली के साथ बंदूक की गोली देने का चलन भी बढ़ गया है।
~~~
गाली सत्य है, शिव है, सुन्दर है ..हमारी संस्कृति है। वस्तुतः अत्यधिक कुंठा की अवस्था मे, कमजोर व्यक्ति जब मौखिक हिंसात्मक कार्यवाही करता है, तो उन शब्दों का समूह, जिसके उच्चारण के बाद असीम शांति का अनुभव हो, गाली कहलाता है।
गाली देना उत्तम है। गाली खाना अत्यंत उत्तम है। वस्तुतः गाली खाना एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमे खाने वाले को ताकतवर होने का अहसास पनपता है।
वह जानता है, कि गाली देने वाला उससे कुद्ध है, संतप्त है, परेशान है। मगर मजबूर है, इसलिए गाली देकर अपनी कुंठा निकाल रहा है। तब आपको जितनी ज्यादा गाली मिले और जितने अधिक लोगों से गाली मिले, आप स्वयं को उतने लोगों से अधिक ताकतवर पाते है।
गाली मे ताकत का नशा खोज लेना, प्रीमियम कोटि के गालीखोर के लक्षण है। इस अवस्था को मानव सभ्यता मे कम ही लोग पा सके है। वस्तुतः इस अवस्था को प्राप्त करने के बाद व्यक्ति गाली खाने की नीयत से ही किसी काम को करता है।
यथा
- किसी कार्य को करने से गाली मिलेगी अथवा नही??
- यदि गाली पड़ना तय है, तो किस तरीके से किया जाए कि अधिक से अधिक लोगों से गाली मिले।
- गालियां गन्दी होंगी, या हल्की होंगी।
- दिन मे एक दो बार मिलेंगी, या प्रभावित व्यक्ति सोते जागते, उठते बैठते, दिन रात गाली देगा ??
संभावित गालियों की फ्रीक्वेंसी किसी निर्णय के किए जाने के सीधे समानुपाती होती है। मशहूर गालीखोर के एक रिसर्च अनुसार दुनिया मेे ऐसे ही व्यक्ति एकता ला सकते है।
आचार्य दण्डी ने भी नीतिश्लोक मे लिखा है कि - विश्वमध्ये समस्त कार्ये, सर्वप्रेम असंभव भवेत, संभव गालीभक्षणम, मित्रशत्रु समभाव देवेत
क्योकि विश्व मे कुछ भी कार्य कीजिए, सबका प्रेम और समर्थन असंभव है। लेकिन सबकी गाली खाना अवश्य संभव है। आपके विरोधी तो गाली देते ही है, आपके समर्थक भी देते है।
दरअसल समर्थक जानते है, कि उनका प्रेरणास्त्रोत मशहूर गालीखोर है। वस्तुतः गालीखोर है, इसलिए ही तो प्रेरणास्त्रोत है।
अगर वह गालीखोर न रहे, गालीखोरी के स्तर से लेशमात्र भी उतर जाए तो उसका समर्थन खत्म हो जाएगा। उसके समर्थक एक नया, बड़ा गालीखोर,खोजकर ले आऐंगे।
~~~
मौजूदा दौर मे गालियो की बढती मांग की पूर्ति के लिए विशेष कदम उठाऐ जा रहे है। गालीबाज सेनाओ का गठन किया गया है, जो बड़े पैमाने पर अनुशासित रूप से गाली देते है।
घरेलू उत्पादन तो भी बढाया ही गया है, विदेशों से भी गालियां प्राप्त करने के लिए रूपये का डिवैल्यूण्शन और इम्पोर्ट ड्यूटी मे कमी की गई है। विदेशो मे हमे अब छिटपुट गालियां मिलनी शुरू हो गई हैं, हांलांकि अंतर्राट्रीय गालियों मे अपेक्षित स्तर से हम पीछे है।
परंतु इसके पीछे हमारे प्रयासों का अभाव नही, बल्कि वहां गालीतंत्र का सुनियोजित ढांचा न होना प्रमुख कारण प्रतीत होता है।
~~~
देश मे अब गाली आसानी से उपलब्ध है। गाली की खपत बढ़ी है। गालीखोर लोगों का विचार है कि उचित मूल्य की दुकानो, मिड डे मील, भोजन के अधिकार, दाल भात केन्द्र वगैरह बन्द कर दीदयाल राष्ट्रीय गाली गांरटी योजना शुरू की जाए।
इससे गरीब अधिक गाली खाऐगा, अधिक उर्जा से कार्य करेगा। संसद मे इस विषय पर शीघ्र बिल लाया जाना चाहिेए,ताकी आम जनता की कमाई को हजम करने वाले हमारे सभी सांसदों को तनख्वाह और भाड़े की जगह सिर्फ गाली मिल सके।
जल्द ही किसी दिन अखबारों मे लिखा मिलेगा - भूख है, तो गाली खा, रोटी नही तो क्या हुआ ..