विनोद नेताम बालोद : कहने को तो भारत एक प्रजातांत्रिक राष्ट्र है। जंहा पर भारत सरकार जनता की आवश्यकताओं और जरूरतों को ध्यान में रखते हुए शासन करती है। चूंकि जमीनी हकीकत में जनता प्रजातांत्रिक व्यवस्था की सरकारी दावों को खोखली दलील मानकर कोरा जूमला समझती है। अतः वर्तमान परिदृश्य के दौरान इसे लेकर एक जिंदा सवाल लोगों के मन में बार-बार तब खड़ा होता है,जब खुलेआम मानवता और इंसानियत बिच राह शर्मशार होता है। हैरानी की यह है कि इसे शर्मशार करने वाले कोई दूसरा नहीं बल्कि सरकार में बैठे हुए लोग हैं,जिनका दावा प्रजातंत्र शासन का है। खैर जो भी हो लोगों को प्रजातांत्रिक व्यवस्था का सच पता है, बावजूद इसके प्रजा तांत्रिक व्यवस्था वाला राष्ट्र होने के नाते जनता के द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधि आम जनता से जुड़े हुए मूल्यों के लिए संविधान में वर्णित अनुच्छेद के तहत कानून बनाते है। भले धरातल पर मौजूद जरूरतमंद जनता को कानून के मुताबिक न्याय का अधिकार पाने में बरसों लग जाए यह कोई बुरी बात नहीं है,लेकिन नेता और रसूखदार न्याय के अधिकार से वंचित ना रहे। हालांकि जनप्रतिनिधियों के द्वारा बनाई गई कानून के जरिए सरकार आम जनता के मौलिक अधिकारों की रक्षा एवं सूरक्षा की दावा करती है और न्याय की अवधारणा को समाज में स्थापित करने का दम भरती है। भारतिय संविधान में निहित मूल्यों के आधार पर यदि देखा जाए तो देश के सभी नागरिक समान है,और सभी नागरिकों को एक सामान न्याय पाने का अधिकार है। हालांकि इस तर्क पर ज्यादातर लोगों की राय उलटा है। बावजूद इसके सरकार आम जनता तक कानून की पहुंच और पकड़ बनाए रखने हेतू सरकार जगह जगह पुलिस थाना की स्थापना और जनता को न्याय का अधिकार दिलाने हेतू न्यायालय की स्थापना को धरातल पर मजबूती से स्थापित करने हेतू मेहनत और प्रयास करने की बात कह रही है। ऐसा करने के पीछे सरकार की मंशा नागरिकों को उनकी अधिकारों से रूबरू करना है,तो यह एक अच्छा प्रयास है। गौरतलब हो कि भारत में न्याय व्यवस्था काफी कमजोर माना जाता रहा है। लिहाजा देश में सरकार के समानांतर सरकार चलाने की मंशा रखने वाले लोगों की तालीबानी सोंच सरकार की तमाम मंशूबो पर पानी फेरने का कार्य कर रहा है। देश के अंदर आज भी कई जगहों पर समानांतर सरकार की आहट सुनाई देती है चाहे वह घने जंगलों में बंदूक के दम पर चलाई जा रही हो अथवा समाज के बिच बैठकर दंबगई से दहाड़ते हुए तुगलगी फरमान के जरिए चलाई जा रही हो। लोगों के मुंह से अक्सर सुनने में यह आता है कि भारत गांव का देश है। देश की आधी आबादी गांवों में बसती है और गांवो में आज भी रूढ़ीवादी परम्पराओं की मौजूदगी पहले के माफिक बरकारार है,जबकि भारत आज डीजटल इंडिया कैम्पीन के दम पर विश्व पटल पर मजबूती से स्थापित होने के लिए भरसक कोशिश में जुटा है। भारत के ग्रामीण अंचल क्षेत्रों में रहने वाले ज्यादातर नागरिकों का आज भी यह मानना है कि न्याय के लिए न्यायालयो की चक्कर कांटना समय और पैसा की बर्बादी है। अतः देश के ज्यादातर हिस्सों में मौजूद ग्रामीण अंचल क्षेत्रों के गांवों में आज भी दंबग मठाधीश पंचायत लगाकर बड़े बड़े अपराधिक मामलों में धड़ाधड़ फैसला सुना रहे है। ऐसे कई मामले सामने आए है जिसमें दंबगो ने गलत निर्णय लेते हुए मनावता और इंसानियत को तार तार किया है, जिसके चलते मनावता और इंसानियत को शर्मशार होना पड़ा है। ऐसे ही मनावता और इंसानियत को शर्मशार करती हुई एक घटना प्रकाश में आया है। दरअसल छत्तीसगढ़ राज्य के बालोद जिला अंतर्गत गुरूर थाना क्षेत्र के ग्राम पंचायत कोसागोंदी में रहने वाली एक विधवा आदीवासी महिला को गांव के कुछ लोगों ने बुरी तरह से अपनी दबंगई और तानाशाह रवैया से परिचय कराते हुए बुरी तरह से प्रताड़ित किया है। उक्त महिला की मानें तो प्रताड़ना में सिर्फ गांव वाले ही शामिल नहीं हुए हैं बल्कि गांव वाले लोगों के साथ सत्ता रूढ़ राजनीतिक दल के स्थानीय नेताओं ने भी भरपूर सहयोग किया है। सत्ता धारी राजनीतिक दल के नेताओं का मामले में आरोपी गांव वाले लोगों का सहयोग करना निश्चित रूप से एक गरीब असहाय विधवा आदीवासी महिला सीमा बाई ध्रुव के लिए असहनीय है। घटना से संबंधित विषयों को लेकर सीमा ध्रुव ने जिला पुलिस प्रशासन से न्याय की उम्मीद लेकर शिकायत तो कर दिया है, लेकिन जिला पुलिस महकमा की नाकामी सत्ताधारी पार्टी के नेताओं को देखकर सहमी नजर आ रही है। महिला के शिकायत पर जिला पुलिस महकमा अबतक चुप्पी साधे बैठे हुई है, जबकि महिला लगातार न्याय की उम्मीद लेकर जिला मुख्यालय में मौजूद पुलिस विभाग अधिकारीयों की दफ्फरो के चक्कर पर चक्कर लगा रही है।