@ विनोद नेताम
रायपुर : छत्तीसगढ़ राज्य सरकार सर्वोच्च न्यायालय में तीन वकिलो के दम पर आरक्षण विवाद में फतेह हासिल करने की जुगत में लगी हुई है। 58 प्रतिशत आरक्षण मामले में 3 वरिष्ठ वकीलों का विशेषज्ञ पैनल सुप्रीम कोर्ट में रखेगा छत्तीसगढ़ का पक्ष। छत्तीसगढ़ में 58 प्रतिशत आरक्षण का मामला हाईकोर्ट से खारिज होने के बाद अब सुप्रीम कोर्ट के समक्ष देश के तीन बड़े वकील राज्य का पक्ष रखेंगे। इन वकीलों में कपिल सिब्बल, मुकुल रोहतगी और अभिषेक मनुसिंघवी शामिल हैं।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में छत्तीसगढ़ के स्थायी वकील ने इस मामले में विशेषज्ञ पैनल के गठन के लिए कपिल सिब्बल, मुकुल रोहतगी और अभिषेक मनुसिंघवी के नाम सुझाए थे, जिस पर राज्य के एडवोकेट जनरल द्वारा सहमति व्यक्त की गई है। इसके साथ ही राज्य शासन ने विशेष पैनल के गठन के लिए प्रक्रिया शुरु कर दी है। ज्ञात हो कि छत्तीसगढ़ की पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार ने साल 2012 में आरक्षण की सीमा को 50 से बढ़ाकर 58 फीसदी कर दिया था। इस निर्णय के खिलाफ दायर याचिका पर करीब 10 सालों तक चली सुनवाई के बाद 19 सिंतबर को हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस अरूप कुमार गोस्वामी और जस्टिस पीपी साहू की डिविजन बैंच ने इस फैसले को असंवैधानिक करार दिया था। तत्कालीन रमन सिंह की सरकार ने अनुसूचित जनजाति एसटी के आरक्षण को 20 से बढ़ाकर 32, अनुसूचित जाति एसटी के आरक्षण को 16 से घटाकर 12 फीसदी और ओबीसी के आरक्षण को 14 फीसदी यथावत रखा था, जिससे छत्तीसगढ़ में आरक्षण की सीमा 50 से बढ़कर 58 फीसदी हो गई थी। इस निर्णय के खिलाफ गुरू घासीदास साहित्य समिति, डॉ पंकज साहू सहित अन्य ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। विदित हो कि छत्तीसगढ़ राज्य में आगामी विधानसभा चुनाव काफी नजदीक है ऐसे में आरक्षण का यह मुद्दा राजनीतिक दलों के लिए चुनाव प्रचार का प्रमुख जरिया बन सकता है। लिहाजा राजनीतिक दलों में इस वक्त इस मुद्दे को लेकर काफी चर्चा देखा जा राहा है। वंही पेशा कानून की कसमकश में खड़ा आदीवासी समाज के लिए 32% आरक्षण जरूरी बताया जा राहा है। ऐसे में देखना यह है कि आगे आने वाले दिनों में सर्वोच्च न्यायालय आरक्षण को लेकर क्या फैसला करता है।