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किसान हैतैषी सरकार के राज में फसल बीमा कंपनी हो रहे है मालामाल।

                         
  @विनोद नेताम
बालोद : मजाक करने का भी एक हद होता है,लेकिन बेशर्मी के साथ की गई मजाक की कोई हद नहीं होता है। कुछ ऐसे ही मजाक फसल बीमा कंपनीयों की ओर से देश के किसानों से साल दर साल किया जाता है,जबकि किसानों के हैतैषी सरकार होने का दम भरनेवाली सरकार और खुद को चौकीदार बता कर कार्पोरेट घरानों की अरबों माफ करने वाली सरकार तमाशबीन बनकर खामोश बैठा हुआ है। सरकार की खामोशी का फायदा उठाकर फसल बीमा कंपनी प्रधानमंत्री फसल बीमा के नाम पर किसानों से लूट की परांपरा को बेरोक टोक तरीके से अंजाम तक पहुंचा रहे हैं। जानकारों की मानें तो फसल बीमा कंपनियों की इस लूट में नेता और नौकरशाहो की जबदस्त मिलीभगत है। लिहाजा फसल बीमा कंपनियों की किसानों से फसल बीमा के नाम पर लूट से संबंधित विषयों पर कोई माई का लाल जुबान खोलने की हिम्मत नहीं करता है। 

कृषि पर संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट के मुताबिक निजी बीमा कंपनियों को प्रीमियम के तौर पर जितनी राशि मिली और कंपनियों द्वारा नुकसान के एवज में जो राशि किसानों को दी गई, अगर इसकी तुलना की जाए तो बीमा कंपनियों ने 30 फीसदी से अधिक की बचत की है। 70 फीसदी राशि जो किसानों को फसल खराब होने की स्थिति में आबंटित की गई है उसमें भी झोलझाल की आशंकाओं से इंकार नहीं किया जा सकता है।
   
भारत को किसानों का देश कहकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यकाल में 13 जनवरी 2016 से एक नई योजना ''प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई)'' के नाम पर शुरू की थी। इसे उन्होंने सभी किसानों के लिए बाध्यकारी भी बनाया। अगर इस योजना की पृष्ठभूमि पर गौर करें, तो साफ समझ में आता है, कि निजी बीमा कंपनियों को लाभ पहुंचाना ही इस योजना का मुख्य उद्देश्य था। प्रधानमंत्री ने इस योजना से कृषि पर आश्रित गरीब किसानों को फायदा तो नहीं पहुंचाया, बल्कि अपनी आंखों के सामने उन्हें  खूब लूटवाया। गरज यह कि पांच साल पहले शुरू की गई इस योजना से किसानों को तो फायदा नहीं हुआ। किंतु निजी बीमा कंपनियों ने जमकर इससे मुनाफा कमाया।

कृषि पर संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट भी यही कहती है, कि इन वर्षों में निजी बीमा कंपनियों को प्रीमियम के तौर पर जितनी राशि मिली और कंपनियों द्वारा नुकसान के एवज में जो राशि किसानों को दी गई, इसकी तुलना की जाए, तो कंपनियों ने 30 फीसदी से अधिक की बचत की है।

कृषि  एवं कल्याण मंत्रालय की ओर से समिति को उपलब्ध कराये गये आंकड़े बताते हैं कि अप्रैल 2016 से लेकर 14 दिसम्बर 2020 के दौरान, निजी बीमा कंपनियों ने किसानों से प्रीमियम के तौर पर 1,26, 521 करोड़ रुपए जमा कराए, जबकि बीमा कंपनियों ने नुकसान के एवज में किसानों को  87,320 करोड़ रुपए का भुगतान किया। यानी कंपनियों ने 69 फीसदी मुआवजे का भुगतान किया है। रिपोर्ट के अनुसार फसल का नुकसान होने पर किसानों ने 92,954 करोड़ रुपए का क्लेम किया था, लेकिन उन्हें 87,320 करोड़ रुपए का ही भुगतान किया गया। आंकड़ों के मुताबिक इन सालों में सवा 9 करोड़ किसानों को ही मुआवजा दिया गया है। दिसम्बर 2020 तक किसानों को क्लेम का 5924 करोड़ रुपए नहीं दिया गया। रिपोर्ट पर गौर करें, तो साफ समझ में आता है, कि इस योजना का लाभ किसानों को कम और निजी बीमा कंपनियों को ज्यादा हुआ है।

निजी बीमा कंपनियों ने कमाया 60 फीसदी से अधिक मुनाफा

स्थायी समिति की रिपोर्ट के आंकड़ों के मुताबिक निजी बीमा कंपनियों ने वर्ष 2016 से 2020 के दौरान करीब 31फीसदी मुनाफा कमाया है। कई कंपनियों ने 50 से 60 फीसदी तक मुनाफा कमाया है। भारती एक्स 2017-18 में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में शामिल हुई और तीन साल के दौरान कंपनी ने करीब 1576 करोड़ रुपए का प्रीमियम वसूला और क्लेम का करीब 439 करोड़ रुपए भुगतान किया’।

इसी तरह रिलायंस जीआईसी लिमिटेड ने प्रीमियम के तौर पर 6150 करोड़ रुपए वसूला और किसानों को 2580 करोड़ रुपए का ही भुगतान किया। जनरल इंडिया इंश्योरेंस को करीब 62 फीसदी, इफको को ने 52 और एचडीएफसी एग्रो ने करीब 32 फीसदी मुनाफा कमाया है।

जबकि इस योजना की आत्मा में यह बताया गया था बीमा दावे के निपटान की प्रक्रिया को तेज और आसान बनाने के लिए यह निर्णय लिया गया है, ताकि किसानों को फसल बीमा योजना के संबंध में किसी तरह की परेशानी का सामना न करना पड़े ।

छत्तीसगढ़ में ऐसे लाखों किसान हैं, जिन्हें तीन साल से प्रधानमंत्री फसल बीमा का लाभ नहीं मिला है। जिसकी वजह से उनके खेत सूने पड़े हैं और कृषि विभाग के अधिकारी इसे बकवास बताते हैं और बैंक जवाब देने को तैयार नहीं है। दरअसल प्रदेश के किसान बैंक और बीमा कंपनियों के बीच फुटबॉल बनकर रह गये हैं। छत्तीसगढ़ में ऐसे हजारों से अधिक किसान हैं, जिन्हें प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का लाभ पिछले तीन साल से नहीं मिला है। न ही कहीं उनकी सुनवाई हो रही है। हद तो तब हो जाती है जब किसानों को फसल बीमा योजना के नाम शर्मनाक तरीके से राशि आबंटित कर दिया जाता है। राज्य के बालोद जिला अंतर्गत कई किसानों के खाते में इन दिनों एक रूपए से कम की फसल बीमा कंपनियों की ओर से फसल छतिपूर्ति के रूप में आंबटित किया है। हालांकि जिला प्रशासन किसानों के साथ शर्मनाक तरीके से की गई मजाक पर खुद को पाक साबित करते हुए सरकार की तरफ दलील प्रस्तुत किया है। कृषि विभाग बालोद के द्वारा दी गई दलील को सुनकर किसान लज्जित महसूस करने को मजबूर हो गए हैं।

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