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मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के मैराथन भेंट वार्ता के बाद भी बस्तर की हालत ज्यों की त्यों !

      
विनोद नेताम
  नारायणपुर   : छत्तीसगढ़ राज्य की दक्षिण दिशा में रची-बसी कुदरत की खूबसूरत वरदान बस्तर , जंहा बारे में बहुत कुछ कहा या सुना जाता रहा है । वैसे देखा जाए तो बस्तर राज्य के दक्षिण में स्थित पांच जिलों का समूह है , जंहा पर ज्यादातर गरीब आदिवासी परिवारों का जीवन यापन होता है । राज्य की यह क्षेत्र अकूत खनिज संपदा से भरी पड़ी हुई है , जिसकी दोहन हेतू सरकार लगातार कार्य कर रही है , तो वंही सरकार की बेताहा खनिजों की दोहन के कारण क्षेत्र के गरीब आदिवासी के जल , जंगल जमीन पर लगातार कापरेट कम्पनियों का कब्जा हो रहा है । परिणामस्वरूप लोगों को जीवन यापन हेतू संसाधनों के लिए संघर्षरत होना पड़ रहा है , जिसके चलते सरकार और आम आदमी के मध्य लगातार संघर्ष की स्थिति पैदा हो रही है । हालांकि सरकार और आम जनता एक दूसरे से परस्पर संघर्ष नहीं कर रहे , बल्कि सरकार ने बस्तर में उठने वाली विरोध के आवाज को दबाने हेतू जंहा फोर्स का उपयोग कर रही है तो वंही बस्तर के आम जनता की लड़ाई को निस्वार्थ भाव से लड़ने की बात कहते हुए बस्तर में सरकार और फोर्स से लड़ाई करने हेतू नकस्ली बंदूक के दम पर बस्तर की खूबसूरत वादियों में दिन रात बम धमाका को अंजाम दे रहे हैं । पुलिस और नक्सलियों के मध्य बस्तर की आम जनता रोजाना पीस रहे हैं , बस्तर संभाग के जेलो में सालों से  बंद पड़े हुए हैं हजारों आदीवासी , जबकि फ़र्जी नक्सल के आरोप में कईयो निर्दोष इंसानों को गोलियों से छलनी कर दिया गया है । बस्तर में वर्षों से चल रही मानव अपराध पर कई बार समाजिक संगठनों एवं न्यायलय द्वारा फटकार लगाते हुए सरकार को आईना दिखाने का प्रयास किया जाता रहा है , जिसके बावजूद बस्तर में नक्सलवाद के नाम पर निर्दोषो के साथ अत्याचार रुकने का नाम नहीं ले रही है । विगत साल भर से निर्दोष आदिवासियों को फोर्स के जवानों द्वारा गोली मारे जाने की घटना को लेकर सिलगेर में मूल वासी बचाओ आंदोलन समिति के नेतृत्व में  क्षेत्र के आदीवासी लगभग एक साल से ज्यादा समय तक आंदोलन कर रहे है । पुलिस की गोलियों से मारे गए आदीवासियों के लिए सरकार की पुछ परख नहीं , तो वंही बस्तर के नारायणपुर जिला से एक बड़ी घटना सामने आई है , जंहा एक बार पुनः रावघाट लोहा माइंस क्षेत्र में पुलिस के जवानों पर गंभीर  आरोप लगा है । ग्रामीणों का कहना है कि, पुलिस ने सोमनाथ दुग्गा के परिवार के 7 सदस्यों के साथ जमकर मारपीट की है। जिसमें औरत और छोटे बच्चे के साथ बुजुर्ग भी शामिल हैं,जिसके बाद गुस्साएं ग्रामीणों ने विरोध जताते हुए भरंडा थाना के सामने मेन रोड को जाम कर दिया है। हालांकि जिला पुलिस अधीक्षक  सदानंद कुमार ने ग्रामीणों की आरोप को नकारते हुए बेबुनियाद बताया है । पुलिस अधीक्षक की मानें तो, उक्त ग्रामीण पहले नक्सली संगठन में होने की वजह से जेल जा चुका है ,नक्सलियों के साथ उसकी मीटिंग की जानकारी हमें मिली थी, जिसकी वजह से हमारे जवान पूछताछ के लिए उसे थाने लेकर आए ।
हालांकि पूछताछ के बाद आज सुबह उसके भाई के साथ उसे घर भेज दिया गया था,मारपीट जैसी कोई घटना नहीं हुई है। सड़क जाम करने की कोशिश ग्रामीण कर रहे थे जिसे समझाइश देकर जल्द क्लियर करवाने की कोशिश की जा रही है। बहरहाल नारायणपुर जिला पुलिस अधीक्षक के बात में कितनी सच्चाई है यह कहा नहीं जा सकता है , क्योंकि देश के ज्यादातर आम आदमी का अनुभव पुलिस विभाग को लेकर कुछ ठीक नहीं है । वैसे भी बस्तर की जेलों में वर्षों से बंद निर्दोष आदिवासियों को देखा जाए तो नारायणपुर पुलिस अधीक्षक की दावा कई आशंकाओं को जन्म देता है ,जिस पर सरकार को गंभीरता से विचार करना चाहिए ।

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