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माटी हो गई लहूलुहान अब तो जागाव रे संगी, साथी अऊ युवा मितान !

    विनोद नेताम की कलम से !           
      बालोद  : विगत दिनों पुर्व छत्तिसगढ़ की पावन धरा बालोद में एक बड़ी घटना घटित हो गई  , उक्त घटना को लेकर प्रदेश के फिजाओं में छतिसगढ़ीहा बनाम परदेशीया लोगों के मध्य विवाद की स्थिति बनी हुई है । ज्ञात हो , कि 25 मई बालोद बंद के दौरान छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना के प्रदेश अध्यक्ष  अमित बघेल के द्वारा छत्तीसगढ़ी भाषा में जैन मुनियों के संदर्भ में कुछ शब्द प्रयुक्त किए गए जिसे अभद्र टिप्पणी कह कर जैन समाज ने विरोध करते हुए एक बड़ा आंदोलन को अंजाम दिया।

जिसके समर्थन में विभिन्न संगठन, राजनीतिक पार्टियां, स्वयं छत्तीसगढ़ के माननीय मुख्यमंत्री मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जी आए और छतिसगढ़ीहा क्रांति सेना के प्रदेश अध्यक्ष अमित बघेल को बघेल समुदाय  के नाम पर कलंक  कह दिया गया, जबकि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के सम्मानिय पिता जी नंदकुमार बघेल मंच पर उस बख्त खुद मौजूद थे जिस वक्त अमित बघेल जैन मुनि को लेकर टिप्पणी कर रहे थे। वंही बालोद महाबंद के दौरान नंदकुमार बघेल ने भी हिन्दू समाज को लेकर विवादित टिप्पणी किया था , जिसके बावजूद उन पर कोई कार्यवाही नहीं ,शायद नंदकुमार बघेल के द्वारा इस तरह से हिन्दू धर्म के बारे में बयानबाजी करने से बघेल समाज का मान बढ़ जाता है । साथ ही अमित बघेल की गिरफ्तारी का मांग करने वाले हिन्दू संगठन से संबंधित  लोगों का मुंह नंदकुमार बघेल के बयान पर खामोश हो जाती है। विभिन्न संगठनों ने छतिसगढ़ीहा क्रांति सेना के प्रदेश अध्यक्ष अमित बघेल के द्वारा दिए गए बयान की कड़ी निंदा की और उनके गिरफ्तारी की मांग भी कर डाली। जिस सरकार   ने त्वरित कार्यवाही करते हुए "हसदेव अरण्य बचाओ" आंदोलन की में शामिल रहे अमित बघेल  को आंदोलन स्थल से ही  30 मई 2022 को रात्रिकालीन बेला में गिरफ्तार कर जेल भेज देती है। अमित बघेल की  गिरफ्तारी से जैन समाज, साथ ही साथ वे समस्त संगठन जो स्वयं को हिंदूवादी संगठन से संबोधित करते हैं वे सभी अति प्रसन्न हुए। प्रसन्न होना भी चाहिए क्योंकि उनकी मांग तुरंत पूरी हो गई है , और अमित बघेल को जैन मुनि को लेकर दिए टिप्पणी पर जेल भेज दिया गया है , लेकिन इस घटनाक्रम में न्याय की अवधारणा को अधूरा छोड़ दिया है जिसके बारे में समस्त छत्तीसगढ़ वासीयों को गहराई से चिंतन करना आवश्यक है । दरअसल  1 मई 2022 को तुएगोंदी जिला बालोद छत्तिसगढ़  में आदिवासी समाज द्वारा जीव सेवा दी गई, वे शांतिपूर्वक ढंग से अपनी परंपरा का निर्वहन कर रहे थे । ज्ञात हो , कि छत्तीसगढ़ राज्य आदीवासी बाहूल्य राज्य है और तूएगोंदी गांव संविधान के अनुच्छेद 5 वी अनुसूची में शामिल क्षेत्र है। देश भर के आदीवासी समाज में उनकी आस्था अनुरूप आज भी बलि प्रथा लागू है , और देश की कानून और संविधान के अनुसार राष्ट्र के कोई नागरिक अपनी धार्मिक आस्था हेतू स्वतंत्रत है।इस दौरान बलि प्रथा को समाप्त करने की बात देश के कानून कहती है, लेकिन देश के कोने-कोने में आज भी बलि प्रथा लागू है और मानव समाज अपनी आस्था के अनुसार इसका पालन भी करते है । 1 मई के दरमियान तथाकथित सनातन धर्म हिंदू धर्म मानने वाले लोग शांत आदिवासियों के ऊपर लाठी-डंडे,  पत्थर और तलवारों से वार कर देते हैं , जबकि 12 गांव के आदिवासी समुदाय से जुड़े लोग अपनी समाजिक , सभ्यता और संस्कृति के अनुसार पुजा आराधना में व्यस्त थे । इस घटना के बाद कोई भी हिंदूवादी व राजनीतिक संगठन जो आदिवासियों को हिन्दू कहते हैं उनके पक्ष में नहीं आते है। यह चिंता का विषय है साथ ही मुंह में राम और बगल में छुरी वाली कहावत को चरितार्थ करने जैसी रवैया मानी जा सकती है । जो पथराव किए थे उनमें से 4 लोगों की गिरफ्तारी होती है 6 लोग फरार हो जाते हैं। बताया जाता है, की उक्त घटना को अंजाम तक पहुंचाने वाले लोग हिन्दू धर्म से संबंधित कट्टर पंथी विचारधारा के लोग हैं जिनका छत्तिसगढ़ की मातृभूमि से दूर दूर का नाता नहीं है  । जबकि अपनी ही भूमि में अपने ही परंपराओं को मानने की इतनी बड़ी सजा मिल गई की आदिवासियों को अपना खून बहाना पड़ जाता है इसी बात के विरोध में 25 मई को बालोद जिला महा बंद का ऐलान सर्व आदिवासी समाज, सर्व छत्तीसगढ़िया समाज और छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना द्वारा किया जाता है। बालोद जिले के समस्त विकासखंड में बंद शांतिपूर्वक रहा,
    किंतु गुंडरदेही में सुनियोजित ढंग से इस महा बंद का विरोध करते हुए छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना एवं सर्व आदिवासी समाज के लोगों पर अपराधिक तत्वों द्वारा हमला कर दिया जाता है जिसमें हमलावर बच जाते हैं और घायल पक्ष के लोग गिरफ्तार कर लिए जाते हैं। बाहर से आए हुए लोग अपनी संस्कृति अपनी परंपराओं को स्थानी छत्तीसगढ़िया लोगों के ऊपर थोप रहे हैं और उन्हें बाहर की संस्कृति को मानने के लिए विवश किया जा रहा है । इन बाहरी व्यक्तियों के संस्कृति को नहीं अपनाने पर राज्य के मूल निवासीयो पर अत्याचार किया जा रहा है , और इनके इस अत्याचार का विरोध करने वाले लोगों पर कार्यवाही किया जा रहा है ।   
     विभिन्न राज्य के निवासी, विभिन्न संप्रदाय अपनी-अपनी परंपराओं से बंधे हुए हैं। किसी भी समुदाय को दूसरे समुदाय की परंपरा प्रथा के दमन का अधिकार नहीं है जिस प्रकार से जैन मुनि निर्वस्त्र होकर घूमते हैं यह उनकी परंपरा है जिसे वे छोड़ नहीं सकते उसी प्रकार से आदिवासी समाज जीव सेवा अर्थात बलि प्रथा को छोड़ नहीं सकते। यदि आप बलि प्रथा बंद कराना चाहते हैं तो - जैन समाज के मुनि वस्त्र पहने,, बंगाली समाज माता काली की पूजा में बलि देना बंद करे,, सिख समाज कृपाण रखना बंद करे, और यही बात अमित बघेल की  एक समाज विशेष को बुरा लग गई, और पूरे जोर-शोर से पूरे राज्य में अमित बघेल  के विरुद्ध कार्यवाही की मांग उठा दिया। एक छत्तीसगढ़िया ने अपनी परंपराओं को बचाने के लिए आवाज उठाई और इसके विरोध में खड़े हुए लोगों के साथ छत्तीसगढ़िया समाज के लोग भी खड़े हो गए।
      आदिवासी समाज के ऊपर पथराव हुआ तो छत्तीसगढ़ के पक्ष और विपक्ष में विराजमान कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी मौन रही लेकिन जैसे ही बात जैन समाज पर आई सारी पार्टियों की भावनाएं आहत हो गई। इससे पूर्व विभिन्न राजनीतिक व्यक्तियों द्वारा छत्तीसगढ़ के महान सेनानियों, महान व्यक्तित्व, यहां तक कि छत्तीसगढ़ महतारी की प्रतिमा का भी अपमान किया गया। छत्तीसगढ़ के पुलिस जवानों का अपमान किया गया । छत्तीसगढ़ के चिन्हारी के रूप में स्थापित विभिन्न स्थलों के नाम बदले जा रहे है। भारत का फेफड़ा अर्थात हसदेव अरण्य की कटाई शुरू हुई तब कोई भी पार्टी कोई भी संगठन अपनी आवाज मुखर नहीं कर पाया। पर एक समाज विशेष की बात आने पर यह सारे संगठन खड़े क्यों हो गए? हमें ऐसा लगता है कि जो मानसिक गुलामी छत्तीसगढ़िया समाज में वर्षों से चली आ रही है उसका निदान नहीं हो पाया है। आज भी छत्तीसगढ़िया लोग अपने लोगों के पैर खींचते हैं, उसे किसी उच्च स्थान पर काबिज होते हुए नहीं देख सकते। छत्तीसगढ़िया लोगों को छत्तीसगढ़िया लोगों की तरक्की से परेशानी होती है। एक छत्तीसगढ़िया, छत्तीसगढ़िया के हित की बात करें तो उन्हें उसमें स्वार्थ नजर आता है। इसके ठीक विपरीत व्यापारी लोग मीठी-मीठी बातें करके उनको लूटते हैं, उनकी जमीनों पर कब्जा करते हैं, उनके स्वाभिमान को ठेस पहुंचाते हैं, उनकी संस्कृति को समाप्त करते हैं तब यह छत्तीसगढ़िया समाज चुपचाप मौन सहमति दे देता है। यदि यही स्थिति आगे भी रही तो एक दिन छत्तीसगढ़िया संस्कृति, छत्तीसगढ़िया परंपरा, छत्तीसगढ़ के माटी की महक,  छत्तीसगढ़ महतारी का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। यदि कोई संगठन निस्वार्थ भाव से छत्तीसगढ़ महतारी की सेवा, छत्तीसगढ़िया बोली भाषा, छत्तीसगढ़ की संस्कृति और परंपरा को संरक्षित करने के लिए आगे आया है तो उसे साथ देना चाहिए। अगर हमने यह मौका खो दिया तो भविष्य में कोई भी शोषित छत्तीसगढ़िया समाज की आवाज उठाने की हिम्मत नहीं करेगा। अपनी ही जमीन पर छतिसगढ़ीहा सबले बढ़िया कहलाने वाले लोग अपना अधिकार तेजी के साथ खो रहे हैं , जबकि अन्य प्रदेशों से छत्तिसगढ़ आकर बसने वाले लोगों का अधिकार दिनों दिन बढ़ रहा है।

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