विनोद नेताम
बालोद : भारत एक कृषि प्रधान देश है ,देश के ज्यादातर ग्रामीण अंचल क्षेत्रों में रहने वाले लोगों का मुख्य दैनिक कार्य खेत और खलिहान पर संचालित होने वाली कृषि कार्य है। खेत और खलिहान पर देश के ज्यादातर किसान परिवार और गरीब मजदूर दिन रात मेहनत करते हुए अन्न उपजाते है । हां यह अलग विषय है कि देश के किसानों के नाम पर राजनीति करने वाले देश के ज्यादातर भ्रष्ट राजनेताओं और नौकरशाहो की संपत्ति, दिन भर खेत और खलिहान में पसीना बहाने वाले किसानो और मजदूरों के मुकाबले कंही अधिक है । वैसे राजनीति दृष्टिकोण से देखा जाए तो देश के किसान और मजदूर राजनीतिक दलों के लिए वोट बैंक हासिल करने का जरिया भर मात्र है । ज्यादातर राजनीतिक दल चुनाव में जीत हासिल करने के लिए किसानों और मजदूरों को लेकर कई घोषणा और वादा करते हैं और चुनाव में जीत भी हासिल करते हैं । चुनाव के दौरान कि गई कुछ घोषणा और वादा के बारे में ज्यादातर राजनीतिक दल चुनाव में जीत हासिल करने के बाद भूल जाते है। चुनावी घोषणा और वादा को भूलने का यह सिलसिला भारत के राजनीतिक विरासत में वर्षों से अनवरत चली आ रही है । बहरहाल इन दिनों केन्द्र और राज्य सरकार किसानों को लूभाने हेतू कई योजनाओं पर किसानों एवं मजदूरों को लाभ पहुंचाने की कोशिश कर किया जा रहा है । सरकार की सहयोग और मदद के बावजूद किसानों के लिए खेती और किसानी से जुड़ी हुई समस्या खत्म होने का नाम नहीं ले रही है । यूनाइटेड नेशन और दुनिया भर की एजेंसी मौजूदा समय में पुरे विश्व भर में खाद्य संकट गहराने की आशंका जाहिर किया है। रूस और यूक्रेन की विध्वंसक जंग बनी खाद्य संकट का कारण , अभी जंग लगातार जारी है, जिसके चलते आने वाले दिनों में खाद्य संकट गहराने की उम्मीद है। ऐसे में भारत सरकार और सभी राज्य सरकारों को किसानों के मदद और सहयोग हेतू तत्पर रहना चाहिए ताकि देश के मेहनतकश किसानों को प्रोत्साहित किया जा सके । पुरे विश्व में दूसरे नंबर की सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश है भारत , जंहा की एक बड़ी आबादी को दो वक्त की रोटी नसीब नहीं है , जबकि जनता के मेहनत और पसीने की कमाई से चलने वाली सरकारी सिस्टम के जागिरदारो के डायनिंग टेबल में छप्पन भोग वाली भोजन इन्हीं मेहनतकश लोगों के जी तोड़ मेहनत के बदौलत नसीब होती है । विश्व भर में खाद्य संकट की जानकारी होने के बावजूद देश के मेहनतकश किसानों को खरीफ सीजन की फसल उत्पादन हेतू सरकार यूरिया और रासायनिक खाद नहीं मिल पा रही हैं । भारत के अंदर देश के ज्यादातर किसान खरीफ फसल के दौरान चांवल की खेती करते हैं । छत्तीसगढ़ राज्य को धान की कटोरा के नाम से जाना व पहचाना जाता है , जंहा पर रासायनिक खाद की कमी के चलते राज्य भर के किसान चिंतित हैं ।
खरीफ 2022 के लिए कुल 13.70 लाख टन का अनुमोदन भारत सरकार द्वारा दिया गया है,इसमें से यूरिया 6.50 लाख टन, डीएपी 03 लाख टन, पोटाश 80 हजार टन, एनपीके 1.10 लाख टन और सुपरफास्फेट 2.30 लाख टन है। माह अप्रैल और मई 2022 में राज्य को यूरिया की कुल आपूर्ति 3.29 लाख टन होनी थी, लेकिन केवल 2.20 लाख टन यूरिया ही प्राप्त हुआ है । यूरिया के वितरण का संपूर्ण नियंत्रण भारत सरकार के उर्वरक मंत्रालय द्वारा किया जाता है। यूरिया की उपलब्धता खरीफ के लक्ष्य के विरुद्ध 62 प्रतिशत है, राज्य में एनपीके की उपलब्धता खरीफ के लक्ष्य के विरुद्ध 30 प्रतिशत, डीएपी की उपलब्धता 39 प्रतिशत, पोटाश की उपलब्धता 35 प्रतिशत है।आगामी दिनों में केंद्र से समय पर उर्वरक न मिलने पर इनकी कमी हो सकती है, जिसके चलते राज्य में खरीफ फसल की उत्पादन क्षमता पर प्रभाव डाल सकता है । यूरिया के अतिरिक्त अन्य सभी उर्वरक अधिकांशतः आयतित सामग्री पर आधारित हैं, इसलिए राज्य में पर्याप्त उर्वरक उपलब्ध कराने का दायित्व सरकार की है ।