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अवैध रेत चोरी+ भाजपा+ कांग्रेस = नदियों से सांय-सांय रेत चोरी

 "अवैध रेत उत्खनन को लेकर न भाजपा के पास बचे हैं कोई रामजादे और न ही कांग्रेस पार्टी में बचा है कोई भगवत गीता वाले"

☝️यह घटना कोई मामूली घटना नही है इससे कुछ दिन पहले उक्त घटना क्षेत्र से महज कुछ दूर पर स्थित मरकाटोला रेत भंडारन केन्द्र पर राजस्व विभाग के हल्का पटवारी जब मौका जांच हेतू पहुंचे हुए थे तब उसे कवरेज करने गए अमृत संदेश के वरिष्ठ पत्रकार कृष्णा गंजीर पर रेत माफियाओं के द्वारा जानलेवा हमला किया गया था और हमलावर कोई दूध के धूले हुये मामूली आरोपी नही बल्कि सत्ता के हुनक के दम पर छत्तीसगढ़ महतारी की जीवनदायनी नदियों की छाती को बडे बडे चैन माऊंटेन के जरिये दिन रात चिरने वाला महशूर रेत चोर सोमलू सफेदपोश रणतुंगा के पाले हुये मामूली प्यादा है,जबकि हकिकत के धरातल पर मौजूद मंजर चिख चिख कर हर तरफ से बंया कर रहा है कि रेत चोरी के खेल में हर बेईमान सफेदपोश नेताओं का दामन दागदार है। ऊपर से रेत चोरी के मामले को लेकर सियासी गलियारो में छाई हुई राजनिक चुप्पी बहुत कुछ इशारा कर रही है। अब ऐसे में आम जन मानस के मध्य रेत चोरी के मामले को लेकर हर सफेदपोश नेता क्या समझे जा सकते है, यह बताने की आवश्यकता नही है,किन्तु शर्म आनी चाहिए ऐसे माटी पुत्र सफेदपोश नेताओं को जो अपनी ही मिट्टी का अन्न खाकर अपने ही मिट्टी के साथ सफेद चोला पहन कर गद्दारी करने का काम करते है।

रेत चोरो का आतंक चरम पर किंतु माकूल कार्यवाही नही हो रही है सांय सांय
 एक तरफ आधुनिकीकरण के इस दौर में जंहा नव निर्माण को लेकर अमृतकाल के इस दौर में चारो तरफ होड मची हुई दिखाई दे रही है,तो वंही दूसरी ओर नव निर्माण से तालुक रखने वाले तमाम सँसाधनो पर लूट मचता हुआ भी प्रतित नजर आ रहा है। इस बिच धरती पर मौजूद ज्यादातर नव निर्माण से जुडे हुये संसाधन कारपोरेट घरानो के हाथो में है, तो वंही प्रकतिक संसाधनों के मालिक धरती के स्वंभू भगवान कहलाने वाले सफेदपोश नेता बन चुके है। उदाहरण के लिये रेत जो कि धरती पर नव निर्माण हेतू अति महत्वपूर्ण संसाधन माना जाता है। बता दे कि रेत जंगलो की मिट्टी को कांट कर बारिश के जरिये नदि पर एकत्र होने वाली बेश्किमती गौण खनिज है और आधुनिक युग में किसी भी निर्माण कार्य बैगर रेत के संभव ही नही हो सकता है। देश के विभिन्न हिस्सों में मौजूद नदियों से बजरी और रेत उत्खनन सदियों से चला आ रहा है। लेकिन सफेदपोश नेताओं और बेईमान किस्म के अधिकारियों की लालच ने रेत उत्खनन के कार्य को जोखिम बना दिया है। बता दें समूचे छत्तिसगढ़ महतारी की पावन धरा में बहने वाली हमारी जिवनदायनी नदियों की छाती को अवैध तरीके से दिन-रात चीरा जा रहा है और इसके चलते न सिर्फ पर्यावरण को खतरा पहुंचाया जा रहा है बल्कि नदियों की पारिस्थितिकी तंत्र में भी भंयकर बदलाव महसूस किया जा रहा है। ज्यादातर नदियों में रहने वाली जलिय जीव विलुप्त हो चुके हैं जबकि की कुछ जलिय जीव विलुप्ती के कगार पर पहुंच गया है। ऐसे में समाज के हर तबके से कुदरत के बनाए हुए वसूलों को बचाने हेतू सरकार से मजबूती के साथ सवाल करना चाहिए ताकि दूध का दूध और पानी का पानी साफ हो सके।
विनोद की कलम से...





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