"आखिरकार अंचल की उपजाऊ जमीन से गिरते हुए भू जल स्तर की जवाबदेही सरकार ने आखिरकार किसके मत्थे तय करके रखी हुई है? आखिर क्यों अंचल में भू वैज्ञानिकों और सरकार की चेतावनी को नजरंदाज किया जा रहा है? क्या जिला के अंदर अपनी मौजूदगी दर्शाकर कुछ जिम्मेदारी से युक्त लापरवाह अधिकारी और कर्मचारी आंख मूंदकर चोर बो रातें हुए मलाई खाने में बेहद व्यस्त हो गए हैं? जबकि अंचल की उपजाऊ जमीन बंजर और बेजान होने की दिशा में आगे बढ़ चुकी है। अवगत हो कि बालोद जिला में पदस्थ रहने वाले ज्यादातर सरकारी अधिकारी और कर्मचारी इस जिला में रहकर अपने परिवार के साथ किसी खेत में झक मराते हुए हल का मुढ नहीं थामने वाले हैं और न ही वर्तमान परिदृश्य के अंदर जिला में पदस्थ रहने के दरमियान अधिकारी और कर्मचारी थाम रहे हैं,अपितु उन्हें तो सरकार के आदेशानुसार जनता की सेवा हेतू सरकार द्वारा निर्धारित समय अवधि तक ही इस जिला में पदस्थ रहकर आम आदमी का कामकाज निपटना है। ऐसे में जाहिर सी बात है कि जिला की उपजाऊ मिट्टी पर जन्म लेने वाले जिला के आम नागरिक ही इस उपजाऊ मिट्टी के असली खेवनहार है।
दरअसल जिला के अंदर मौजूद उपजाऊ जमीन जो कि भू जल स्तर की कमी और अधिक उत्पादन के दवाब से इन दिनों भंयकर तरीके से जूझ रहा है। इस बीच अपनी विभिन्न समस्याओं के मध्य अंचल के ज्यादातर माटी पुत्र किसान लाचार सिस्टम और भ्रष्ट प्रशानिक व्यवस्था के चलते हैरान और परेशान हो गए हैं। बावजूद इसके माटी पुत्र किसान अपने खेतों पर पानी की उपयोगिता को देखते हुए फसल चक्र में लगातार बदलाव कर रहे हैं और इस कड़ी में वर्तमान परिदृश्य के दरमियान कई गांव के किसानों ने रबी सीजन के फसल में चना, गेहूं, लाखड़ी,मसूर, व अन्य दलहन और तिलहन का उत्पादन किया था। वर्तमान दिनों में एक बार अंचल के किसान अपनी जमीन पर अपने मेहनत के दम पर उड़द और मुंग की खेती को बढ़ावा देने में जुटे हुए नज़र आ रहे हैं। निश्चित रूप से किसान इस मिट्टी के असली खेवनहार है जो कि अपनी मेहनत से धरती पर जीवन जीने वाले सभी जीव-जंतु के लिए अन्न उगाता है। ऐसे में स्वाभाविक बात है कि क्षेत्र के माटी पुत्र किसानों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए लेकिन जिस तरह से जिला में पदस्थ रहने वाले सरकारी अधिकारी और कर्मचारी सुप्रीम कोर्ट के द्वारा प्रतिबंधित लाल ईंट भट्टा को बढ़ावा देने में जुटे हुए बतायें जा रहे हैं उसे देखकर लगता है कि आगे आने वाले दिनों में हमारे यहीं अधिकारी और कर्मचारी हमारे जिला के उपजाऊ जमीन को बंजर बना कर अन्य जगह रफूचक्कर हो जायेंगे चूंकि उन्हें वैसे भी यंहा की उपजाऊ जमीन से कोई मतलब नहीं है।