अवैध सट्टा,अवैध गांजा,अवैध शराब, अवैध गुंडागर्दी,अवैध उगाही और तथाकथित अवैध लुगाई के जरिए अघोषित उपलब्धि हासिल करने वाले दुनिया के सबसे महान जनसेवक सैंया राम भैय्या के कर्मभूमि से ताल्लुक रखने वाली सनसनी खबर ....
विनोद नेताम की कलम से...
बालोद/ गुरूर : कांटों को मत निकाल चमन से ओ बागबां, ये भी गुलों के साथ पले है बहार में " कितना है बद - नशीब 'जफर दफ्न के लिए दो गज जमीन भी न मिली कू - ए - यार में" इन हसरतों से कह दो कंही और जा बसें इतनी जगह कहां है दिल - ए-दाग-दार में " बहादुर शाह जफर का लिखा हुआ यह महशूर शेर है,जिसे नगर पंचायत गुरूर की पावन धरा यानी कि भगवान देऊर देव की पवित्र भूमि पर स्थित सरकारी पोस्टमार्टम केंद्र की जर्जर हालत को देखने के बाद शायद यमलोक के देवता तक दोहरा कर चले गए हैं, विडंबना इस बात को लेकर है कि नगर पंचायत गुरूर के अंदर मौजूद रहने वाले नगर के चुने हुए पुराने मठाधीशों ने यमदेवता की दोहराई हुई इस मशहूर शेर को सुनने में कोई प्रतिक्रिया देखने को नहीं मिली है। यानी कि इस वाक्या को यदि हम सीधे शब्दों में बंया करें तो यमलोक के देवता को एक तरह से लात मारकर नगर पंचायत गुरूर के पुराने मठाधीशों ने भगा दिया है। सनद रहे मृत्युलोक के देवता यमराज मानें जाते हैं और महाकाल कालों के काल। गौरतलब हो कि पूरे पांच साल तक नगर पंचायत गुरूर के अंदर कांग्रेस पार्टी की शासनकाल में आम नगर वासियों को लड़ाई और झगड़ा का ही मंजर देखने और सुनने के लिए मिला है,जबकि इस बीच कई कांग्रेसी नेताओं ने अपनी मन मुताबिक अपने स्वार्थ के खातिर बखूबी तरीके से काम करने का अदभुत नजारा पूरे नगर वासियों के नाक के निचे से प्रस्तुत किया है। उदाहरण के लिए अपने घर के सामने गार्डन निर्माण कार्य करना। वंही दूसरी ओर देवो के देव भगवान महादेव अर्थात साक्षात देऊर देव, नगर पंचायत गुरूर के अंदर विराजमान मानें जाते हैं जो कि शास्त्रों के अनुसार कालों के काल महाकाल के दुसरा ही रूप बतायें जाते हैं। अब ऐसे में हैरान करने वाली बात यह है कि जब नगर पंचायत गुरूर के अंदर मौजूद रहने वाले जनप्रतिनिधी जो कि नगर पंचायत के असल मार माई बाप थे उन्होंने साक्षात भगवान महाकाल तक की आवाज को नहीं सुनी है तब जरा सोचिए नगरवासियों का आवाज को पूरे पांच साल तक क्या खाक सुने होंगे?
कालों के काल भगवान महाकाल के दूसरे स्वरूप भगवान देऊर देव की पावन धरा पर मौजूद मर्चुरी सेंटर भी बना रेफर सेंटर
इसमें कोई संदेह वाली बात नहीं होना चाहिए कि मृत्यु होने के पश्चात किसी भी व्यक्ति को अपमान सहना पड़े या फिर अपमानित होना पड़े। लिहाजा दुनिया में जन्म लेने वाले हर व्यक्ति सम्मान के साथ दुनिया से अलविदा कहने का अधिकार रखता है, लेकिन सवाल सबसे बड़ा यह उठता है कि जो व्यक्ति मर चुका है वह कैसे अपनी लूटते हुए अधिकार के लिए जिंदा लोगों के माफिक बक सकता है? नहीं बक सकता है न ? अरे भाई मरा हुआ व्यक्ति जिंदा लोगों के माफिक कैसे बक सकता है? यदि बक सकता था तो जब वह जिंदा था 'तब बक सकता था, मरने के बाद आजतक भला कौन किसको बक पाया है। मतलब साफ और स्पष्ट है कि जो जिंदा है वहीं जिंदादिली की बात रख सकता है और अपने अधिकारों लिए बक सकता किन्तु जो मर कर उजड़ गया है वह तो न खिल सकता है और न ही बक सकता है। बहरहाल नगर पंचायत गुरूर के अंदर सवाल सबसे बड़ा यही उठता है कि आखिरकार नगर पंचायत गुरूर के अंदर कौन जिंदा था ? पूरे पांच साल तक नगर को जिंदादिली से मुर्दों की बस्ती में तब्दील करने वाले वो भेड़िया कौन है जिन्होंने अपनी संवैधानिक जवाबदेही को दरकिनार कर अपने कोठी को भरने में पूरा समय लगा दिया और नगरवासियों को मुर्दा बनकर जिंदादिली के इस शहर में मरने के लिए अकेला छोड़ दिया? परिणाम स्वरूप आज नगर पंचायत गुरूर में स्थित पोस्टमार्टम केंद्र तक की हालत काफी गंभीर अवस्था में पहुंच चुकी है। बताया जाता है कि यदि पोस्टमार्टम केंद्र का जल्द से जल्द उपचार नहीं किया गया तो हो सकता कि आगे आने दिनो मे इलाज के लिए पोस्टमार्टम केंद्र को भी बाहर रेफर किया जायेगा। बता दें कि भगवान देऊर देव के पावन धरा पर स्थित पोस्टमार्टम केंद्र बालोद जिला के संजारी बालोद विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत राजनीतिक रण भूमि क्षेत्र की भूमि के नाम से विख्यात पूरे गुरूर विकासखण्ड क्षेत्र अंतर्गत इकलौता पोस्टमार्टम केंद्र है जिसकी हालत गंभीर बनी हुई बताई जा रही है। हैरानी की बात यह है कि इस जर्जर केन्द्र के अंदर एक स्वास्थ्य विभाग के अस्थाई स्वीपर माखन लाल साहू ने अकेले चार सौ से अधिक शव का पोस्टमार्टम किया है। माखनलाल साहू को इस उपलब्धि हेतू आज तक स्वास्थ्य विभाग की ओर से कोई टोपा नहीं मिला है अलबत्ता जर्जर पोस्टमार्टम केंद्र में शव परिक्षण करने की जवाबदेही नियम के मुताबिक मिली हुई है।