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चलेगी आंधी और आयेगा सैलाब जब नगर पंचायत गुरूर में होगा जनता का राज

 विनोद नेताम (गब्बर सिंह की कलम से ) नगर पंचायत गुरूर की जनता के नाम एक संदेश क्रांति जारी है आपकी हक और अधिकारों के लिए ....

कभी जिंदादिली के साथ जीने की हर कला को दुनिया को सिखाने का रूतबा रखने वाला गुरूर नगर पंचायत आज कहा जाता है कि यह शहर मुर्दों की‌ बस्ती में तब्दील होकर समस्त संसार भर में जिंदा मुर्दों का शहर के रूप में अपना पहचान बना चुका है। हालांकि इस पहचान के पीछे दुनिया वाले लोगों का मानना है कि नगर पंचायत गुरूर में रहने वाले जनता का ही‌ इस पहचान में सबसे बड़ा हाथ है सीधा सा बात यह है कि जब तक शहर में रहने वाले नागरिक ऐसे महत्वपूर्ण कार्य में हाथ नहीं बंटायेंगे तब तक इस तरह की उपलब्धि हासिल करना किसी भी शहर के लिए मुश्किल कार्य हो सकता है। अब सवाल यह उठता है कि नगर पंचायत गुरूर को आखिरकार ऐसी क्या मजबूरी आन पड़ी थी कि उन्हें जिंदादिली शहर कहलाने की दिशा से मुड़ कर मुर्दों की बस्ती कहलाने की इच्छा जागृत हुई है?

सफेदपोश वर्दी धारी नेता और सरकारी सिस्टम के महत आने वाले अधिकारियों ने नगर का किया बेड़ा गर्त
 वैसे तो देश के आम आदमी की‌ तरह ही समान अधिकार नगर पंचायत गुरूर में निवासरत हर नागरिकों पर भी लागू होती है किन्तु रसूख और सत्ता की हुनक चलाने वाले चंद बेईमान किस्म के लोगों ने अपनी बेईमानी के दम पर नगरवासियों की अधिकारों को कुचल कर रख दिया है। परिणामस्वरूप नगर पंचायत गुरूर के अंदर आज किसी के परिवार में कोई नवजात शिशु का जन्म होता है तो कोई यह नहीं कह सकता है कि यह बच्चा आगे चलकर कलेक्टर या एस पी बनेगा बल्कि नगर के चप्पे-चप्पे से एक ही आवाज निकलकर सामने सुनाई देता है कि बधाई हो नगर में एक और सटोरिया का जन्म हुआ है। जरा सोचिए अमृतकाल के इस दौर में किसी भी शहर के लिए और इसके साथ ही उस शहर में निवास करने वाले हर नागरिकों के लिए कितना शर्म की बात हो सकती है किन्तु शर्म करने से हकिकत के धरातल पर फैली हुई मंजर छुपाई या बदली तो नहीं जा सकती है। 
रसूख और सत्ता की हुनक को सबक सिखाने का सही मौका मिला है नगरवासियों को

 यातायात व्यवस्था से ताल्लुक रखने वाले श्लोगन में हमारे सुधी पाठकों ने जानकारी ही सावधानी है और सावधानी ही सुरक्षा है 'इन शब्दों को कई बार पढ़ा होगा, किन्तु पढ़ने के बावजूद हमारे कई सुधी पाठक हासदे का शिकार बन जाते हैं। इसके पीछे कारण यह है कि पढ़ने के बात हम इस श्लोगन को अपनी दैनिक दिनचर्या में शामिल नहीं करते हैं। अतः हासदा हमारा इस कमजोरी का फायदा उठाकर हमें नुकसान पहुंचाने के लिए आगे आता है। बिलकुल ठीक उसी तरह राजनीति में भी एक श्लोगन काफी मशहूर है जिस पर लोग ध्यान तो देना चाहते हैं किन्तु समय आने पर दारू के साथ मुर्गा और लाली पीली गुलाबी लुगरा और साड़ी में बिक जाते हैं। श्लोगन है खाओ पीयो तान के अऊ अपन नेता चुनो जान के...


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