" छत्तीसगढ़ राज्य के हर जगह पर अलग-अलग टामन सोनवानी। हालांकि तरह की तमगा युवा छत्तीसगढ़ राज्य के नवजवान युवा पीढ़ी के लिए कतैई सही नहीं माना जा सकता है,क्योंकि पूरे प्रदेश के अंदर ज्यादातर जगहों पर एक ही मांग है डौका चाहिए नौकरी वाला। अब नौकरी तो रही टामन सोनवानी जैसे महापुरुषों के मत्थे ऐसे में प्रदेश के बेहतर से बेहतर प्रतिभाशाली नवजवानों का क्या बिसात? हर हर महादेव,जाहिर सी बात है पैसा दो और नौकरी लो। बहरहाल कांग्रेस पार्टी के बहुचर्चित संजारी बालोद विधायक की पंचायत सचिव भतीजी प्रियंका सिन्हा की नियुक्ति और लगातार गायब रहने को लेकर गंभीर सवाल उठ रहा है। हाल के दिनो मे जनपद पंचायत के सीईओ रात्रे जी ने प्रियंका सिन्हा की पदस्थापना आदेश जारी किया है जिसमें प्रियंका सिन्हा को धान खरीदी केंद्र की निगरानी समिति में प्रमुखता से जगह दी गई है, लेकिन सूत्रों की मानें तो पिछले कई महीनों से प्रियंका सिन्हा जनपद पंचायत के अंदर मौजूद मुख्य कार्यपालन अधिकारी के आदेशों को तुर्रा मान कर चल रही है। दरअसल गुरूर जनपद पंचायत के सीईओ ने स्थानीय विधायक की भतीजी को ग्राम पंचायत खुन्दनी के पंचायत सचिव के तौर पर विगत कई महिने पहले आदेश जारी किया था। बावजूद इसके ग्राम पंचायत खुन्दनी का मुंह देखने के लिए प्रियंका सिन्हा अब तक एक भी बार उपस्थित नहीं हुई है। अलबत्ता फिर से पुनः गुरूर जनपद पंचायत सीईओ रात्रे जी ने धान खरीदी केंद्र में निगरानी हेतू उनका नाम प्रेषित किया है,जब जबकि ग्राम पंचायत खुन्दनी बैगर स्थाई पंचायत सचिव के बैगर महिनों से संचालित हो रही है। परिणाम स्वरूप आलम यह बना हुआ प्रतीत नजर आ रहा
है कि ग्राम पंचायत सचिव प्रियंका सिन्हा की लगातार अनुपस्थिति के चलते आनन फानन में ग्राम पंचायत दढारी के ग्राम पंचायत सचिव को ग्राम पंचायत पलारी का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है।
बालोद: गौरतलब हो कि छत्तीसगढ़ राज्य वर्तमान समय के अंदर जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी है तो वंही दुसरी ओर छत्तीसगढ़ राज्य के ही बालोद जिला फिलहाल जानने व समझने के दौर में पहुंच चुका है। कहने का मतलब साफ है छत्तीसगढ़ प्रदेश को मध्यप्रदेश से अलग हो कर नया राज्य बने 24 बरस हो रहा है तो वंही 1 जनवरी 2012 को बालोद जिला दुर्ग जिला से अलग हो कर नया जिला के तौर पर वजूद में आया है। इस हिसाब से देखा जाए तो बालोद को नया जिला बने हुए महज बारह साल हुए हैं। अब चौबीस बरस का राज्य और बारह साल के जिले में एक बात स्पष्ट है और वह बात है खूब लूटा है लूटने वाले हरामखोरो ने! रही बात इन हरामखोरो की असलियत साबित करने की तो वह पूर्व मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में कह चुके हैं। कमीशनखोरी करना बंद कर दो हमारी सरकार पैंतिस साल तक चलेगी। वंही पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सरकार में घोटाले बाज़ों को इनाम मिलता था जिसके चलते आज उनके सरकार में रहने दौरान अहम भूमिका निभाने वाले लोगों पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है कई गिरफ्तार भी होकर जेल की हवा खा रहे है और कई जेल के अंदर पहुंचने वाले हैं। इस बीच कमीशनखोरी घोटालेबाजी और हरामखोरी रूकने का नाम नहीं ले रही है। जिसके चलते आलम यह बना हुआ है कि ग्राम पंचायतों तक को नहीं छोड़ा जा है यानी कि खूब लूटा जा रहा है। लूटने वाले लोगों में सिर्फ ग्राम पंचायत सचिव ही शामिल नहीं है अपितु और भी बड़े बड़े तुर्रम खां शामिल हैं। इन तुर्रम खां टाईप लोगों में जिला के एक विधायक का नाम भी शामिल हैं जिनके बारे में यह कहा जा रहा है कि वह पहले तो अपने भतिजी को दूसरे टामन सोनवानी की भूमिका में संदेहास्पद तरीके से ग्राम पंचायत सचिव के पद पर आसीन कराते हैं और इसके बाद उन्हें अपने निजी सचिव के रूप में शामिल कर लेते हैं। बहरहाल आज तक क्षेत्र के किसी भी जनता ने अपने लोकप्रिय विधायक के निजी सचिव जो कि ग्राम पंचायत सचिव के तौर पर सरकारी पैसा हजम करती है उसे नहीं देखा है। अलबत्ता सुनने में आता है कि ग्राम पंचायत सचिव पुणे में अपने पति के साथ निवास करती हैं। जरा सोचिए जब एक जनप्रतिनिधि से ताल्लुक रखने वाली इस तरह की खबरें समाज के भीतर आती है 'तब क्या सरकार और जिला प्रशासन की नैतिकता नहीं बनती है कि वह इस संगीन और गंभीर मामले की गंभीरता से जांच करायें,क्योंकि छत्तीसगढ़ प्रदेश के अंदर बेरोजगारी एक बिमारी है और इस बिमारी से कई बेरोजगारों का दिल और दिमाग भन्ना गया है। नौकरी ढूंढने वाले नवजवानों को नौकरी नहीं मिल रही है और शादी करने की इच्छा रखने वाले नवजवानों को छोकरी नहीं मिलती है। इस बीच नेताओं के परिजन को बैगर नौकरी करें नौकरी मिल जाये तो यह क्या सही बात है? बहरहाल मामले को लेकर सत्ताधारी पार्टी के नेताओ की भी बोलती बंद है। बंद होने के पीछे कारण क्या है यह किसी को नहीं पता लेकिन कयास लगाया जा रहा है कि इस चुप्पी के पीछे कुछ तो बड़ी वजह है। बहरहाल अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आखिरकार मामले को लेकर सरकार और जिला प्रशासन अपनी बंद आंखें कब खोलते हैं। गौर करने वाली बात यह है कि आखिरकार प्रियंका सिन्हा जनपद पंचायत सीईओ रात्रे जी के आदेशों को क्यों तूर्रा मानकर चली रही है। आखिरकार उन्हें विधायक के निजी सहायक के तौर पर विभाग के अधिकारी नहीं देखना चाह रहे हैं तब वे स्वंय आकर अधिकारियों के समक्ष अपनी इच्छा जाहिर क्यों नहीं करती है। आखिरकार लगातार गायब रहने और दिखाई नहीं देने के बाद जनता के बीच उठ रही सवालों का जवाब कौन देगा? प्रियंका सिन्हा की नियुक्ति को लेकर और भी कई गंभीर सवाल खड़े किए जा रहे हैं लेकिन गंभीरता से जांच होगी तो सभी सवालों का जवाब गंभीरता से आम जनता को जानने का समझने को मिलेगा वैसे भी बालोद जिला का उम्र जानने व समझने वाला है। लिहाजा जनता को जानने व समझने का पुरा अधिकार है।