"एक बार फिर से सजने लगी है विश्व प्रसिद्ध आदीवासियों का विशाल राजा राव वीर मेला,लेकिन इस बीच आदीवासियों की मानें तो खुशी से ज्यादा कंही इस बार आदीवासियों के आंसू झलकेंगे वीर मेला राजा राव पठार में" निश्चित रूप से यह सवाल छत्तीसगढ़ जैसे आदीवासी बाहुल्य प्रदेश के अंदर साक्षात मूल निवासी के रूप में तैनात हर आदीवासी बांसिदो के लिए एवं सभी प्रदेशवासियों के लिए एक गंभीर प्रश्न है। आखिरकार ऐसी क्या वजह है जिसके चलते आदीवासियों का महा सम्मेलन मानें जाने वाले महापर्व राजा राव वीर मेला में आदीवासी खुश कम और मायूस ज्यादा दिखाई देने वाले हैं। इस प्रश्न के पीछे छुपे हुए उत्तर को समाज को गंभीरता से समझना चाहिए क्योंकि सत्य को बेवकूफ बना कर टाला जा सकता है झूठलाया नहीं जा सकता है। दरअसल छत्तीसगढ़ प्रदेश के अंदर बिते कई वर्षों से जारी दमन दोषण और अन्याय का सिलसिला सरकारी मशीनरी तैनात होने के बावजूद रूकने का नाम नहीं ले रहा है। अलबत्ता सरकारी मशीनरी नेताओं और कारोबारीयो के साथ मिलकर आदीवासियों को खुलेआम लूटने का काम करते हुए दिखाई दे रहे हैं और इस काम के चलते कई आदीवासी मूल निवासी बासिदो के परिवार तहस नहस हुए है और हो रहे हैं। इस बीच लगातार आदीवासीयो की जल जंगल जमीन पर कब्जा किया जा रहा है।
हर साल बालोद जिला के कर्रेझर ग्राम पंचायत क्षेत्र अंतर्गत नेशनल हाईवे पर राजा राव पठार में लगता है शहिद वीर नारायण सिंह मेला
भौगोलिक दृष्टिकोण के हिसाब से देखें तो छत्तीसगढ़ महतारी के पुरखा स्व: शहिद वीर नारायण सिंह राजाराव पठार का मेला बालोद जिला के अंतिम छोर और गंगरेल बांध के डूबान क्षेत्र के नीचे बालोद जिला के वनांचल क्षेत्र की पावन धरा में स्थित ग्राम पंचायत कर्रेझर अंदर हर साल धमतरी जिले, बालोद जिले और कांकेर जिले में रहने वाले आदिवासियों के द्वारा सामुहिक रूप से आयोजित किया जाता है। वंही दुसरी ओर राजनीतिक दृष्टिकोण के बिहाप पर यदि देखें तो यह क्षेत्र बालोद जिला के संजारी बालोद विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत आता है एवं कांकेर लोकसभा संसदीय क्षेत्र में शामिल हैं। कांकेर लोकसभा संसदीय क्षेत्र में लगातार भारतीय जनता पार्टी से सांसद चुने जा रहे हैं तो वंही संजारी बालोद विधानसभा क्षेत्र से लगातार कांग्रेस पार्टी से ताल्लुक रखने वाले विधायक चुने जा रहे हैं। इस बीच विश्व प्रसिद्ध शहिद वीर नारायण सिंह के स्मृति में आयोजित होने वाली आदीवासियों का राजा राव पठार वीर मेला तीनों जिला के अंदर मौजूद रहने वाले सभी आदीवासियों की अथक परिश्रम और पुरुषार्थ के बलबूते आयोजित किया जाता रहा है। इस आयोजन में दोनों राजनीतिक दल के इस क्षेत्र में मौजूद महत्वपूर्ण नेताओं का क्या योगदान रहता है इसके बारे में ज्यादातर आदीवासी आज तलक नहीं जान पाये है। अलबत्ता गाहे-बगाहे इन दोनों राजनीतिक दल के भीतर मौजूद नेताओं की आदीवासियों को प्रताड़ित करने की खबर आती रहती है। ऐसे में आदीवासी समाज क्या ऐसे नेताओं को बेनकाब करते हुए आईना दिखाने का काम करेगा यह भी एक बड़ा सवाल है।
हसदेव अरण्य में हो रही जंगलों की कटाई और गांधीवादी विचारधारा से प्रभावित होकर आंदोलन करने वाले मूलवासी बचाओ मंच को बैन करने को लेकर गंभीरता से हो सकती है चर्चा।
समाजिक दृष्टिकोण के हिसाब से राजा राव पठार में होने वाली यह वीर मेला न सिर्फ तीन जिलों में रहने वाले आदीवासियों की समाजिक एकता और भाईचारा के साथ समाजिक गतिविधियों का संगम स्थल है अपितु पूरे प्रदेश भर के अंदर मौजूद रहने वाले तमाम आदीवासियों की वैचारिक मेला भी है। समाजिक वैचारिक मेला होने के नाते आदीवासी समाज को नया आयाम देने वाले सभी युवा नवजवान, समाजिक कार्यकर्ता एवं सभी पदाधिकारी समाज के भीतर मौजूद तमाम समाजिक बिंदुओं पर गंभीरता से समाज के समक्ष अपनी विचारधारा को प्रस्तुत करते हैं। ऐसे में इस बार हसदेव अरण्य की सरजमीं पर मौजूद जंगलों की अवैध कटाई के साथ बस्तर के अंदरूनी क्षेत्रों में लगातार गांधीवादी विचारधारा के तहत आंदोलन करने वाले मूलवासी बचाओ मंच पर लगी हुई बैन को लेकर गंभीरता से चर्चा हो सकती है। इस बीच राजनीतिक पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखने वाले जानकारों की मानें तो मौजूदा समय में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आदीवासियों की रूख को लेकर गंभीर नहीं है। अतः सरकार के लिए आगे आने वाले दिनों में आदीवासियों को लेकर नितियों में गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता जताई जा रही है। पूरे प्रदेश भर के अंदर आदीवासी मुख्यमंत्री के रहते हुए आदीवासियों में मायुसी पसरी हो यह ठीक बात नहीं है।