बालोद : सबसे बड़े लोकतंत्र के राजनीतिक सरजमीं पर राजनीति करने वाले ज्यादातर राजनीतिक दलों की राजनीतिक कार्यशैली को देखकर राजनीति शास्त्र के जानकारों की मुखारबिंद से आमतौर पर यह सुनने को मिलता है कि देश के अंदर शासन करने वाले ज्यादातर राजनीतिक दल की सरकारें समाज के भीतर शांति सद्भावना और समृद्धि को बेहतर तरीके से स्थापित करने हेतू दिन रात एक करके मेहनत और मसक्त करती है ! हालांकि यह दावा सवा आना सत्य नहीं है चूंकि आमतौर पर यह देखा गया है कि देश के कर्णधार मानें जाने वाले हमारे ज्यादातर प्रिय जन सेवक नेता,जनता की सेवा कम और स्वंय की घटिया राजनीतिक गुणवत्ता के बड़ाई में समाज के भीतर अंशाति और असंतुलन पैदा करने का काम करते हुए दिखाई देते हैं। वैसे भी जब सब कुछ नेताओ को आसानी से नेतागिरी के आड़ में मिल रहा है तो वह फोकट में जनता की सेवा करने का ढोंग आखिरकार न क्यों करें। शायद इसी सोंच के चलते सत्ता सरकार के अंदर मौजूद रहने वाले ज्यादातर हमारे प्रिय जन सेवक नेता स्वार्थ के मंशा तले जनसेवा की भावना को निस्ता नाबूत करने से बाज नहीं आ रहे हैं। ऐसे में कभी कभी रक्षक ही बने भक्षक वाली कहावत को सत्ता सरकार में रहने वाले हमारे कई प्रिय जन सेवक नेता चरितार्थ करते हुए दिखाई देते हैं। हालांकि लोकतंत्र की मजबूत बुनियाद से गौरवान्वित हमारे देश के अंदर मौजूद रहने वाले हमारे प्रिय जन सेवकों को ऐसा करना शोभा प्रदान नहीं करता है। गौरतलब हो कि देश के लगभग सभी संदनों में होने वाली लगभग हर सभा में हमारे प्रिय जन सेवक नेता कई नियम और कानून बनाते हुए दिखाई देते है 'लेकिन सदन के सभा पटल से पारित होने वाले कानून जमीनी स्तर पर क्या इतना कारगर साबित हो सकता है कि वह देश में रहने वाले सभी नागरिकों की जीवन में बदलाव पैदा कर सके,यदि गरीबी और गुरबती के दलदल तले जीवन यापन करने वाले नागरिकों के जीवन में सरकार के द्वारा बनाए गए कानून के जरिए किसी भी स्तर से बदलाव आता है तो,यह निश्चित रूप से कानून लोकतंत्र के इतिहास में एक बड़ा उपलब्धि माना जायेगा,लेकिन यंहा स्पष्ट कर दें कि बदलाव का मायने उस परिवर्तन से है जिसकी तुलना लोगबाग समृद्धि और खुशहाली से करते हैं न कि घटिया राजनीति और तानाशाही रवैया से,लेकिन जानकारों की मानें तो आजाद भारत के 76 साल में ऐसा कोई कानून नहीं बना है,जो सरे बाजार में दम तोड़ते हुए न दिखाई देता हो' जबकि सरकार को देश में स्थापित हर नियम और कायदे की टूटने से भंयकर नुकसान उठाना पड़ता है! ऐसे में सदन के सभा पटल से पारित कानून का क्या मतलब रह जाता है 'यह समझने वाली बात है! बहरहाल देश के अंदर मौजूद रसूखदार लोग आज के अमृतकाल युग तक में कानून को अपने जेब में रखकर चलते हुए खुलेआम देखे जा रहे हैं। वंही दूसरी ओर देश में रहने वाले गरीब आज भी देश के सदन से पारित कानूनों को गली गली में न्याय के लिए खोजने के लिए मजबूर हो चले हैं। ऐसे में न्यायपालिका और पुलिस महकमा की जिम्मेदारी और बढ़ गई है। इस बीच छत्तीसगढ़ राज्य सरकार पुलिस महकमा के जरिए भी समाज के भीतर शांति सद्भावना और समाजिक एकजुटता बनाने के फिराक में जुटी हुई है। इस कड़ी में बालोद जिले अंतर्गत कवंर चौकी क्षेत्र के ग्राम पंचायत परसुली में कवंर पुलिस ने जन जागरूकता अभियान चलाया है। इस अभियान के तहत ग्रामीणों को विभिन्न प्रकार की कानूनी जानकारी और सुझाव कवंर चौकी प्रभारी की ओर से दिया गया है। जिसमें साइबर सुरक्षा, महिला अपराध और बेटी बचाओ बेटी बचाओ अभियान को लेकर वृस्तित चर्चा ग्रामीणों से की गई है। इस दौरान कवंर चौकी प्रभारी लता तिवारी ने मां दुर्गा के सामने परसुली के ग्रामीणों को विभिन्न प्रकार की कानूनी जानकारी से रूबरू कराती हुई नजर आई।
