वन विभाग, राजस्व विभाग और बालोद जिले में संचालित तमाम आरामिल संदेह के दायरे में,लींबू के साथ हरे वृक्षों की कटाई भी कर रहे हैं बालोद जिलावासी। ऐसे में हरियाली गांवों से तक गायब होने की कगार पर जबकि जिला के अंदर हर साल लाखों रुपए वृक्षारोपण के नाम पर पानी की तरह बहा दिए जाते हैं। बावजूद इसके धरातल पर जीरो बट्टा सन्नाटा। आखिरकार वृक्षों को बचाने के लिए जागरूक क्यों नहीं हो रहे हैं बालोद जिला के लोग।
@ Vinod netam #
बालोद : मानव सभ्यता के इतिहास में मौजूद रहने वाले समाज के बुद्धिजीवी बड़े बुजुर्ग कह गए हैं कि एक वृक्ष सौ पुत्रों के समान होता है। अतः एक भी वृक्ष को कांटना मनुष्य जाति के लिए सौ पुत्रों की बलि चढ़ाने के बराबर है। इसलिए मनुष्यों को पेड़ और पौधों से अपने संतानों की जैसे व्यवहार रखना चाहिए। हालांकि आधुनिकीकरण और कलजूग के इस दौर में मनुष्य जाति जब दुनिया की चकाचौंध में खुद को भूलता जा रहा है 'तब ऐसे में मानव सभ्यता के इतिहास में मौजूद रहने वाले समाज के बुद्धिजीवियों के द्वारा कहे गए शब्दों को क्या खाक याद रख पाते होंगे ? निश्चित रूप से जिस तरह से पर्यावरण को लेकर मौजूदा समय में बदलाव महसूस किया जा रहा है। उसे देखते हुए यह लगता है कि अब समय आ गया है कि मानव सभ्यता के इतिहास में मौजूद रहने वाले समाज के बुद्धिजीवियों द्वारा कही गई बातों को लेकर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए क्योंकि पर्यावरण के अंदर एक बड़ा बदलाव का खतरा धरती पर मंडरा रहा है।
छत्तीसगढ़ राज्य के बालोद जिला से प्रति वर्ष शासन और प्रशासन के नाको तले दिन दहाड़े कांटे जाते है लाखों हरे वृक्ष। इस घटनाक्रम की जानकारी शासन और प्रशासन को बराबर तरीके से है,लेकिन पर्यावरण को लेकर लचर मानसिकता बरतने के चलते यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। वंही हर साल शासन और प्रशासन लाखों रुपए वृक्षारोपण पर खर्च कर देती है,लेकिन हकीकत के धरातल पर जो मंजर मौजूद है वह किसी से छुपा हुआ नहीं है। यह सत्य है कि आधुनिक युग में लकड़ी का इस्तेमाल पहले की अपेक्षा मकान बनाने के कामों में कम हो रहा है,लेकिन इस दौर में फर्नीचर और फैशनेबल किस्म के लकड़ी से बने हुए समानों का मांग तेजी के साथ बढ़ रहा है। बढ़ती हुई मांग की पूर्ति हेतु दिन रात किमती वृक्षों को बेतहाशा तरीके से कांटा जा रहा है। जिला की उपजाऊ भूमि पर ज्यादातर वृक्ष किसानों की मेढ़ो पर पाई जाती है और इन वृक्षों हिसाब किताब राजस्व विभाग के पास जमा होता है। राजस्व विभाग की अनदेखी के चलते ज्यादातर किसान वृक्षों को फसल समझ कर कांट देते हैं। कांटे हुए वृक्षों को किसान लकड़ी कोचियों को बेंच देते हैं। लकड़ी कोचियों के द्वारा यह कांटे हुए वृक्ष आरामिल में और फिर उसके बाद यह लकड़ी पहुंच जाती है तरासने के लिए बढ़ई के यंहा। इस तमाम घटनाक्रम के बिच में बहुत से सवाल और जिम्मेदारी है और यह सिर्फ शासन और प्रशासन तक सीमित नहीं है बल्कि जिला के अंदर रहने वाले सभी नागरिकों की नैतिक जिम्मेदारी है कि वह पर्यावरण में हो रही बदलाव की मायने को समझें।