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सरकार मजबूत नही होतीमजबूत पुलिस होती है।

मोस्ट प्रिमिटिव, लबीलाई समाज में सरकार का मतलब पोलिसिंग ही था। 

स्वेच्छा से दयालु राजाओं की बात छोड़ दें, तो सुनने वाली सरकार, मानने वाली सरकार, झुकने वाली सरकार,  वेलफेयर वाली सरकार, दायरों में बंधी सरकार- ये सब बहुत बाद के कॉन्सेप्ट हैं। 
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और यह ह्यूमन इवोल्यूशन का, और समाजों के विकास का प्रतीक है। हम 3000 सालों के इतिहास में चलते चलते, आदिम पुलिस युग से सम्विधान के दायरों में बंधी सीमित सरकार तक आये है। 

और फिर उसमे बन जाते है UAPA, PMLA जैसे कानून। सम्विधान के बनाये दायरों और दीवारो के बीच ऐसी खिड़कियां तोड़ ली जाती है, जहां से मनुष्य की आजादी और हको हकूक पर तोप चलाई जा सके। 

पर खिड़की से चलाई तोप का दायरा सीमित होता है। आपके जीवन के हर आस्पेक्ट पर कन्ट्रोल करने का आकांक्षी राजा, जो इन दीवारो को पूरी तरह गिरा देना चाहता है। जो सबको अपने सतत चंगुल में रखना चाहता है, वह पुलिस को मजबूत करता है,

और संसद को कमजोर.. 
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संसद को बेआवाज करने के बाद, सड़को को बेआवाज करने के लिए नई न्याय संहिता आ गयी है। 

2 दिन बाद लागू हो जाएगी। 

जो अवसर राजा को, एजेंसियों के रास्ते, सिर्फ खास मामलों में, UAPA और PMLA जैसे विशेष कानून के तहत मिलता था, अब हर समय, हर आम पुलिसवाले के पास है। 

अपराध कारित होने की जरूरत नही। अपराध की संभावना होने पर, प्रतीति होने पर भी, अपराध इरादा महसूस होने पर भी जांच के नाम पर गिरफ्तारी-रिमांड के दमन की चकरी आपके सिर पर घूमती रहेगी। 

मामूली भाषण, देश की एकता अखंडता को चोट पहुचाने वाला हो सकता है। एक मामूली झगड़ा, आंतकवाद हो सकता है। बिजली आप पर कभी भी, कहीं भी, किसी भी काल्पनिक वजह से गिर सकती है। 

लेकिन यह भी की आपका सिर फूटा हो, हाथ कटा हो, मौत के मुंह में हो, लेकिन पुलिस मन नही, तो अपराध दर्ज न करे। पहले जांच करे, 15 दिन..

की आप सच बोल रहे हैं, या नहीं। 
फिर कह दे कि सबूत पर्याप्त नही। 
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यह पावर पुलिस को है। 

हर राज्य की पुलिस को दी जा रही है। आधे राज्यो में विपक्ष की सरकारे हैं। और वहां सरकारे बदलेंगी भी...

यह तो सत्ता को नया नया मिला डंडा है। उसे विपक्षी पर चलना है। याने सबकी बारी आनी है। इस राज्य मे क्रिया, उस राज्य में प्रतिक्रिया होनी है। युद्ध का मैदान बनने की स्क्रिप्ट लिखी जा चुकी है। जमीन पर प्ले खेला जाना बचा है। 
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जिस आजादी को आपने सस्ता समझा था, त्याज्य, छोटा, विकास का बाधक समझा था, वह जाने वाली है। फेयरवेल की तैयारी कीजिए। 

और हेमंत सोरेन का चेहरा देखिए। 

सोचिये कि यह व्यक्ति भाग्यशाली है। शक्तिशाली है, नामचीन है। धन है, वकील हैं, सुप्रीम कोर्ट तक जाने की ताकत है, तो 145 दिन बाद छूटा है। 

अपने धन, नाम, शक्ति को उंसके अनुपात में नापिये और अंदाजा लगाईए, की आप कितने दिन में छूटेंगे। 
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हेमंत भाग्यशाली इसलिए भी है, क्योकि इधर छूटते ही, उधर सीबीआई ने सेम मामले में गिरफ्तार नही किया। केजरीवाल भाग्यशाली नही हैं। 

क्योकि यह भाग्य लेखन, एजेंसियों के हाथ मे है। दो दिन बाद, थानेदार के हाथ मे है। पुलिस स्टेट में ऐसा ही होता है। याद रहे, जिसमे.. 

सरकार मजबूत नही होती। पक्ष विपक्ष मजबूत नही होता। हर जगह..

मजबूत पुलिस होती है।

anutrickz

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