भाजपा से लेकर कांग्रेस पार्टी की ज्यादातर नेताओं के नाम रेत उत्खनन से जुड़ते रहे हैं,जबकि गरीबों को हमेशा रेत मंहगा दाम पर ही मिलता है। हालांकि गरीबों के ज्यादातर नेता अक्सर यह कहते हुए दिखाई देते हैं कि इस देश की संधांधनो सबसे पहला हक गरीबों का है।
बालोद जिले में बिते कई महिनों से जारी रेत उत्खनन को लेकर भंयकर बवाल मचने की स्थिति से इंकार नहीं किया जा सकता है। रेत उत्खनन करने वाले दो गुट आपस में कभी भी भीड़ सकते हैं। हालांकि इस तरह की स्थिति से निपटने हेतू बालोद जिला प्रशासन सदैव तत्पर है,लेकिन यह भी सत्य है कि ज्यादातर रेत उत्खनन से जुड़े हुए लोग सत्ताधारी पार्टी और विपक्षी राजनीतिक दल से जुड़े हुए नेताओं के लगवार है। बावजूद इसके समाचार सूत्रों के मुताबिक लेन-देन के मामले को लेकर बिते दिनों बालोद जिला की नदियों की छाती से रेत निकाल कर बेंच खाने वाले लोगों का आपसी गिरोह आपस में भिड़ गया था। इस आपसी मुढ़भेड़ ज्यादा कुछ नहीं हुआ आपसी सुझबुझ के जरिए किसी भी तरह की अनहोनी को घटने से रोका गया यह बड़ी बात है। रेत उत्खनन से जुड़े हुए लोगों ने कम से कम इस बार बालोद जिला का मान रख लिया यह दूसरी बहुत बड़ी बात है। ईश्वर उन्हें इसी तरह सद्बुद्धि देते रहे। बहरहाल बालोद जिला की सरजमीं पर पत्थरीली जमीन को उपजाऊ बनाने वाले मेहनतकश किसान और पत्थर का सीना चीरने वाले मजदूरों के साथ कुछ फोकट चंद लोग भी निवास करते हैं। यह मानना है लोगो का... किसान और मजदूर निश्चित रूप से अपने साथ कई और दूसरे लोगों की जीवन का उधार करने का रूतबा रखते हैं,लेकिन फोकट चंद लोग अपने ही जीवन का सबसे बड़ा काल बनते हुए दूसरो की जीवनकाल में जबदस्ती जहर घोलने का काम करते हैं। जिसके लिए फोकटचंद लोग किसी भी स्तर पर गिर कर कार्य करते हुए दिखाई देते हैं। हालांकि सभी अपने कर्मों की खाते हैं,लेकिन कर्म कर्म में अंतर होता है। कोई बढ़िया कर्म करते हुए खाता है तो वंही कोई घटिया कर्मों के जरिए खाता है । हाल के दिनों में रेत का दाम आसमान छू रहा है 'जबकि देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने तीसरे कार्यकाल के पहले दिन 3 करोड़ नए प्रधानमंत्री आवास योजना की स्वीकृति प्रदान करते हुए जूम्मा जूम्मा कुछ दिन पहले ही दिखाई दिए हैं। प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना के तहत मिलने वाली राशि असल मायने में आवास के लागत मुल्य से कंही अधिक कम है। यानी कि ऊंट के मुंह में जीरा। ऐसे में आसमान छू रही रेत और तमाम निर्माण सामग्रीयो की कीमत अधिक है। तब ऐसे में सवाल तो बनता है। आखिरकार ऐसी गांरटी का क्या फायदा जिसमें ढंग का फायदा भी न मिले ऊपर से गुणगान भी सरकार अपनी स्वंय की करें और वह भी लींबू कांट ले राजा वाला इस्टाइल में। छत्तीसगढ़ राज्य के अंदर पिछले पांच साल कांग्रेस पार्टी की सरकार बतौर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के हवाले चली है। इस दौरान प्रधानमंत्री आवास योजना से जुड़े हुए ज्यादातर कार्य केन्द्र और राज्य के बिच वित्तीय सहायता की अनदेखी के चलते अधर में लटक गई थी। नतीजतन पूरे राज्य भर में मौजूद लाखों गरीब हितग्राहियों का पक्का छत पाने का सपना चकनाचूर हो गया था,लेकिन अब जब छतिसगढ़ राज्य में भारतीय जनता पार्टी की डबल इंजन सरकार बतौर मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के रूप में बन चुकी है 'तब प्रधानमंत्री आवास योजना से जुड़े हुए हितग्राहियों का सपना चकनाचूर होने से आखिरकार क्या बच पायेगा? यह एक बड़ा सवाल है चूंकि ग़रीबी की गुरबती में झक मारने वाले गरीबों के लिए आसमान छू रही रेत की कीमत और गरीबों को मिलने वाली प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत राशि में ज्यादा अंतर नहीं है। इन्हें बस यह पता है कि बैगर पैसा के पक्का मकान बनना संभव नहीं है। लेकिन इस बीच रेत उत्खनन से जुड़े हुए कारोबार में बालोद जिले के भाजपाई नेताओं का नाम सामने आना निश्चित रूप से राजनीति की नैतिक मर्यादा में छेंद करने की स्थिति जैसी है। एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गरीबों को पक्का छत देने की सोंच तो वंही दुसरी ओर भाजपा से जुड़े हुए नेताओं का नाम रेत के दामों में वृद्धि करने को लेकर,क्या किसी भी राजनीतिक दल के कर्मठ कार्यकताओं को पार्टी का नाम इस तरह से खराब होना शोभा प्रदान करता है। इस बात को भारतीय जनता पार्टी के ईमानदार सभी कार्यकर्ताओ को गंभीरता से सोचना चाहिए क्योंकि पार्टी के लिए अपना सब कुछ निवछावर कर दिन रात पार्टी के लिए पूरे लगन से काम करने वाले भारतीय जनता पार्टी के एक कार्यकर्ताओं की निष्ठा पार्टी के साथ जुड़ी हुई है।