बालोद : कानून और संविधान के विपरित जाकर दंबग कर रहे हैं मनमानी फैसला। तुगलकी फैसले के जरिए दंबगो द्वारा खुलेआम छीनी जा रही है नागरिकों का सैंवाधानिक अधिकार। नियम और कानून को ताक में रखते हुए अंतरजातीय विवाह करने वाले आदीवासी युवक के पिता को रात में बैठक कर सुनाया तुगलकी फरमान। दंबगो ने फरमान में युवक के पिता से कहा अपने बेटा बहू को गांव के समक्ष प्रस्तुत करो उनके नहीं आने की स्थिति पर अपने बेटे बहू के खिलाफ थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाओ,नहीं तो तुम्हारे खिलाफ गांव के बीच बैठक में फैसला लिया जाएगा। जरा सोचिए क्या अंतरजातीय विवाह करने वाले युवक के बाप को इतनी बड़ी सजा आजादी के 76 सालों बाद मिलना चाहिए? जबकि कानून और संविधान अंतरजातीय विवाह को अपराध की नजर से नहीं देखता है। क्या भारत की समाजिक व्यवस्था आजादी के 76 सालों बाद भी इतने गिरे हालत में पहुंच चुकी है, कि इसे उठाने हेतू कोई प्रयास तक न किया जा सके। आखिरकार समाजिक व्यवस्था की जिम्मेदारी संम्हालने वाले दंबगो को इतनी ताकत कंहा से आती है कि देश की कानून और संविधान को चुनौती देते हुए मनमानी फैसला कर सकें! संजारी बालोद विधानसभा क्षेत्र की लहलहाती सरजमीं पर वैसे तो देश का कानून और संविधान का राज स्थापित होने की बात अकसर कहीं जाती है,लेकिन यह भी कटू सत्य है कि कानून और संविधान को ताक पर रख कर संजारी बालोद विधानसभा क्षेत्र की इस उपजाऊ भूमि को बंजर बनाने का खेल खुलेआम आम चल रहा है। विधानसभा क्षेत्र की ग्रामीण अंचल क्षेत्रों में दंबग ग्रामीण जिन्हें तथाकथित पंच परमेश्वर की उपाधि प्राप्त है, उनके द्वारा लगातार नागरिक अधिकारों को दंबगई के जरिए कुचलने का सिलसिला निर्विरोध जारी है। अतः दंबगई का आलम यह बताया जा रहा है कि इनके इन हरकतों की वजह से न सिर्फ संविधान के द्वारा सुनिश्चित की गई नागरिक अधिकारों का हनन हो रहा है 'अपितु समाजिक व्यवस्था को भी गहरा आघात पहुंच रहा है। विडंबना इस बात को लेकर है कि शासन और प्रशासन से जुड़े हुए लोगों को ताकतवर और दबंगों के द्वारा चलाई जा रही अंधा कानून के बारे में सब जानकारी होता है। बावजूद इसके भीड़ और बहुमत के आगे हुकूमत को चुनौती देने वाले ताकतवर और दबंग लोग इसका ग़लत फायदा उठाने से बाज नहीं आ रहे हैं और शासन और प्रशासन मूक दर्शक बने हुए हैं। मामले को लेकर जिस तरह से एक आदीवासी परिवार को तथाकथित पंच और परमेश्वर प्रताड़ित कर रहे है, उसे देखकर आदीवासी समाज को दो कदम आगे बढ़ते हुए पिड़ित आदीवासी परिवार को न्याय दिलाने हेतू पहल करना चाहिए ताकि पिड़ित आदीवासी परिवार को यह महसूस न करना पड़े कि उनका साथ समाज ने भी छोड़ दिया।
खबर से जुड़े हुए कुछ जरूरी त्तथ्यो को मैंने जानबूझ कर छुपाया है क्योंकि नाम और पहचान उजागर के बाद पिड़ित आदीवासी परिवार और मुझे जान का खतरा है। @विनोद नेताम टाप भारत न्यूज नेटवर्क ब्यूरो एवं प्रदेश सचिव अखिल भारतीय पत्रकार सुरक्षा समिति छत्तीसगढ़ #