अनुशासन और मर्यादा निश्चित रूप से कोई वस्तु या सामन नहीं हो सकता है,बल्कि व्यक्ति का यह स्वंय का सदाचार और खुद के जमीर जिंदा बनाने रखने हेतू स्वंय के प्रति जवाबदेही और जूनून भी हो सकता है! हालांकि यह तभी संभव हो सकता है,जब व्यक्ति का संगत सद पुरूष या सत्य के मार्ग पर चलने वाले सदाचारीयो से हो,क्योंकि अनुशासन और मर्यादा का ज्ञान सिर्फ संस्कारी सदपुरूष ही मनुष्य जाति को दे सकता है! विडंबना इस बात को लेकर है कि आज के भरे अमृतकाल के दौर में भी संस्कार विहिन सदाचारी जगह जगह पर भरे पड़े हुए निकल रहे हैं 'वह भी अंधभक्तो की भारी भरकम फौज लेकर,ऐसे में अनुशासन और मर्यादा की ऐसी तैसी होना स्वाभाविक माना जा सकता हैं! बहरहाल भारत को सारा संसार विश्वगुरू मानकर चलता है! अतः समस्त मानव जाति के लिए भारत न सिर्फ आत्म ज्ञान अर्जित करने का मुख्य केंद्र माना जाता है,अपितु अनुशासन और मर्यादा में समस्त चराचर जगत को ढालने वाला महापुरुष के रूप में भी भारत को पहचाना जाता है! इस बीच भारत के अंदर कुछ दिन बाद आम चुनाव सम्पन्न होना है! ऐसे में समस्त चराचर जगत की निगाहें अनुशासन और मर्यादा की मुख्य केन्द्र बिन्दु के तौर पर विख्यात भारत की चुनावी व्यवस्था को देखने के लिए लालयित नजर आ रही है! वैसे राजनीतिक पृष्ठभूमि की जानकारी रखने वाले तमाम राजनीतिक पंडितों की जमातों ने भारतीय राजनीति के बारे में कहा है कि भारत की राजनीति लोकतंत्रात्मक व्यवस्था और प्रजातंत्र की वो ठंडी छांव है,जिसके तले भारत के करोड़ों नागरिक अनुशासन और मर्यादा में रहते हुए अपने जमीर को जिंदा बनाए रखने में सफल हो पाते है! हालांकि जानकर यह भी तर्क देने से परहेज़ नहीं करते हैं कि भारतीय राजनीति के अंदर राजनीतिक दलों के नेताओं में स्वार्थ सिद्धि प्रयोजन की मंशा कई जगहों पर कूट कूट के भरा हुआ है और इतना भरा हुआ है, कि बंया नहीं किया जा सकता है! माना जाता है कि एक बार बिल्ली सात घर छोड़कर आठवें घर में डांका डालने जाती है,लेकिन भारत के कर्णधार राजनेताओं ने अपने ही घरों में डांका डालने का रिकार्ड बना दिया है! आगे आने वाले दिनों में होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपनी चुनावी रैलियों में भ्रष्टाचार मुक्त भारत, कांग्रेस मुक्त भारत,गरीबी मुक्त भारत, बेरोजगारी मुक्त भारत के साथ अनेक विकास की गारंटी देने का दावा करते हुए लगातार देखें जा रहे हैं,लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जिस तरह से चुनावी रैलियों में गांरटी स्कीम की बात कहते हुए दिखाई देते हैं,क्या वह किसी भी सरकार के लिए ईमानदारी के साथ पूरा करना संभव है? चूंकि किसी भी सरकार के पास पैसों की झाड़ या पेड़ नहीं होती है! भारत आज निश्चित रूप से वैश्विक स्तर पर आर्थिक शक्ति बनने की दिशा में तेजी से अग्रसर है,लेकिन यह भी सत्य है कि इस बख्त देश पर कर्ज बोझ पहले से काफी अधिक है और ग़रीबी, बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क बिजली ,पानी, नौकरी और यंहा तक डौकी के लिए सभी तरफ त्राहीमाम है! सरकार कर्ज की बोझ जनता के जेब से वसूलती और खुद के लिए पैसा भी है! ऐसे में गांरटी स्कीम लागू करने का कितना फायदा आम जनता को मिलेगा या फिर नहीं स्वंय विचार करें @ विनोद नेताम #