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अश्वत्थ सर्ववृक्षाणां..

वृक्षो में मैं पीपल हूँ-श्रीकृष्ण पार्थ को सृष्टि की सभी वर्गों में सर्वश्रेष्ठ को स्वयं का रूप बताते हैं। 

अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारदः।
गन्धर्वाणां चित्ररथः सिद्धानां कपिलो मुनिः।

वृक्षो में मैं पीपल हूँ, देवर्षियों में नारद, गन्धर्वों में चित्ररथ, सिद्धों में कपिल मुनि हूँ। घोड़ो में मैं उच्चैश्रवा, हाथियों में ऐरावत और मनुष्यों में राजा हूँ। 

गीता, युद्ध का आमंत्रण है। वह न्याय के पक्ष में, नैसर्गिक अधिकार के पक्ष में हथियार उठाने का आव्हान करता है। यह आव्हान स्वयं श्रीकृष्ण कर रहे है। 

प्रभु कर रहे है। 
मनुष्य से कर रहे हैं। 
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पीपल का बुद्ध से भी गहरा सम्बन्ध है। वह अपरिमित ज्ञान, पीपल के वृक्ष के नीचे समाधिस्थ सिद्धार्थ को मिला। 

जब बोध हुआ, वे बुद्ध हुए। बोधगया का बोधिवृक्ष, पीपल ही है। यहां से जो सन्देश निकला, वह सत्य, अहिंसा, संयम, विचार की शुद्धता पर जोर देता है। 
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बुद्ध का संघर्ष आंतरिक है, पार्थ का बाहरी। अंदर का संघर्ष बेहतर इंसान बनाता है, बाहरी सँघर्ष राजपाट दिलाता है। 

नागरिक का अपनी बुराइओं से आंतरिक सँघर्ष .. समाज मे शांति, समृद्धि, समानता और एकता का रास्ता साफ करता है। 

नागरिक का बाहरी सँघर्ष, सड़को पर खून बहाता है, हर घर, हर मोहल्ले को कुरुक्षेत्र बनाता है। 

पर दोनो का सिम्बोल पीपल का पत्ता है। 
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भारतरत्न के स्थापित मानदंड टूट चुके हैं। 1955 में प्रारंभ इस सम्मान को में मरणोपरांत देने की परिपाटी नही थी। तो चंद्रगुप्त मौर्य, अशोक, अकबर, विवेकानंद, भगतसिंह और महात्मा गांधी, कभी भारतरत्न नही बन सके। 

1966 में लाल बहादुर शास्त्री के लिए यह नियम टूटा। फिर तो इस प्रिसिडेंस पर कई लोगो को मरणोपरांत भारतरत्न घोषित किया गया। 

बाबा साहेब, खान अब्दुल गफ्फार खान, सरदार पटेल से लेकर नानाजी देशमुख औऱ मदनमोहन मालवीय भी इस लिस्ट में जगह बना गए। 

इसमे विदेशी भी आये जिसमे मंडेला और मदर टेरेसा शामिल हैं। लोगों को डर है, इस प्रिसिडेंस पर भविष्य में हिटलर और नेतन्याहू को भी भारतरत्न न दे दिया जाए। 
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मगर लिस्ट खोलकर कोई नाम देख लीजिए, अब तक बुद्ध की परंपरा के लोग मिलेंगे। सभी शांति के साधक मिलेंगे, या फिर संगीत-खेल के साधक भी.. 

आडवाणी का नाम भारतरत्नो की सूची में वह नाम होगा, जो इस पुरस्कार के लिए अहर्ता में आमूलचूल बदलाव का प्रतीक है। 

पहली बार हिंसा के साधक को भारतरत्न मिला है। 
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मगर आडवाणी के अपने हाथ खून से रंगे हुए नही। उनके द्वारा प्रज्ज्वलित, प्रसारित हिंसा मानसिक थी, वाचिक थी। 

जिसने समाज के ताप को बढ़ाया, बिखराव की तरफ मोड़ा और ऐसी पौध के लिए उपयुक्त वातावरण दिया, जिसके लिए आज लिंचिंग और बुलडोजर सरकारी न्याय के प्रतीक है। 

आज युवा मस्जिदों के सामने नाच रहा है, सरकारी भवनों पर भगवा लहरा रहा है। भौहें तान गालियां बक रहा है, शंकराचार्य को हिंदुत्व सिखा रहा है। 
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तो अपने दौर के हार्डलाइनर अवश्य रहे, पर उनके चेले उनसे इतने अधिक हार्डलाइनर हुए, की अब स्वयं आडवणी , इनकी जमात में सबसे नरम, और हार्मलेस नजर आते है। 

ऐसे में बुद्ध की परंपरा वाले भारतरत्नो की सूची में ऐसे संघी होंगे, जो सच में दूसरे संघियो से कम बदरंग, अर्थात बेहतर दिखेंगे। 

इसलिए प्रोपगंडा के युग मे, जब दीक्षा लेते आधुनिक पार्थ की AI तस्वीरे तैरेंगी, उसमे कदमो पर झुके प्रधानसेवक को आडवाणी, गूढ़ ज्ञान देते हुए कह रहे होंगे.. 

संघियो में मैं आडवाणी हूँ!!!

anutrickz

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