दूसरो के दैय्या मैय्या को गालियां बकने से खुद के दाईं महतारी की सम्मान बढ़ नहीं जाती।
रायपुर : छत्तीसगढ़ राज्य में जारी विधानसभा चुनाव के दौरान कई उम्मीदवारों के साथ मारपीट की घटनाएं घटित होने की जानकारी प्राप्त हुई है! कई प्रत्याशियों ने घटना को लेकर थाने में रिपोर्ट तक दर्ज करवाई है तो वंही कुछ प्रत्याशियों ने घटना पर हाए तौबा मचाते हुए राजनीतिक लाभ उठाने का भी प्रयास किया है!
अब सवाल यह खड़ा होता है, कि आखिरकार चुनाव में खड़े होकर मतदाताओं से मत का दान मांगने वाले याचकों से क्या इस तरह के व्यवहार समाज के लिए सही मायने में उचित है? निश्चित रूप से इस तरह के व्यवहार की उम्मीद कोई भी व्यक्ति नहीं कर सकता है, लेकिन विडम्बना इस बात की है कि इस तरह की घटनाएं समाज में लगातार घटती जा रही है। क्या हमारा समाज इस तरह की घटनाओं को अब सहजता से स्वीकार करने के लिए आदी हो चुका है?
आखिरकार समाज को इस तरह की घटनाओं को सहने का आदी किसने बनाया है और इस तरह की घटनाएं समाज के लिए क्या सही है? वैसे छत्तीसगढ़ राज्य की पावन धरा पर रहने वाले बांसिदो को समस्त संसार भर में मिठ्ठी जुबान और मधूर व्यवहार के चलते छतिसगढ़ीहा सबले बढ़िया के संज्ञा से नवाजा जाता है, लेकिन जिस तरह से वर्तमान समय के दौरान पूरे राज्य भर में खुलेआम गाली गलौज और बात बात में मारपीट करने का चलन बढ़ रहा है उसे देखते हुए यह माना जा रहा है कि छत्तीसगढ़ राज्य को जल्द ही पूरे दुनिया दूसरा कोई नया नाम से नवाज सकती है।
समाज में दुर्गंध फैलाने के लिए नशा सबसे बड़ा जिम्मेदार और नशा को समाज में फैलाने के लिए सरकार और सिस्टम सबसे गुनेहगार।पुराने जमाने से ही छत्तीसगढ़ राज्य की भूमि पर निवास करने वाले बांसिदे नशा को बतौर थकान दूर करने और शरीर में घुमारी लाने की दवाई मानकर सेवन कर रहे हैं।


सूबे के ज्यादातर वनांचल क्षेत्रों में महूआ से शराब बनाने का चलन बरसों से व्याप्त है। वंही छत्तीसगढ़ में शराब के शौकीन लोगों की संख्या लगातार बढ़ते हुए आज पूरे देश भर में सबसे अधिक बताई जा रही है। ऐसे में शराब पीने वाले लोगों से होने वाली समाजिक नुकसान के बारे में भी समाज को चिंतन करने की आवश्यकता है। किसी भी राष्ट्र के लिए नशा बर्बादी का कारण बन सकता है। कोई भी राजनीतिक दल इस बात से वाकिफ नहीं हैं ऐसा नहीं है, लेकिन समाज की अवधारणा और सरकारी योजनाओं को अमलीजामा पहनाने हेतू पैसों की आवश्यकता होती है और पैसा शराब के जरिए कोई भी सरकार सो कर भी कमा सकती है। सालाना अरबों रूपए की शराब सरकार बेंच रही है।
राज्य के मध्यम वर्गीय परिवार और गरीबी से जूझने वाले परिवार में औसतन तीन सदस्य बेवड़ा। सीधे शब्दों में कहा जा जाए तो छत्तीसगढ़ राज्य सरकार के द्वारा इन बेवड़े के जरिए इन परिवारों के चूल्हा पाट तक ईमानदारी से शराब पहुंचाने का काम सरकार बखूबी तरीके से करती है। अब जब सरकार और सिस्टम ही समाज में प्लेन और मशाला का पौवा बांटने का काम करेंगे तब समाज के अंदर क्या स्थिति पैदा हो सकती है यह बताने की आवश्यकता नहीं है।