रायपुर (Top Bharat):- छत्तीसगढ़ राज्य की सियासी सरजमीं पर मौजूद रहने वाले राजनीतिक पंडितों की मानें तो सूबे में जो भी राजनीतिक दल यंहा पर रहने वाले माटीपुत्र किसानों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर नांगर जोतने की राजनीतिक मंशा को फलीभूत करने का प्रयास करेगी,उस राजनीतिक दल की सरकार सूबे की सत्ता पर राज करेगी। यानि कि जिस राजनीतिक दल ने प्रदेश के अंदर मौजूद किसानों को साधने में सफलता हासिल कर लिया समझो उसकी जीत निश्चित है। इसलिए भारतीय जनता पार्टी ने भी बिते दिनों कांग्रेस पार्टी के तर्ज पर किसानों को लूभाने हेतू धान का समर्थन मूल्य में इस बार इजाफा किया है। 3100 रूपये में धान प्रति क्विंटल खरीदने का वादा, एकमुश्त भुगतान,दो साल का बकाया बोनस जैसे किसान भुलावन घोषणा शामिल है। हालांकि पिछले विधानसभा चुनाव के दरमियान किसानों से जुड़े हुए मुद्दो पर भाग खड़े होने वाले भाजपा इस बार कांग्रेस पार्टी की तर्ज को अपनाते हुए किसानों से जुड़े हुए मुद्दों को आगे क्यों रखा है, यह बताने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन सवाल यह उठता है कि पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान किसानों से जुड़े हुए मुद्दों पर घोषणा करने के बाद भागे क्यूं थे।
किसानों को नाराज कर भाजपा यह समझ चुकी है कि छत्तीसगढ़ में सत्ता की चाबी का जरिया सिर्फ किसान है। ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि डाक्टर रमन सिंह की सरकार को जब पंन्द्रह साल तक मौका मिल सकता है, तो सूबे में किसान हितैषी सरकार होने का दम भरने वाली दाऊ जी की सरकार को अगले पांच साल और क्यों नहीं? मगर कांग्रेस पार्टी के द्वारा किसानों पर लगाए जा रहे ताकत के बिच एक अहम कड़ी छूट रही है कि कर्मचारी किस ओर है। सरकारी कर्मचारियों की भूमिका को इस चुनाव में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। छत्तीसगढ़ में वैसे देखा जाए तो नियमित और अनियमित कर्मचारियों की संख्या लगभग 7 लाख है। इस हिसाब से कहा जा रहा है कि प्रति परिवार औसत 4 वोट अनुपात में सरकारी कर्मचारियों के परिवारवालों की वोटों की संख्या लगभग 28 लाख हो जाती है। कर्मचारी फिलहाल नियमित करण को लेकर कांग्रेस पार्टी से नाराज़ चल रहे हैं,जबकि राज्य लोक सेवा आयोग के द्वारा पैसे देकर नौकरी करने की इच्छा रखने वाले लोग खुश हैं।
धान के दाने की कीमत बढ़ाने पर घोषणा ऊपर घोषणा लेकिन रासायनिक खादों की बढ़ती हुई कीमत और खेती किसानी में होने वाली दिक्कतों पर राजनीतिक दलों की भंयकर चुप्पी।
किसानों को समस्त चराचर जगत में अन्नादाता भगवान के तौर पर पूजा जाता है। इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि किसान ना सिर्फ अपने लिए अन्न उगाता है, बल्कि किसान के द्वारा किए जाने वाले खेती किसानी से कई और जीव जंतु का पेट भरता है। राजनीतिक दलो के द्वारा इन दिनों किसानों को अपने राजनीतिक फायदा निकालने हेतू तरह तरह से भ्रमित और बरगलाने का प्रयास करते हुए देखा जा रहा है। कांग्रेस पार्टी जिसे छत्तीसगढ़ राज्य में किसान हितैषी सरकार होने का दर्जा प्राप्त है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की ओर से जारी घोषणापत्र ने भाजपा को छत्तीसगढ़ राज्य की सियासी सरजमीं से उखाड़ फेंकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, लिहाजा इस बार के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस पार्टी किसानों के लिए बड़ी घोषणा को पूरा करने का दावा किया है। गौरतलब हो कि कांग्रेस पार्टी के द्वारा जारी किसानों से जुड़ी हुई सभी घोषणाएं भाजपा से एक कदम आगे बताई जा रही है,लेकिन सत्ता में काबिज होने के बाद जब किसान हितैषी सरकार होने का तमगा हासिल करने वाली कांग्रेस पार्टी को दोबारा चुनाव में जीत हासिल करने के लिए कर्ज माफी की घोषणा को दोबारा लागू करना पड़ रहा है, "तब कांग्रेस पार्टी का किसान हितैषी होने की दावे पर भी सवाल खड़ा होता है। कांग्रेस पार्टी की दावा के अनुसार जब सूबे के किसान कांग्रेस पार्टी की सरकार में खुशहाल बन चुके हैं।तब ऐसे में कर्ज माफी योजना क्यों? हालांकि भारतीय जनता पार्टी की ओर से जारी घोषणा पत्र में कर्ज माफी योजना को शामिल नहीं किया है, लेकिन लगभग दोनों राजनीतिक दलों ने प्रमुखता के साथ धान की कीमत को बढ़ाने का दावा किया है। साथ ही इसी तरह से हर छोटी-बड़ी राजनीतिक दलों ने भी अपनी ओर से जारी घोषणा पत्र में शामिल किया है,लेकिन बढ़ती हुई रासायनिक खाद और उर्वरक से लेकर खेती किसानी से जुड़े हुए मसलों पर सभी राजनीतिक दलों के साथ भाजपा और कांग्रेस पार्टी ने भी चुप्पी साध रखी हुई है। यह सवा आना सत्य है कि हर राजनीतिक दल चुनाव जीतने हेतू धान की समर्थन मुल्य में भारी इजाफा करने की बात कह रहे हैं, लेकिन कोई भी राजनीतिक दल इस बात की तस्दीक नहीं कर रहे हैं कि वे कंहा की आमदनी से धान की कीमत को चुकाने में सफल हो पायेंगे।