@विनोद नेताम
चुनावी साल में कर्जा माफी की घोषणा के बाद कर्ज लेने हेतू बैंकों में किसानों की भारी भीड़ उमड़े हुए देखा गया है। पिछले वर्ष 683 करोड़ तो वंही इस बार 883 करोड़ रुपए का कर्ज किसानों ने लिया है।
रायपुर : कृषि प्रधान देश भारत के छत्तीसगढ़ राज्य जिसके मिट्टी में जन्म लेने वाले रहवासियों को अमीर धरती पर रहने वाले गरीबी से जूझने वाले लोगों के तौर पर समस्त संसार जानती और पहचानती है। जंहा पर फिलहाल विधानसभा चुनाव सम्पन्न होने जा रहा है। प्रदेश के ज्यादातर मतदाता किसान परिवार से आते हैं या फिर तालुक रखते हैं। जाहिर सी बात है 'इस दौरान हर नेता और राजनीतिक दल चुनाव जीतने के लिए छत्तीसगढ़ में इन किसान परिवारों को लूभाने के हेतू फिलहाल इनके चरणों में झुक जायेंगे। वैसे देखा जाए तो छत्तीसगढ़ राज्य में मौजूद राजनीतिक दलों की नेताओं के लिए खेती किसानी से जुड़े हुए किसान परिवार राजनीतिक दृष्टिकोण के बिहाब पर काफी मायने रखते हैं। पिछली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को किसानों के लिए बनाई गई घोषणाओं ने ही जीत दिलाई थी और भाजपा को किसान परिवारों ने ही सत्ता से बेदखल करते हुए अस्वीकार किया था जबकि छत्तीसगढ़ के किसानों ने ही भाजपा को पूरे पंन्द्रह साल तक सत्ता में काबिज होने का मौका दिया था। इस बीच प्रदेश में असल किसानों की घटती हुई संख्या एक बड़ा चिंता का विषय बना हुआ है। बावजूद इसके छोटे किसान आज भी पसीना बहा कर अपने खेतो में सोने की बालियों को उगाने में व्यस्त नजर आते हैं जबकि बड़े किसान आधुनिक करण के इस दौर में आधुनिक तरीके से खेती किसानी करते हुए देखे जाते हैं।
अब जब विधानसभा चुनाव हो रहा है तो इस विधानसभा चुनाव में किसानों को पारंपरिक तरीके से रिझाने हेतू हर राजनीतिक दल के बड़े बड़े नेता बड़ी बड़ी चुनावी घोषणाओं को हंसे तो फंसे वाली अंदाज में अपनी भाषणों के जरिए सुनाते हुए देखे जा रहे हैं।

किसी भी सरकारी योजना की पूर्ति हेतू पैसों की आवश्यकता होती है। छत्तीसगढ़ राज्य देश के चुनिंदा गरीब राज्यों में शामिल है। ऐसे में चुनावी घोषणा में शामिल योजना की पूर्ति हेतू राजनीतिक कंहा पैसा लायेंगे। यह एक बड़ा सवाल है।
पैसा खुदा तो नहीं है लेकिन खुदा से भी कम नहीं है। इसलिए कहा जाता है कि बाप बड़ा ना भैया सबसे बड़ा रूपईया। अब रूपया पेड़ पर तो उगते हुए आजतक तो किसी ने नहीं देखा है। और किसी भी नेता या फिर राजनीतिक दलों के यहां इसके झाड़ होने के भी कोई जानकारी नहीं है।
ऐसे में एक बड़ा सवाल है उठता है कि कोई भी सरकारी योजनाएं बगैर पैसा के संचालित नहीं हो सकती है। जबकि विधानसभा चुनाव के मद्देनजर राजनीतिक दल के नेता बड़ी बड़ी चुनावी घोषणाओं को धड़ाधड़ लोगों के कानों में गुरू मंत्र की भांति फूंकते हुए सुना रहे है। जरा सोचिए राजनीतिक दल की सरकार बनने पर अपनी चुनावी घोषणा की पूर्ति कंहा पैसे से कर पायेगी। उदाहरण के लिए वर्तमान समय में कांग्रेस पार्टी ने किसानों की पुनः कर्जा माफी की घोषणा कर दी है। क्या कांग्रेस पार्टी किसानों की कर्जा माफी के लिए पार्टी फंड या फिर कांग्रेसी नेताओं के बाप दादाओं की जागीर नीलाम कर देगी या फिर जनता के द्वारा कमाई हुई खून पसीने की कमाई को किसी ना किसी माध्यम से वसूल कर इसकी भरपाई को फलीभूत तरीके से अंजाम देगी।
बड़े बुजुर्ग कह गए हैं कि खेती किसानी का काम मौसम और उपर वाले के कृपा पर निर्भर होती है। इसलिए माना जाता है कि डार के चुके बेंदरा अऊ सावन के चुके किसान कभी तरक्की नहीं कर सकता है। ऐसे में राजनीतिक दलों को भी यह समझना होगा कि सावन के मौसम किसानों के लिए उतना ही जरूरी है जितना कि उनके लिए किसान। जब किसान सावन से चुक सकता है तो फिर किसी बन्दर के लिए डार से चुकना कोई बड़ी बात नहीं है।