@vinod netam
बालोद : आमतौर देखा जाता है कि राजनीति में कोई स्थाई दोस्त और दुश्मन नहीं होता है। नेता अपनी राजनीतिक इच्छाओं की पूर्ति हेतू कभी भी अपना पाला, मस्त वाला निवाला के ओर मोड़ सकता है और अपने फायदा के लिए भाई तक को बीच मझधार में छोड़ सकता है। ऐसे में सहयोगी नेताओं का क्या बिसात? वैसे भी वर्तमान परिदृश्य के राजनीतिक माहौल में कहा जाता है कि सत्ता से पैसा और पैसा से सत्ता यही राजनीति है। जिसके चलते स्पष्ट रूप से सुनने को मिलता है कि बाप बड़ा ना भैया सबसे बड़ा रूपया।बहरहाल छत्तीसगढ़ राज्य में विधानसभा चुनाव सर पर आकर खड़ी है। सभी राजनीतिक दल प्रदेश के 90 विधानसभा सीटों पर अपने अपने उम्मीदवारों की सूची जारी कर रहे हैं। जिन राजनीतिक दलों ने अभी तक विधानसभा सीटों में अपने उम्मीदवारों की सुची को जारी नहीं किया है, वे भी अब लगभग सुची जारी करने वाले ही बताएं जा रहे हैं। इसमें सत्ताधारी राजनीतिक दल भी शामिल हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल समेत स्क्रीनिंग कमेटी के तमाम सदस्य इन दिनों उम्मीदवारों की चयन प्रक्रिया पर काफी माथा पच्ची कर रहे हैं। कांग्रेस स्क्रीनींग कमेटी के अध्यक्ष अजय माकन राजधानी रायपुर आकर स्क्रीनिंग कमेटी के अन्य सदस्यों से मिलकर माथा पच्ची करके वापस दिल्ली जा चुके हैं। इस बीच कांग्रेस पार्टी के अंदर विधानसभा सीटों पर अपनी उम्मीदवारी पक्की करने को लेकर कांग्रेसी नेताओं के बीच एक दूसरे की पैर को खींचने की कयावद तेज होने की खबर ने कांग्रेस पार्टी के अंदर दहशत मचा कर रख दिया है। क्या कबिले के सरदार का एक और यह नया कारनामा है, विधानसभा चुनाव से पहले टेंशन में आए कांग्रेस पार्टी के जिला पंचायत सदस्य और उम्मीदवार।
क्या सचमुच छत्तीसगढ़ राज्य के बालोद जिले की सियासी सरजमीं पर मौजूद कांग्रेस पार्टी के एक बड़े नेता अपने ही साथी जिला पंचायत सदस्यों के खिलाफ सूचना का अधिकार लगवा कर उन्हें प्रताड़ित करने की मुहिम को अमलीजामा पहनाने में लगा हुआ है?दरअसल यह सवाल प्रिंट मीडिया में छपी हुई इस खबर के बाद जिले की सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है। उक्त मामले को लेकर चर्चा का बाजार पूरी तरह से गर्म हो चुका है। बड़े बुजुर्ग कह गए हैं कि सत्ता का हूनक एक जनप्रतिनिधि को राजनीतिक पतन की ओर तेजी से लेकर आगे बढ़ते हुए पतन की ओर ले कर जाती है,जबकि सत्ता में काबिज रहने के दौरान किए गए जनसेवा कार्य किसी भी राजनेता को राजनीतिक पृष्ठभूमि पर सफलता की ओर धीरे धीरे लेकर जाती है। अब यह तय करना जनप्रतिनिधियों का काम है, कि उन्हें हूनक वाली सत्ता से लगाव रखना चाहिए कि जनसेवा कार्यों से जुड़े विषयों पर लगाव रखना चाहिए। बहरहाल बालोद जिले के अंदर सत्ता की हूनक के साथ राजनीतिक मुकाम को तय करने वाले नेताओं की भरमार होने की बात कही जा रही है। यह सर्व विदित है कि जिला कांग्रेस कमेटी बालोद के अंदर भी लगभग सभी जगहों की तरह आपसी गुटबाजी का चलन बरसों से हावी है। अब सामने विधानसभा चुनाव होना है और चुनाव के लिए उम्मीदवारों का चयन होना है, तब ऐसे में आपसी गुटबाजी का मजा कुछ ज्यादा ही लुत्फ लेते हुए कांग्रेसी नेता बताए जा रहे हैं। हालांकि आपसी खींचतान और मनमुटाव के चलते जिला में कांग्रेस पार्टी की आगामी विधानसभा चुनाव में क्या हाल होगी यह कहा नहीं जा सकता है, लेकिन किसी भी राजनीतिक दल के लिए लड़ाई से पहले सेना में फूट किसी बड़े हार से कम नहीं माना जा सकता है।