रायपुर : किसी भी व्यक्ति की भाषा शैली समाज में उसकी भूमिका को रेखांकिeत करती है। जिस व्यक्ति विशेष की भाषा शैली समाज में उचित नहीं माना जाता है। उस व्यक्ति को समाज कंही पर भी सम्मान नहीं देता है। अतः सदगुरु कबीर दास जी कह गये हैं, कि ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोये,औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए।।
वाणी का संबंध मनुष्य शरीर के उस अंग से है,जिस अंग में हड्डी तक नहीं होती है। लो कर लो बात लेकिन जो काम एक तलवार और मिशाइल कर सकता हैं या फिर करती है। उससे भी भयानंक काम यह बैगर हड्डी के मानव शरीर का एक छोटा सा अंग बड़े आसानी से कर देता हैं। जी हां हम बात कर रहे हैं बैगर हड्डी के जुबान की, जिसे मोहब्बत के लिए यदि जाया किया जाए 'तो रूस और युक्रेन की तपती और सुलगती हुई सरजंमी पर मोहब्बत गुलजार हो जाए ,लेकिन इसी जुबान का इस्तेमाल यदि व्यक्ति गलत तरीके से करे तब तो उस इंसान की परछाई तक साथ छोड़ जाती है। समाज की बात तो बहुत दूर है। इसलिए सदपुरूष और भले इंसान अपनी जुबान का इस्तेमाल सही कार्यों पर करते हुए जीवन व्यतीत करते हैं। दूसरी ओर जुबान का गलत तरीके से इस्तेमाल करने वाले लोग बदजुबानी का परिणाम भोगते हैं और यही कुदरत का नियम है। इन नियमों को जानने और समझने वाले लोगों की मानें तो 'इस धरती में रहने वाले समस्त प्राणी जगत मात्र जो जैसा कर्म करता है, उसे वैसा ही फल की प्राप्ति होती है। अर्थात धान बोने वाला व्यक्ति धान ही कांटेगा 'धान की जगहे धनिया नहीं। भगवत गीता में भी यही बताया गया है। इसलिए मनुष्य को अपनी जुबान का इस्तेमाल तोल मोल के साथ करना चाहिए। विशेष रूप से राजनीतिक पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखने वाले नेताओं को "यदि इस्तेमाल करने वाले नेता विपक्षी राजनीतिक दल से ताल्लुक रखते हो, तब तो उनकी जिम्मेदारी और अधिक बढ़ जाती है,क्योंकि विपक्षी राजनीतिक दल के नेता होने नाते उस नेता की नैतिक जिम्मेदारी बनती है,कि वह नेता अपनी जुबान को अपने साथ खड़े असंख्य नागरिकों की जुबान ही समझे और सोंच समझ कर अपनी जुबान का इस्तेमाल करें। चूंकि जनता अपनी आवाज के खातिर ही अपना नेता चुनता है,और चुनते बख्त वह यह उम्मीद रखता है,कि उनके द्वारा चुने गए नेता उनकी बातों को सरकार के समक्ष पेश करते हुए उनकी समस्याओं का समाधान करेगा। उनके तकलीफों में साथ रहेगा। ऐसे में विपक्षी राजनीतिक दल के नेताओं की जुबान राष्ट्र से जुड़े हुए असंख्य नागरिकों की जुबान भी हो सकती है या फिर उनकी जुबान से मेल खा सकती है। एक राजनेता होने के नाते जनता की मुद्दों पर उनके विचारों पर बात रखना ही एक विपक्षी राजनीतिक दल के नेता का मुख्य कर्तव्य होता है। ऐसे में यदि जनता की बात को सही ढंग से रखने की बजाए विपक्षी राजनीतिक दल के नेता अपनी जुबान का गलत इस्तेमाल करता है, तब ऐसे में जनता का क्या दोष। 2019 में हुए लोकसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस पार्टी के नेता और पूर्व सांसद राहुल गांधी केरल में अपनी चुनावी रैली के दौरान भारतीय राजनीति का वह मिशाल गलती से पेश कर बैठे, जो आगे चलकर उन्हीं के लिए गले की हड्डी में फांस बनकर रह गई। जैसा कि हमने पहले ही कहा है कि विपक्षी राजनीतिक दल के नेताओं को तोल मोल कर जुबान का इस्तेमाल करना चाहिए राहुल गांधी ऐसा नहीं कर सके। जिसके चलते उनकी संसद सदस्यता तक खत्म हो गई। सुप्रीम कोर्ट के दखल देने के बाद फौरी तौर पर राहुल गांधी को राहत तो मिल गई है लेकिन राहत मिलने के बाद कांग्रेस पार्टी के ज्यादातर नेता एक फिर राहत का फायदा उठाते हुए ग़लत बयानी करते हुए देखे गए। दरअसल सुप्रीम कोर्ट से राहुल गांधी को मोदी सरनेम मानहानि मुकदमा मामले में मिली राहत के बाद कांग्रेस पार्टी के लगभग तमाम बड़े नेता खुशी से फूले नहीं समा रहे थे। जाहिर सी बात है राहुल गांधी जैसे बड़े नेता को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली हुई है, तब खुशी जाहिर करने हेतू कांग्रेस पार्टी के नेता अपनी जुबान तो खोलेंगे ही। मामले में विचार रखते हुए ज्यादातर कांग्रेसी नेताओं ने कहा कि यह फैसला न्याय की जीत है,भारत की जीत ,सत्य और संविधान की मुल्यो के साथ लोकतंत्र की जीत है जबकि देश के न्यायलयों में आज भी लगभग पांच करोड़ से अधिक लोगों की मामला सालों से धूल खाती हुई पड़ी हुई है। एक अकेला राहुल गांधी को राहत मिलने से क्या उनकी उम्मीदें पुरी हो जाती है यह एक बड़ा सवाल है। पिछले कई दिनों से संसद मणिपुर हिंसा को लेकर बाधित किए जा रहे हैं, जबकि यह एक अतिसंवेदनशील मुद्दा है। कांग्रेस पार्टी नियमो के हवाले देते हुए इसे तिल का ताड़ बना दिया है। जबकि देश के सभी जटिल मुद्दों पर चर्चा करना सभी राजनीतिक दलों की जिम्मेवारी है। न्याय की आस में पांच करोड़ से अधिक लोग न्यायलयों की ओर मुंह ताक रहे है। जिसमें मणिपुर सहित छतिसगढ़ राज्य के बस्तर और सरगुजा संभाग के आदिवासी, झारखंड, उड़ीसा मध्यप्रदेश सहित देश भर में निवासरत आदिवासियों के भी मामले है। जिन्हें बरसों से जीत और हार का मुंह देखना तो दूर पेशी तक जाने की इच्छा लगभग मर चुकी है। यह सत्य है कि न्यायपालिका के समक्ष केस आना बंद नहीं हो सकता है,लेकिन न्यायालयो से लोगों को जल्द न्याय मिल सके कम से कम इस विषय पर तो चर्चा किया जा सकता है। जानकारी के लिए बता दें कि कांग्रेसी सांसद राहुल गांधी के ऊपर देश के अलग-अलग राज्यों में आधे से ज्यादा मानहानि का मुकदमा दर्ज है और लगभग सभी मामला कोर्ट में बकायदा जारी है। लगभग सभी मामला गलत बयानबाजी और बदजुबानी से संबंधित विषयों को लेकर दायर होना बताई जाती है। हालांकि ज्यादातर दायर किए गए मामले भाजपा और संघ से जुड़े हुए लोगों ने कराई है यह कहा जाता है, लेकिन सवाल यह उठता है कि राहुल गांधी आखिरकार इतनी भी भयानक तरीके से बदजुबानी सत्ता सरकार में बैठे हुए लोगों के लिए क्यों करते हैं? इससे पहले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह यूपीए 2 की सरकार चल रही थी। महाशय उस समय भी खुलेआम अध्यादेश की कापी को फाड़ कर कांग्रेस पार्टी की सरकार से बदजुबानी करते हुए दिखाई दे चुके है। गौरतलब तलब हो कि इन दिनों पूरे देश की सियासी राजनीति में राहुल गांधी छाए हुए हैं। राहुल गांधी हाल के दिनों में देश के अंदर एक उभरता हुआ राजनीतिक चेहरा है।ऐसे में देखना यह दिलचस्प होगा कि राहुल गांधी अपने मुखारविंद से अगली बार बदजुबानी करते हुए नहीं बल्कि लोगों के बीच प्रेमवाणी बरसाते हुए कब नजर आते है।