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जय और वीरू के कालिया और सांभा कौन।

रायपुर : आमतौर पर देखा जाता है कि राजनीति में कोई भी राजनेता का स्थाई दोस्त और दुश्मन नहीं होता है। लगभग सभी राजनेता राजनीतिक समीकरण के हिसाब से राजनीतिक पाला बदलने में माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं। अतः इन राजनेताओं को जनता यदि मौकापरस्त राजनेता कह दे, तो भी कोई गुरेज नहीं होगा। छत्तीसगढ़ राज्य में होने वाली आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर प्रदेश में मौजूद लगभग सभी नेताओं की जुबान पर इन दिनों काफी खराश और मिठास देखी जा रही है। एक ओर जहां कांग्रेस पार्टी के नेता फिर से प्रदेश में दोबारा सरकार बनाने हेतू मतदाताओं को लुभाने के लिए जुबां पर शहद लगा कर घुमते हुए पाए जा रहे हैं "तो वंही दूसरी ओर प्रदेश की सियासत में पंन्द्रह साल तक सिरमौर बन कर एक तरफा बगरंडा के पेड़ से निकाली गई डीजल के दम पर फरारी के रफ्तार से शासन चलाने वाली भारतीय जनता पार्टी बिते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी से करारी मात खाने के बाद वर्तमान समय के दौरान आगामी विधानसभा चुनाव में जीत का सपना संजोए हुए मौजूदा भूपेश बघेल की सरकार के लिए अपने जुंबा पर करेला का रस लेकर घुमते हुए दिखाई दे रही है। वैसे कभी कभी सच कड़वा भी होता है और जानकारी के लिए बता दें कि करेला कड़वा होता है।बहरहाल छत्तीसगढ़ राज्य में जल्द विधानसभा चुनाव सम्पन्न होना है। ऐसे में सभी राजनीतिक दल के अंदर मौजूद राजनेताओं की दिल का धड़कन तेज होना स्वाभाविक माना जा रहा है। राजनीतिक पंडितों की मानें तो किसी भी राजनीतिक दल की सरकार के लिए ज्यादा स्थिर और अस्थिर सरकार होना मछली की उस कांटा की तरह है, जो कभी भी किसी भी सरकार के लिए गले का फांस बन सकती है। अस्थिर सरकार को हमारे श्रुधी पाठकों ने बिते वर्षों के दरमियान कई राज्यों की सियासी सरजमीं पर धाराशाही होते हुए देख रखा है। जिसका महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्यप्रदेश सहित कई राज्य स्पष्ट उदाहरण है,लेकिन सवाल यह है कि ज्यादा स्थिर सरकार होना किसी भी राजनीतिक दल के लिए मछली का कांटा या फिर फांस कैसे हो सकता है ? जबकि स्थिर सरकार तो किसी भी राजनीतिक दल के लिए अति उत्तम माना जाता है। संवैधानिक नियम के मुताबिक 90 विधानसभा सीट वाली छतिसगढ़ विधानसभा में बारह या फिर तेरह मंत्री पद स्वीकृत है। इस हिसाब से भुपेश बघेल की छत्तीसगढ़ सरकार में मंत्री वर्तमान समय के दौरान मौजूद हैं। चूंकि कांग्रेस पार्टी की मौजूदा सरकार छत्तीसगढ़ में तीन तिहाई बहुमत के साथ ज्यादा स्थिर सरकार के रूप में अमीर धरती के गरीब मतदाताओं के मध्य विगत साढ़े चार से शासन करते हुए दिखाई दिया है। इस दौरान ढाई - ढाई साल मुख्यमंत्री पद की फार्मूला से ज्यादा और कुछ विवाद की स्थिति छत्तीसगढ़ राज्य सरकार में देखने को नहीं मिली है। बावजूद इसके कि प्रदेश के अंदर बड़ी संख्या में जीते हुए कांग्रेसी विधायक मंत्री नहीं बनाए गए हैं,जबकि सिर्फ बारह या फिर तेरह विधायक भूपेश बघेल के साथ मंत्री बनाए गए हैं। यानी कि बचे हुए कांग्रेसी विधायक महज विधायकी गिरी करते हुए जनता की सेवा में जुटे हुए हैं। निश्चित रूप से छतिसगढ़ सरकार और कांग्रेस पार्टी के लिए इसे एक बड़ी राजनीतिक उपलब्धि माना जा सकता है। सूत्रों की मानें तो इस स्थिति को बनाए रखने के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सरकार ने रणनीति के तहत सभी कांग्रेसी विधायको को अपने अपने विधानसभा क्षेत्र में अपने हिसाब से काम करने के लिए खुले तौर पर छुट दे दिया गया था। जिसके चलते कुछ विधायको और मंत्रियों के विधानसभा क्षेत्र में खुलेआम सत्ता पक्ष से जुड़े हुए लोग सरकार के नाक में चूना लगाते हुए भी देखे गए है। चूना लगाने का मुख्य तरीका अवैध सट्टा कारोबार, अवैध शराब व्यापार और अवैध रेत उत्खनन शामिल है। अब जब विधानसभा चुनाव सर पर है, तब स्थानीय विधायकों और मंत्रियों के विधानसभा क्षेत्र में संचालित किए गए यही मनमानी सरकार को और साथ में पार्टी को मुश्किल में फंसा रही है। बिलकुल मछली की कांटे की तरह, जो कभी कभी खाने वाले आदमी की गले में फंस जाती है और मुश्किल अटका जाती है। हालांकि स्थानीय विधायको की करतूत को छुपाने के लिए कांग्रेस पार्टी दूसरे कांग्रेसी नेताओं को पिछले दरवाजे से इंट्री दे कर खाई को पाटने का प्रयास करने में जुटी हुई है। खबर यह भी है कि कुछ विधायकों और मंत्रियों के विधानसभा क्षेत्र में खोदी गई गढ्ढा को पाटने के लिए जमकर प्रयास किया जा रहा है। अब यह प्रयास कंहा तक सफल हो पायेगा यह तो वक्त ही बताएगा। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पहले ही यह स्पष्ट कर चुके हैं कि घटिया पर्फार्मेंस के बदौलत सरकार की चेहरा पर कालिख पोतने वाले विधायकों को आगामी विधानसभा चुनाव में टिकट के दौर से बाहर रखा जायेगा। जानकारो की मानें तो छत्तिसगढ़ राज्य के अंदर कांग्रेस पार्टी के आधे से ज्यादा विधायकों का टिकट कटना स्वाभाविक माना जा रहा है। बताया जाता है कि कई कैबिनेट मंत्री ऐसे हैं जिन्हें हाल-फिलहाल दुसरे जिलों का प्रभार सौंपा गया है।
जबकि उनकी खुद की स्थिति उनके खुद के विधानसभा क्षेत्र में ठीक नहीं है। ऐसे में कांग्रेस पार्टी के लिए यह चिंतन का विषय हो सकता है कि जिनका खुद का पैर अपनी सियासी जमीन पर घिस चुकी हुई हो वो दुसरे की घिसी हुई जमीन को क्या खाक मजबूती प्रदान करेंगा ? यह साफ है कि कांग्रेस पार्टी के आधे से ज्यादा विधायकों ने सरकार के नाक में चूना लगाने का काम खुलेआम कर रखा है। कई सीटिंग विधायकों के लिए विपक्षी राजनीतिक दल के नेता और आम जनता जमकर आग उगल रहे हैं। गनीमत यह है कि राज्य सरकार के द्वारा संचालित कुछ यादगार योजना धरातल पर देखने को मिली है। जिसके बदौलत ज्यादातर मतदाता कांग्रेस पार्टी को दोबारा सत्ता में काबिज होते हुए देखना चाहती है, लेकिन इस बार कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवारो का चेहरा और चेहरे के पीछे नियत को जनता जरूर भांपेगी। पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस पार्टी की स्थिति काफी मजबूत थी लिहाजा कई नए चेहरे बैगर राजनीतिक अनुभव के बंपर वोटों से जीत दर्ज कराने में सफल हुए थे। जिनमें से ज्यादातर कांग्रेसी विधायको को आज उनके क्षेत्र की जनता फूटे आंख नहीं सुहा रहे हैं, जबकि दोबारा टिकट की इच्छा मन में पाले खुब गांधी गिरी करते हुए देखे जा रहे हैं

           


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