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सामाजिक बहिष्कार कर लोगों को गुलाम बनाने की मंशा रखने वाले मठाधीश मंडलियों की आयेगी अब शामत।

सामाजिक बहिष्कार और दंड के नाम पर अपनी दुकानदारी चलाने वाले मठाधीशो को ग़लत फरमान जारी करना अब भारी पड़ सकता है। किसी व्यक्ति को सामाजिक बहिष्कार करने पर हो सकती है 7 साल कैद व पांच लाख जुर्माना ◆छत्तीसगढ़ में सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ नए कानून का मसौदा लगभग तैयार। सामाजिक बहिष्कार में शामिल होने वाले हर व्यक्ति भी आयेंगे इस कानून के रडार दायरे में, आरोप सिद्ध होने पर देने पड़ेंगे 5 लाख जुर्माना और हो सकती है 7 साल की सजा। साथ ही सामाजिक बहिष्कार से पिड़ित व्यक्ति को न्याय की दरवाजा तक पहुंचने से बाधित करने वाले नेता और अधिकारीयों पर भी हो सकेगी कार्यवाही
रायपुर : आधुनिकता की इस दौर में छत्तीसगढ़ राज्य के अंदर आज भी सामाजिक कुरीतियों का वजूद उतना ही मजबूत है जितना कि इन कुरितियो के बारे में कहा व सुना गया है। प्रदेश में आए दिन इन सामाजिक कुरीतियों का शिकार लोग बन रहे हैं जबकि देश में आजादी के बाद से संविधान और कानून का राज स्थापित है। हैरानी की बात यह है कि यह जानते हुए कि सामाजिक कुरीतियां संविधान की मुल्यो का गला घोंट देता है। बावजूद इसके अमृतकाल के इस दौर में भी सामाजिक कुरीतियों ने छत्तीसगढ़ राज्य में अपनी वजूद को जिंदा बनाए रखा है। सामाजिक कुरीतियों को सभ्य समाज और कानून वर्तमान समय में समाजिक बुराई की तौर पर मानकर चलता है। ऐसे में सामाजिक कुरीतियों का वजूद छत्तीसगढ़ राज्य के सभ्य समाज में बने रहना क्या पौने तीन करोड़ प्रदेशवासियों को शोभा देता है। निश्चित रूप से यह एक महत्वपूर्ण सामाजिक चिंतन का विषय है,लेकिन छत्तीसगढ़ राज्य में मौजूद सभ्य समाज इस विषय को लेकर क्या वाकई चिंतन कर सकती है यह अध्ययन का विषय है। चूंकि सभ्य समाज के बीचों-बीच से इन दिनों शराब की नदियां बहते हुए निकल रही है, तब ऐसे में क्या महत्वपूर्ण सामाजिक चिंतन छत्तीसगढ़ के सभ्य समाज में संभव हो सकता है। निश्चित तौर पर यह एक बड़ा सवाल है। मामले को लेकर माटी पुत्र भूपेश बघेल को हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से अध्ययन करना चाहिए या फिर बेरोजगारी की फर्जी आकड़ा बनाने वाले उस कम्पनी से रिपोर्ट तैयार करा लेना चाहिए ताकि इस बहाने ही सही कम-से-कम सामाजिक कुरीतियों के बारे में सरकार को जानकारी मिल सके। बहरहाल छत्तीसगढ़ राज्य में सामाजिक कुरीतियों को दूर करने हेतु एक बड़ी पहल होने की संभावना जताई जा रही है। जानकारी के मुताबिक छत्तीसगड़ राज्य सरकार ने सामाजिक बहिष्कार प्रतिबंध विधेयक का मसौदा लगभग तैयार कर लिया है। नये विधेयक के अनुसार किसी भी व्यक्ति को समाजिक, धार्मिक, स्थानिय रिती रिवाज, धार्मिक अनुष्ठान, विवाह, अंतिम संस्कार, धोबी, नाई, राऊत, पानी के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकेगा।
नये सामाजिक बहिष्कार विधेयक कानून मसौदे के अनुसार ये हो सकता है दंड।
1 सामाजिक बहिष्कार में एकत्रित होने की स्थिति में भाग लेने वाले प्रत्येक सदस्यों को एक से लेकर ढेर लाख रुपए तक जुर्माना। 
2 दोष सिद्ध होने पर 7 साल की सजा और 5 लाख जुर्माना। 
3 सामाजिक बैठक आयोजित करने वाले मठाधीश और फैसला सुनाने वाले दंबगो को 3 साल सजा और तीन लाख जुर्माना।
छत्तीसगढ़ राज्य में कई सालों से सामाजिक बहिष्कार के कारण विभिन्न स्थानों से आत्महत्या, हत्या प्रताड़ना व पलायन की लगातार खबरें समाचार पत्रों के माध्यम से आती रहती है। जानकारों की माने तो प्रदेश के अंदर लगभग 30,000 से लोग सामाजिक बहिष्कार के शिकार हुए हैं। महाराष्ट्र में समाजिक बहिष्कार को लेकर कड़े कानून बनाये गए हैं। छत्तीसगढ़ राज्य में इस संबंध में अबतक कोई कानून धरातल पर बन नहीं पाया था इसलिए ऐसे मामलों में कोई उचित कार्यवाही नहीं हो पा रही थी और ना ही किसी भी प्रकार से रोकथाम हो रहा था लेकिन राज्य सरकार अब जल्द ही समाजिक बहिष्कार कानून लागू कर ऐसे सामाजिक कुरीतियों का सर कुचलने जा रही है।सूत्रों की मानें तो छत्तीसगढ़ राज्य में यह सामाजिक बहिष्कार विधेयक कानून लागू होने के बाद बालोद जिला सहित कई जिलों में पदस्थ नौकरशाहो और सफेदपोश नेताओं को इस सामाजिक बहिष्कार कानून के तहत उलझे हुए देखा जा सकता है क्योंकि माना जा रहा है कि राज्य में सामाजिक कुरीतियों को सबसे ज्यादा बढ़ावा और संरक्षण देने में इन्हीं लोगों का सबसे ज्यादा हाथ है। बालोद जिला के अंदर तो ऐसे सैंकड़ों मामले देखे जाते रहे है जिनमें स्थानीय नेताओं की दखलंदाजी के चलते सामाजिक कुरीतियों से सराबोर मठाधीशों को नौकरशाहो और सफेदपोश नेताओं ने खुलेआम बढ़ावा देते हुए कानून का दिवाला निकाल दिया है। ऐसे में इस कानून के बनने से ना सिर्फ समाजिक कुरीतियों से लोगों को आजादी मिलेगी बल्कि समाज में कुरीतियो को जिंदा रखने वाले सफेदपोश नेताओं और नौकरशाहों से भी छुटकारा मिल सकेगा।

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